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________________ २६.1 अनेकान्त वर्ष ११ ploymeut) भी बढ़तीही है। इस तरह खुद और युद्धकी हो तो सारे सूर्य मंडल (था हमार विश्व) पर उसका तैबारी हर तरह विश्वका "भार" (burden) बढ़ातीही मधुरण प्रभाव पड़ेगा-उस समय क्या होगा कहना कठिन है-पटाती जरामी नहीं। पाप वोहर रहके बनते है, वे है। एक देश या व्यक्ति इस पृथ्वी पर है उसके बाय मखग । युदसे बेकारीकी समस्या कभी इलभी नहीं हो वे बात होगी ही। देश या संसार जीवों या व्यक्तियोंका सकती, मह तो और अधिकाधिक जटिल ही होती जायगी। एक बहुत बड़ा घर या समुदाय है । हर व्यक्ति जो कुछ यहोवा शान्ति और विश्वव्यापी निर्माणात्मक कार्यों करता है उसका असर इकट्रा होकर बड़ा महान् हो से ही हल हो सकती है। ____ जाता है। इसे हम चूकि जामते नहीं था जानना नहीं हर एक बस्तकी जैसे “गति" होना ऊपर बतलाया चाहते इससे अब तक इस विज्ञानसे हम वंचित रहे हैं। गया है वैसाही हर एकका "माग्य" भी हुमा करता है। हम अपने भाग्यके प्रथमतः स्वयं निर्माणकर्ता है-व्यकि विश्वका भाग्य; देशका भाग्य; देशके गुहाँका भाग्य; किसी रूपये भी और समष्टि रूपसे भी पुनः हम विश्वका एक छुद्रजाति, समाज या सम्प्रदायका भाग्य; किसी कुटुम्ब परि- तम (बहुत छोटा ) "कण या भाग होनेसे उन गतियों वारका भाग्य और व्यत्तिका भाग्य अलग-अलग होते हुए और प्रभावोंमे भी सर्वदा प्रभावित होते रहते है जो प्राकृभी और एक दूसरे में इस तरह गुथे हु एवं सम्बन्धित तिक एवं विश्वमई है। इन प्रभावोंपर हमारा कोई वश हैं कि एक दूसरेसे अलग नहीं किये गसकते । हम इन मरी- हम इनके बनाए चलते हैं और इसीको नियति या बातोंको टीक-ठीक नहीं समझते (या एकदम जानते ही नहीं) मितव्यता भी कहते हैं। इसमें भी हमारे कर्मोंका माग भी इसीलिए देशों, व्यकियों एवं जातियों हितोंकी भिन्नता है पर चकिमारे विश्वका संचालन समष्टिरूपसे होता है। (differences of interests) की बातें करते और इससे हमारा श्राना कर्म विश्वको महानताके आगे इतना वैसाही म्यवहार करते हैं। वह भाग्य क्या है ? छिरे किए तुच्छ हो जाता है कि हम उसके भागे विवश रहते है। गएको समम्बवात्मक एकत्रीकरणमे होने या मिलनेवाजे ग्रहों उपग्रहोंके प्रभावको छोड़कर बाकी समाष्टरूप संसारभागामी "फल"। जैसे व्यक्तिके कार्य होते हैं से किसी भाग्यका निर्माण हर देश और हर व्यक्तिके किए कर्माके देशके भी कार्यहोते-एक अकेला दुसरा समष्टि रूप। समुच्चय फल स्वरूपही बनता है। और यदि इस तरह कई व्यकि मिलकर एक कुटुम्ब बनाते हैं । बसही देशको भी एक देश दूसरे देश पर आक्रमण करके उसे तहस-नहस हम एक बहुत बड़ा कुटुम्य यदि मामले को भाग्य या भाग्य और बर्बाद कर दे, वहां हिंसा द्वारा व्यक्तियोंकी एक बहुत फखको समझने में प्रासानी होगी। एक कुटुम्बके किसी प्रमुख बड़ी संख्या मारी जाय-बाकी लोग भी दुख और श्रभाव म्मकिके कर्मोंसे उत्पम दुख सुख सबको भांगना पड़ता है। में रोते और कलपतेही रहें तो इससे तो संसारका "भाग्य" व्यक्ति केला जो कुछ भीगता है वह तो है ही उसके जो समष्टि रूप में बनता है वह सरावही होगा। यदि हम प्रक्षावा भी वह कुटुम्बका प्राणी (भागी-हिस्सेदार) होनेसे ससारको वा संसारके किसी भागको वामय, हिसामय और कुटुम्ब पर पड़ने वाला दुख सुख भी भोगता ही है। इसी समय बनानेके बजाय प्रेममय और सुखमय बनाये तो सरह देशको बात है। जर्मनी पा जापान हार गए तो सारे समाका भाग्यभीमदर सुखद और भव्य होगा। इससे देश वासियों को उनका फल भुगतना पड़ा। इसी तरह गत भविष्यभी अच्छा, उत्तम मौर शुभ्र होगा, एवं वर्तमानमी महायुद्धसे उत्पन्न हुई मंहगाईने सारे संसारको "मय" अशान्तिमय न होकर शान्तिमय होगा। संसारमें इस डाला। सारे देशोंके कर्म मिल मिलाकर संयुक्त रूपसे भव्यताके फलस्वरूप अच्छे-अच्छे काम और घटनाएं होंगी, विश्व भाग्यका निर्माण करते है। हो, ग्रहों उपग्रहों वगैरह प्राकृतिक उत्पात कम होंगे और योग स्वतः स्वाभाविक का प्रभावभी हर एक पर स्वाभाविक रूपसे को पड़ता और परकी उच्चता, महानता, सौम्यता और शुद्धताकी रहता है वही ।माल किपदि पुच्छ सारा "पून- तरफ बढ़ते जायेंगे, प्रेम और सुख दिन-दिन पहेंगे और केतु" इस हमारी पृथ्वीसे टक्कर का जाप तो उसका भोग बांगोंकी नैतिक प्रगति नीचे न होकर उत्तरोत्तर "क" तो सभीको भोगना होगा। यह है संसारण माम्य । यदि होगी । संसारमें पुनः "सत्ययुग' का आगमन होगा और सूर्य गाज हो जाय वा उसमें कुछ भारी उथल-पुथल सभी हम मानवताका उच्चतम ध्येय और मादर्शकी प्राप्ति
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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