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________________ - किरण ७८] विश्व एकता और शक्ति [२८७ Knowledge)ो हरगिज नहीं है। इसीके प्रभावमें अमेरिका या दूसरे जीवादी गुह वाले देश रूस, चीन हम संसारव्यापीरूपमें "बहके" ही चले जारहे है। और साथ ही साथ एशियाको अपने सुख समृद्धि के लिए धर्माधिपतियों या धर्मगुरुपों और धर्मपितामोंने अपनी बर्बाद करना या अपना गुलाम बनाना चाहते हैं तो यह "रोजी" बनाए रखने के लिए मियाभाषमानोंको विभिन्न उनका श्रम और भारी ग़जती है सारा विश्व एक ममाओंसे दूर नहीं होने दिया, फिर संघर्ष होता ही रहता दुख सुख एक साथ होता है। यदि एशिया बाले दुखी है। धर्मोंका व्यापक सुधार पुननिर्माण (Reorie- तो अमेरिका वाले भी उनकी माहोंसे निकले पुद्गहntation) और एकीकरण संसारमें शान्ति स्थापित वर्गणामोंकी बाराप्रवाहके बागवायमें परम प्रशान्त करनेके लिए अत्यन्त जरुरी है। और विषुब्ध है। किसी भी अमेरिकनका दिल भीतरसे म जाने किस प्राचीन कालमे 'ईश्वरवाद' और देखिए वह कितना मशान्त और उहिग्न हैयह मारमा'अनीश्वरवाद'का मग चला पाता है। बाज वही का हनन करने वाला और भावी संतान (Generation) भगवा जीवाद और साम्बवावमें परिणत हो गया है। को हुवा देने वाला है और भी क्या निश्चय है कि एटमइस झगडेको किसी 'मध्यमार्ग द्वारा' समझौता करके बोका प्रयोग सफल ही होगा। जर्मनी भी तो सारे खतम करना होगा यदि स्थायी शान्ति और सच्चा सुख स्सको जीत कर सारे युरोप और फिर सारे संसार पर हीपष्ट हो तो विभिन्न देशोंके लोग जिसे प्रगति और हावी होना चाहता था। पर क्या हुमा नेपोलियनने सुख समझे बठे हैं वह सचमुच मृगतृष्या या मृगमरीचिका भी फ्रान्सकी प्रधानता सबके ऊपर स्थापित करवीणही ही है-उससे स्वयं उनका पतन और विनाश ही अवश्य थी। क्या हमा! प्रकृतिने ऐन मौके पर उनकी सारी म्भावी है। अपना पतन या बिनायसे बचने और सारे पाशाओं और तैयारियों को मिट्टी में मिला दिया। पीसंसारकी चाके लिए भी रूस और अमेरिकाको एक लिपनको भी हार और अन्त होने में प्रकृतिका बड़ा दूसरेसे मित्रता करनी होगी। गहरा हाथ रहा जिसे इतिहास पढ़ने वाले अच्छी तरह भाज अमेरिकाके एटमयमोंसे सारा संसार र जानते है। रूसमें हिटलर और जर्मनीके अत्याचारोंको सा कि कहीं अमेरिकाके लोभी पंजीपति मालिकोंने भी अम्त करने के लिए उत्तरी बर्फीली हवा ऐसी बसी साम्यवादको मिटानेकी जिद्दमें एटमयमोंका व्यापक जैसी पहले कभी नहीं चलो थी-तीन चौथाई जर्मन फौज प्रयोग करने के लिए यदि युद्ध ब दिया तो क्या हालत उस बर्फमें जम गई और सारी कोबी वाला और युद्धहोगी ? सब कोई मुंह बाए, आँख फैलाए, भयास की व्यवस्था टूट कर छिन-भिन्न हो गई । जर्मनीके सपनोंएक दूसरेकी भोर सूना सूमा-सा देखते हुए किंकर्तव्य- कापत हो गया। क्या ऐसी हो कोई बात अमेरिका विमूह हो रहे है। एशियाई देश तो हमने जोरों में महम एटमयमके प्रयोग करनेके पहले ही नहीं हो सकती। गए हैं किजिसकी इन्तहा नहीं। क्या अमेरिकाका इससे धर्मादा खराब है। एकदा पुष्छन वारा-भूमकेतु मला हो सकता है। यह विचार करनेकी बात है। (A big Comet) यदि किसी पध्मबमके भागारएशियाके गरीब देयों और गरीबोगोंके लिए किसी के स्थानसे करावे तो समम बीजिये कि अमेरिकाका 'वाद' में कोई दिखचस्पी नहीं। उन्हें तो किसी तरह भर वो बारमा हो ही जायगा वीके बाकी दो बिहाई पेट खानेको भिखना चाहिए। हो सके तो कुछ पहननेको मानव भी उनके और विस्फोटसे पैदा होने वाली और एक पर भी धूप पाबीसे रसके लिए परिहो हलचलोंसे मृत्युको प्राप्त होंगे । संसारमें कुवमी बाप तो काफी है। यह चाहे किसी 'बार' से मिले । रूस असम्भव नहीं। और चीनने योदे समबमें ही गरीबोंको बाइस बंधाने दिमान कि धूमकेनु नही ही बावे और अमेरिका बाली व्यवस्था इस तरहकी बनाई जिससे कोई भूगम रूस, चीम या पशि- किसी बड़े भागको एटमबमोंरहे। जो सारे देश में है या होता है उसे सबकोई की मारसे पर्वाद दे तो क्या अमेरिकामें ही शान्ति 'बाँटकर' भोगें और सबसबके दुख सुख साथी बनी रहेगी ? पवावे इस तरह बिनाश पथकी भोर मनहो। इसने एशियाके गरीबोंका ध्यानींचा अववि सर नहीं होंगे। भविष्य कोई नहीं जानता । बागेवा
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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