SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण ७८ गीता का स्वधर्म [२६१ कर सचमुच 'मानव' कहखानेके अधिकारी होग, अथवा ही होगा। दोनोंका भला एवं सबका भया केस मह, मानव जन्मको सफल बनाने वाले कहे जायंगे। इसमें हर समझौता, प्रेम और मेल में ही है और होगा। हमारी तो व्यात हर देशका कर्तव्य है कि वह उच्चध्येय रखे और यही माना है कि दोनों अपने विभिन वादों ( Isus) वैसाही पाचरण करे । तभी संसारकाभी भला होगा और की विपरीतताका क्यालन करते हुए 'मानवता के हित व्यक्तिका भी। परिस्थितियोंको हम इकट्ठा अपने कमाये के लिए और उसमें सम्मिहित अपने हित के लिए पापसमें निर्माण करते या उसमें फेर बदन करते हैं और पुनः सम्धि करने और सारसे युद्धकी विभीषिकाको मिटाकर व्यकियों कों या मारण पर भी कुटुम्ब, देश वा शान्ति स्थापित करें। ॐशान्ति : संसारकी परिस्थितियों का अमर पड़ताही रहता है-हम मोट:-यहाँ विश्वका भाग्य या मानव इत्यादिके कर्म करनेको केवल एक सीमित अमें ही स्वतन्त्र हैं भाग्यके विषयमें विशेष व्याख्या देना सम्भव नहीं-यहाँ अन्यथा हमें समाज और देश या ससारमें रहकर एक तो संकेतमात्र दिया गया है पाठक इसे ऐसाही सममेंप्यास्था या नियमका पालन करना पड़ता है। इसके पूर्ण न सममें । लेख में दीगई बहुतसी बातोंके खुखासाके खावा भी अपने चारों तरफके वातावरण और राष्ट्रीय yि मेर २ लख देखें:- अंग्रेजीमें Peace. Poliअथवा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियोंके अनुकूल व्यक्तिको tics & Ahina'जो Tute of Ahinsa नाम अनीति नीति-आबार म्यवहार जरूरत मुताविक पत्रिका जुनाई-अगस्त, ११५ के अंकमें प्रकाशित हुआ बनाना पड़ता है । इस तरह अखिन मानव समुदाय एक है-लेख ट्रैकट रूप में भी छपा है-पत्रिका और ट्रेक्टदृमरसे विश्व व्यापी कपन गुथा हुआ है। कोई अकेला विश्व जैन मिशन अलीगंज. एटा, उत्तर प्रदेशमे मित्र नहीं है । सब सबसे घिरे हुए ह । भी हालत में यदि म सकते हैं हिन्दी में जीवन और विश्व के पवर्तनों का शार अमेरिका अपने अपनेको 'इकला' समम एक दमो रहस्य' जो 'अनेकाa'-वर्ष.-किरण ४-५ में प्रकाकी हानि करें तो यह मूर्खता और म्बय अपनी हानि करना शित हुया है। गीताका स्वधर्म (प्रो. देवेन्द्रकुयार जैन एम०५०) गीतामें कहा है कि "अपने धर्म पर मर मिटना, अजुन । युद्ध विमुख अजुनको युद्ध में लगाना ही बड़ श्रेयकी बान है, 'स्वधर्मे निधनं श्रयः' पर यह इसका गुस्य लक्ष्य है ? गीताकारका वर्ण-व्यवस्था, अपना धर्म क्या है, और भिन्न युगांम इसका अर्थ ईश्वर और भक्ति में पूरा विश्वास है, मृष्टिके विषयमें कितना बदला, इसका विचार बहुत कम हो चुका है, उसका कहना है कि चाह उमे मांख्यमूलक मानो, सचमुच यह "स्वधर्म" प्रत्येक नवीन-विचारधाराको या योगमूलक, दोनांका अंतिम लक्ष्य हे 'भगवानम रोकने के लिए ढालका काम देता रहा है, इसलिए यहां लय हो जाना"! गीतामें धर्म और कर्म गन्नांका इस बातकी छानबीन बहत आवश्यक है कि गीताका व्यवहार एक अथम हुआ है, अतएव ग्वधर्म या यह "अपना धर्म" क्या है, और आजकी परिस्थिति स्वकर्म पर मर मिटना एक ही बात है। अर्जुन में अपनानेका क्या हित है। सजनोंकी हत्या और पापक डरसे युद्धमें भाग नहीं लेना चाहता था, उसने साफ शब्दों में गोविंदगीताका दृष्टिकोण से कह दिया था कि मुझे राज्य और भोग नहीं गीता स्वतंत्र विचार प्रधान ग्रंथ न होकर एक धर्म चाहिए । इसका समाधान करने हुए श्रीकृष्ण प्रधान है, इसके वक्ता हैं "श्रीकृष्ण" और श्रोना कहते हैं,-अर्जुन तुम क्षत्रिय हो, ल इना तुम्हारा
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy