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होगा कहना कठिन है-पर ग्राम जर्मनीको हरा कर भी सारा युरोप त्रसित, दुखित बौर अभावोंसे पीड़ित है । अभी वो अमेरिका उनकी मदद कर रहा है पर अब स्वयं अमेरिका युद्ध में पूर्व रूपसे शामिल हो जायगा तो वहाँ की सम्पति भी तो विध्वंस होगी ही फिर उसके विरोधी मी खुप बैठे नहीं रहेंगे। उनके पास भी तो हो सकता हैम हो दूसरे अस्त्र शस्त्र भी होंगे ही यदि वह भी मान aिया जाय कि अमेरिका के अस्त्र शस्त्र अधिक संहारकारी हैं और उनके कम होगे, तब भी अमेरिकाकी बड़ाईकी जीत हार युरोप वालों पर ही निर्भर करती है यह तो निश्चित है कि यदि आगे कहीं युद्ध हुआ तो वह बुद्ध कई गुना भयानक एवं विध्वम्सकारी होगा | फिर उस महा विनाशकारी युद्ध में यही क्या ठीक है कि युरोप वाले बराबर अमेरिकाका साथ ही देते रहेंगे विरोधी भी कम शक्ति वाला नहीं है और अब 'दूरी' की माप बहुत कम हो गई है एवं समुद्रका व्यवधान भी अब पहले के शतांश भी बाधक नहीं रहा। रूस, चीन बहुत बड़े देश हैं उन्हें जीतना और फिर जीत कर इस आधुनिक सजग-संज्ञान काल में वश में रखना आसान नहीं है। फिर उन्ह ने भी अपनी तैयारियों कर रखी हैं तब अमेरिका रूसके टक्कर मे बाकी पश्चिमी युरोप भी तो बर्बाद हो जायगा । और यदि फ्रान्स, इलैंड खतम हो जाय तो अकेला अमेरिका क्या कर सकता है ? भले ही अमेरिका बड़े महासागरोंसे अलग होने से बच भी जाय पर युरोपके नष्ट हो जाने पर सो वह जीत कर भी हार जायगा और हार कर वो हारा रहेगा ही । शायद अमेरिका के राजनीतिज्ञ लोगोंने प्रश्न या मसले के इस पहलू पर कभी ध्यान नहीं दिया है । यदि यह कहा जाय कि युरोप में युद्ध में छेद कर एशिया की भूमि पर या केवल चीन पर ही युद्ध होगा तो यह तो मानी हुई बात है कि फिर वह युद्ध एशिया ही तक सीमित कभी भी नहीं रहेगा वह कमसे कम पश्चिमी युरोपमें तो अवश्य ही तुरन्त फैल जायगा और उसकी भयंकरताका अन्दाज कोई भी जानकार लगा सकता है । फिर इतनी बड़ी जनसंख्याको हिसा करके संसारका कोई देश न सुखी हो सकता है न शक्ति ही प्राप्त करा सकता है । सारा विश्व एक है। एक सूत्रमें गुंथा हुआ है। प्रकृलिने सारे संसारको एक बना रखा है। एक
अनेकान्त
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[ वर्ष ११
जगहकी रेडियोकी बोली सारे संसारके बातावरण में फैल जाती है । मानवका हृदय और मन बड़ा भारी 'रेडियो' की धाराओंको जन्म देने वाला और फैलाने वा है। यहाँ बड़ी हस्यायें करके कोई सुखी नहीं हुआ। संसारका इतिहास यही कहता है। चाहे रूस हो या अमेरिका बड़ा भारी युद्ध करके कोई सुखी नहीं होगा- दोनों का विनाश किसी न किसी रूपये हो जायगा ।
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यदि अमेरिका दे कि रूसके बरसे वह भयानक बहुव्यापी व्यूह बन्दी सभी जगहों में कर रहा है और तैयारियाँ कर रहा है तो यह भी भारी भ्रम और गलती है जैसा कार होता है वैसा ही फल भी होता है। या प्रचार और बुकी तैयारी शान्ति नहीं हो सकती है । आापसी सुलह मसलहतने ही या मिलजुल कर किसी मध्य मार्गको हद निकालने से ही विरोधके कारणो को दूर कर मनोमालिन्य हटाया और शान्तिका बोज बोया जा सकता है। क्या ही उत्तम होता कि अमेरिका का पूंजीवादी गुह और रूसका साम्यवादी गुह इन बातोंकी सत्यताको ज्ञान जाता और समककर उचित उपायों द्वारा संसारको और मंमारके लोगोंको भयानक हर वक्त के भय से छुटकारा दिलाया ऐसा करके और आपस में सुह और मेल करके ही दोनों प्रतिस्पर्धी स्वयंभी सुखी होग और संसारकी भी सुखी बनावगे । इसी स्थाई शान्ति स्थापितकी जागो । यही करके अमेरिका बगैर पूजी वादी देश नैतिक पनपने देशवासियांकी रखा करके
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fait an. (Netural decay, disintegra
ti and doom ) 'वनाशमे बचायेंगे और रूम, चीन के साम्यवादी शमी 'आमा' ( Soul ) की महत्ताको जानकी फुर्सत पाकर उच्चत्तम हो सकेंगे । और सभी मिलकर बाकी दूसरे एशियाई देशों और पददलित लोगोंकभी सुखी एवं समृद्धशाली बनाकर स्वयं सचमुच सुखी हो सकेंगे ! जबतक साग संसार सुखी नहीं होगा-उसका एक हिस्सा अपनेको सुखी समझता हुबा भी सच्चे अर्थोंमेंरी रहेगा में जिसने अधिक से अधिक प्राणी सुखी और निश्चित होते जायेंगे सच्चे सुखकी वृद्धि अपने आप होती जायगी। यही संसार ब स्वर्गसे भी अधिक अन्य सुखी और सुन्दर हो आया।
संसारके दो बड़े-बड़े 'गुट्टों' में बंड जानेके कारण भारतकी तटस्थतामई दास पड़ीही शोचनीय रही