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अनेकान्त
[वर्ष ११ सममकर हम बबग-बाग समाज, देश या माति से छुड़ा देना या जिन्न-मित्र कर देना ही मानवताका इत्यारिकरूपमें ही सारी व्यवस्था एवं सामाजिक निर्माण- उच्च मादर्श हो गया है। पहले यदि एक पुदमें का बादर्श मानते हैं। यह हमारी भ्रम या गलती सबीस हजार भादमी मारे जाते थे तो वही अब एक-एक हमारे संसारकी मो अति प्राचीन काल भ्रमात्मक- एटमबमसे लाखों व्यक्ति (जवान, खे बच्चे, मान्यवानोंके व्यापक विस्तारके फल-स्वरूप चखतीही मई औरत समी)ो युद्ध में शामिल है भी वो नहीं माई। विज्ञानका विकास को हुया पर 'सच्चे ज्ञान' है वे भी सभी मारे जातेइसीसी "डेमोक्र सी" कामावलीहा। इसी कारण माज विज्ञान संरक्षक (Democraev) कहते हैं। हंगर अमेरिकामें धनयोंहोनेके बजाय विवंसक हो गया है और सममा का राज्य है कि रूसचीवमें साराका सारा देश एक माने बगा। अमेरिका और रूस प्राजे यदि बडे कटम्बकी बहो कुछ होता बाँटकर खाने और सस विसे यह समम किर मानवका सुख- सदख में समान भागबेनेकी व्यवस्था है। पूंजीवादी दुख समाम भार एक जगहकी हत्याप्रति उत्पन्न देशों में सब दसका परिमावधनी और गरीब होनेकी माहों और एक हल-चक्षसे व्यथित या विसुन्ध कमीवेशी पर गिर है। जो अधिकवे और अधिक वातावरण दूसरेके प्राकाश मण्डल या वातावरण को भी सुखी होना चाहते है भले ही सनके सुख या संपत्तिकी बोभित और व्यथित करता है तो सारा मादा और वृद्धि के लिए गरीवको और अधिक दुखी या गरीब होना संसारके विनाशका भय दूर हो जाय | सारा अपराध पर इसकी उन्हें पर्वा नहीं। गरीब अपने 'दुर्भाग्य' का प्रथमतः धर्माचताका है और बादमें पहंकारसे उत्पन्न भोक्ता और भनी अपने सौभाग्यका मालिक है। दोनों में शिरकारों एवं धर्म-सिद्धान्तों में बड़ा गोलमाल हर संघर्ष' बराबर पलता ही रहता है। किमीको चैन नहीं रजगह फैला रखावेज्ञानिक जोगभी अभी अखिन इसेही यदिनांग सुख मान बैठे हैं तो यहगतो सुख है। रिव रूप में परमाधिक प्रभावके सिद्धान्तको नहीं जान मान्ति ही। यह तो शाश्वत अशान्तिका करने वाला पाए। विडम्बना तो यह है कि उनका ध्यान ही अभी और वर्तमान एबीवादी व्यवस्थामें वहाँ धनही सुख, कार नहीं गया है। जरूरत है कि विश्वके हितैषी सन्तोष, मान, प्रतिष्ठा प्रभूता पौर शक्तिको देने और और शान्तिकबोगहन ज्ञानिकोंका ध्यान इधर कान पाना है। फिर तो धनकी बांधा या तृष्णाका पाकर्षित करें। ये विज्ञानके पण्डित खोज 'द एवं मानव होना जरूरी ही है। और उसके बाद तो फलमगनके अपराब अपने विवेचनात्मक विचार व्यक करेंगे। स्वरूप संवर्ष', हिंसा, असत्याचरण, मक्कारी,लव प्रपंच, तो संसारकी सरकारोंको बसाने वालोंका ध्यान उधर शोषण इत्यादि अपने आप मा जाते हैं। यों भी यदि जायगा। तबध्यवस्था और शिक्षा पद्धति में सुधार लाकर ठीक तौरसे देखा जाय तो धनकी अधिकता सच्चे सुखको राष्ट्रीय भावनाके साथ-साथ मानव मात्रको अपना कुटुम्बी नहीं उपजाती बह तो एक भुलावा या भ्रम है जो भांतरिक निधी, हरपल्के पुण्य पापों और हरएकके दुख सुखका अशान्तिका सृजन करती और बढ़ाती ही है। साथी एवं हिस्सेदार समझने की भावना उत्पनकी जा वह तो अवनतिकी मोर ले जाने वाला ही है । बोग सकेगी बनी संसारसे युद्ध और हिंसाएं बम्ब होगी। अपने प्रज्ञाममें इसे न समझते हुए दुबसे बिललाते हुए अमीनोमो धनी है वे अपने धन और प्रभुताके मदमें भी विवश बसते हो जाते है और कि उन्हें दूसरा कोई इसने मापाकि गरीबको मनुष्य ही नहीं गिनते। इससे अच्छा मार्ग या बात मालूम नहीं इससे इसेही पकरे इस युगको सम्बयाका युग करते हैं इसलिए कि खुला हुए है। हाँ महार या निम्न स्वार्थपरताले उत्पा अत्याचार व्यक्ति द्वारा वकिपर किया जाना बबिंत मोहान्धकारके कारण दूसरेको समझने के बजाय हमेशा समका जाता है. पहले पुनरों में सिपाहियोंके अंग-भंग गलत मानकर दुश्मनी या विरोध ही करते रहते हैंकरने की ब जाय 'जंगली' कहा जाता है। इससे संसारमें दुख और अवनति पड़ती जाती है। भवम्बधिको प्रच्चा तरीकोंसे अपने वामें करना और विज्ञान लि. बम विज्ञान कहते है व्यापक बस्तु युद्ध में बम गिराकराणामारों धामोंको बीच भार- शाम मोहीकोपर "मुबानपा सम्बयान (Right.
हा जाता है। गत मानकर दुरमनी या विरोध
अब पतिको
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