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किरण ७८]
विश्व एकता और शक्ति
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सर्राष्ट्रीय राजनीति पश्यम्त्र और भीतरी पुरानापन प्रारम निर्भरता एवं पारमसम्मानकी नागरिकोंमें दि होती पाकरता इसे भागे बदने नहीं देखी । देशमे इतना रहती है। भाजगढ़ में मी सामायिक विभेद बहुत भीषण सामाजिक और माथिकषम्य है कि सुधार और बड़े है। गो ऐसे नहीं जैसे भारतमें है-फिरभी इतनी ही उतिकी सारी चेष्टाएँ भ्रष्टाचारका माधार पाकर इस विषमताके कारण इंगळे सामोंका उत्पादन की वैषम्यको और अधिकाधिक बढ़ाती ही हैं। जहाँ इतने कर्मचारी ( Per Employee) पीछे अमेरिकासे बहुत अधिक लोग गरी, दुस्खी, हित और हाहाकार करते कम करीमपाधीके बराबर है। भारतमें तो दोहरी बंधन रहेंगे वहा सरचा सुख पाशान्ति भला कैसे हो सकती है? पा गुलामी और अधिक कही-फिर हमारी उम्नति अमेरिकामें ही सामाजिक विभिन्नता केवल काले गोरों व गैर व्यवस्थामें परिवर्तन किए होना सम्भव नहीं। (Negros & whites)कबीच ही कुछ है इसले कम्युनिटी प्रोजेक्टभी मोही गरीषको भी कुछ बेहतर वहां उन्मति शीघ्र हुई यपि वहांके सबसे नीची श्रेणी बनाये पर वे उससे कई गुमा सम्पन्न पमियों को बनायेगे। वाले लोगमी यहकि मध्य वर्गीय लोगोंकी तुलना में काफी इस तरह पे विषमताको अधिक बढ़ानेमें ही सम्पन्न हे पा प्राधिक वषम्यता निम्नवर्ग और उच्चवों में सहायक होंगे यदि जमीनका समान पटवारा नहीं होता बहुत दी है। यह उपन्यही शोषण, ईर्षा, भ्रष्टाचार और झार्षिक समामता अधिकसे अधिक-यथासंभव हर तरह के यनाचार और दिसादिको उत्पन्न करता और नहींकी भाती है। यही बात पंचायती द्वारा गांगोंक नियबढ़ाता है। आज बरकाका मामा जीवन दिन व एके साथभी दाग। दं-चार पन्चायतियां अग्छे दिन नीचे गिरा जा रहा है युद्ध और युद्धसे उत्पन्न पन्धोके मिल जाने के कारण भलेही सफल हो जाय, पर कही-बड़ी मादनियां मनुष्य की अधिकाधिक कोमी एवं पंचानवे फीसदी वेईमामीको ही बढ़ाने वाली वा शोषणको
बमासी है। एटमे सफलता लरकी इच्छापा और उत्तेजना देने वालीही सिन्दू होगी। फिर ऐसी हालत में सीम की ससमें सिरदर और नेपायिन सं हम विश्वशान्तिको स्थापनामें क्या सक्रिय मदद कर सकते बड़े-बड़े लुटेरे और हिसक एवं मूर, म.दिर भार गजनी अपनी शान्ति और विश्वशान्ति के लिएभी हमे अपने जैसे लोग न जाने कितने हुए पर इन देशकोहालत सौ.-तरीके बदलने होंगे । शिक्षाका स्वरूप' भी बदलना भाजक्या है ? किस शके भायरे इं. नीन-चार सापों- होगा। सारमें 'सच्चे ज्ञान का विस्तार करना होगा। की अवधि ही यह बतलाती है कि वह सपख हा या अमेरिका इंगर और स्स चीनको बनाना होगा कि ठरूका पतन हुचा। बड़ी की लूटमार चौरहिया करने उनकी अलग-अलगकी सच्ची भनाईभी बाकी दूसरोंकी
पाने वालोंवा अन्तिम तन और नाश अवश्यम्भावी है। भलाई में ही सन्निहित, गर्भित या शामिल है। वे बजाय क्याही अच्छा होता कि इंगलैंड और अमेरिका नागाशाको युद्ध कर युद्धकी तैयारियां करनेके बाद भी यदि वही
और हिरोशिमाको भयंकर हिंसानों के बाद अधिक हिंसा उत्पादन धीर निर्माणात्मक शक्ति पिछ.गरीब, दुखी देता. नहीं करते कराते । पर कोरियाका विध्वन्स इन लोगों की उन्नति जगायो अपना भलामी करेंगे और संसारका पंक नीचे भय भी हरहा है। भली भावुक्ता कहकर मना करनेमे सुख पूर्ण वातावरण जो उममें पैदा होगा बाताबदी जाय पर इन सिायीका अन्तिम फल भी. उसमे ये भी सचमुच सुखी होंगे और तभी स्थाई शान्तिभी भी परछाया भला नहीं हो सकता। ये युद्ध होते ही संसारमें हो सकेगी। क्यों है?धिक सम्पत्ति और प्रभुता पाने या बढ़ानेक पहले अर्थशास्त्री ( Econom.sts)हत थे कि किए पापसी जागटसं । इमामूल है बाकि वैषम्य । युद्धसे जनसंख्या घरी पर यगे बात ठीक उलटी हो भारतसभी दुखदैम्प र करने के लिए इस व्यापक भार्थिक गई है। युद्धकी तैयारियां करने वाले या युद्ध में रत देश वैषम्यकी और प्रगतिक लिए सामाजिक वैषम्यमी दूर रसमय जोरोंसे अपनी जन संख्या तरह-तरह के उपायोंसे करना जरूरी है। जितना अधिकाधिक ये दूर होंगे उसना बढ़ाते हैं। नतीजा यह होना कि युद्ध जितने भादमी ही अधिकाधिक हम उन्नति और सुख-शाrिai तरफ मरते हैं उनसे कई गुमा जन संस्था तब तक विभिन्न देशाम बदते एवं शक्तिशाली होते जायेंगे। इसमें भागमविवार बढ़ जाती है। जम मण्या नेमे पकारी (union.