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किशोरीलाल घनश्याम मशरूवाला
(ले०-या० माईदयाल जैन बी. ए., (आनर्स) बी. टी.]
मंगलबार नौ सितम्बरको सार्यकाल गांधीवादी नक्षत्र में अपने 'यंग इडिया' और हरिजम' पत्रों में जो टिप्पणियां मण्डलका एक चमकता हुमा वारा भारत माताका सपूत, लिली जिनके कुछ अंश नीचे दिए जाते है। इनसे मालूम गांधीवादका बाल्याकार, स्वतन्त्र विचारक, निर्भीक तथा होगा किमहामाजी उनके बारे में कितनी ऊँचो सम्मति स्पष्ट पाखोचक और अंगरेजी, हिन्दी, गजराती तथा रखते थे। मराठीका लेखक हमसे सदा के लिये विदा हो गया । राष्ट्र
"..'वे बहुत पुराने कार्यकर्ता हैं। अभी हाल तक माजइसके शोकम दबा हमारा ये किशोरीलाल धन- गजरात विद्यापीठ के रजिस्टार थेभार देबज बीमारीक श्याम मशरूया थे।
कारण इन्हें ११ पदको छोड़ना पड़ा । भारतवर्ष' भरमें - श्री मशरूवाबाजीका जन्म सन् १८वीमें गुज
हमारे पास को मूक कार्यकर्ता हैं, उनमें वहमत्यन्त रात एक अत्यन्त धर्मपरायण कुटुम्ब : दुमा था, बाकि
विचारशील है। जो भी शब्द लिखा या बोलते हैं, बादमें अकोखामे रहन लगा था । युवा अवस- विचार
उसे पहले तोलते है । 'यंगरिया' २६ मई, 15२० । संगठनकाब में श्री मशरूवाला पर प्रसिद्ध देशभक गोपाल
एक और अवसर पर महात्माजीने २ मार्च के हरिजन कृष्ण गोखले तथा ठाम रचनात्मक कार्यकर्ता ठक्कर बाबा
में लिखा था-मशरूवाला हमारे अनूठे कार्यकर्ताओं में से के विचारोंका बड़ा प्रभाषा था। अब उनकी आयु
एक हैं। वे अथक परिश्रमी है। वे अत्यन्त शुद्धारमा वाले २५ वर्ष की थी तब वे वकालत कर रहे थे, उस समय व गांधीजीके सम्पर्क में पाये। गांधोजीके विचारों तथा महान
थे। छोटोसे छोटी बान भी उनकी दृष्टि से नहीं बचपाती।
यह एक दार्शनिक और गजरानीक सर्व-निय लेखक हैं। व्याकरबसे मशरूवालाजी इतने भाकर्षित हुए, कि दशके दूसरे सैकमों-कीलों और सरकारी नौकरों के समान उन्होंने
वह मराठीके इतने ही अच्छे विकून हैं जितने कि गुजराती
के। वह नस्ल, जाति अपनी चलती बकालतको छोर दिया और गांधीजाके
प्रान्तीय घमण्ड या पचपात
से विशेषरूपसे खाली हैं। यह एक स्वतन्त्र विचारक और साथ साबरमती आश्रम चखे गय । भारतमाताको सवाके लिये यह उमका महान् स्याग और बस था।
म धर्मों के विद्यारी है। उनमें कहरताका निशान भी नहीं
हैं, मो कामको अपने हाथमे ले लेनेके पश्चात् उनसे श्री मशरूबालाजीकी रुचि भारम्भकालसे शिक्षण
अधिक पारगामितासे करेगा। कार्यकी ओर थी, इसलिए माश्रममें पहुंचकर उन्होंने राष्ट्रीयशालामें पढ़ानेका कार्य अपने ऊपर लिया। इसके
श्री मशरूवाबाजीके स्वर्गवास पर हमारे राष्ट्रपति, पश्चात् गजरात विद्यापीठके राजस्ट्रारक पदको स्वीकार
प्रधान मन्त्री, श्रीविनोबा भावेजी और अन्य नेताओं ने करने की प्रार्थना गांधीजीने उनसे की। सन ... समवेदना तथा सहानुभूति-पूण पत्र उनके सम्बन्धियोंको और १२ में मशरूवालाजी गरेज सरकार ने बिखे या वक्तव्य दिव। उनमें सबसे श्रेष्ठ प्रशंसा मुझे भेजे गये। गांधीजीके स्वर्गवासके बाद उनके दोनों साप्त प्रधान मन्त्री जवाहरलाल का और वनोबा भावेजीको हिकपरिजनजी और हरिजन संबहिन्दी बची । नेहरूजीने लिखा, 'इन सब कठिन दिनों में को सम्पादित करनेका उत्तरदायित्व मशरूवाबाजीने अपने मशरूवामाजी रस सज्जनसमूहमें रह,जी सायिक घटनामों. उपर खिया। और इस कामको बड़ी अच्छी तरह किया। के प्रवाहमें नहीं बहे बकि गांधीजीके संदेश पर सपाई
महात्माजीने रचनात्मक कार्य सिए जो भी संस्थायें सेटे रहे।" स्थापितकी मशरूवाबाजी उनको प्रबन्ध समितियोंके मुख्य श्री विनोबा भावेजीने अपने सम्बे वक्तव्यमें शोभनी सदस्यों में से थे।
मशरूवाबाजाके प्रति अपने हृदयकी समस्त सद्भावना गांधीजीने तीन अवसरों पर मशवाखाजीक सम्बन्ध बार अदाको डेड दिया है। उन्होंने मशरूमानाजीको