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________________ किरण ७८] विश्व एकता और शक्ति [ २८५ (Astronomy) को गणनाएं इस बातका एक बहुत रहता है पर इन क्रियात्मक गतियों वा हिलने होखनेका भी पदा सबूत देवी हैं। ग्रहों उपग्रहोंका स्थान परिवर्तन बाध्यापक प्रभाव इस तरह पुद्गल वर्गणाओंके निस्सरण, इतमा व्यवस्थित है कि सैकड़ों वर्षों बाद ठीक विस अनुसरण और प्रवेशादिसे हर व्यक्ति या साकार समय कौन-कौन ग्रह कहां-कहां किस स्थितिमे तथा एक दूसरे व्यक्ति या वस्तु पर परवाही है। सारा शरीरमी को दूसरेके अपर क्या प्रभाव डालते रहेंगे ज्योतिषी ( Astr- पुद्गलों ( Matter particles) का ही बना हुधा है onomens) बड़ी खूबीसे हिसाब करके बतला देते हैं। इससे यही बात उस समयभी होती है जब हमारा मन सूर्य हमारे सूर्य-माखका सबसे बड़ा और सबसे एकान होकर विभिन्न बातोंके सोचने, विचारने मादिका अधिक प्रभावशाली ग्रह है। सूर्य एक जलता हुआ बड़ा विषय बदलता ही रहता है। भारी गोला है जिससे निकलकर किरणोंके रूपमें करोड़ों मेरे कथनका सारांश संक्षेपमें यह है कि संसारमा जब पुद्गल ( Matter) विभिन्न रूपोंमें हमारी पृथ्वीपर विश्व में कोई वस्तु या जीवनरेखा नहीं है और हर एक एवं सभी ग्रहों उपग्रहों में पहुँचतेही रहते हैं। ये ही गर्मी पर सारे विश्वकी वस्तुओं, जीवों और उनकी गतियों एवं भी देते हैं जो सारं शक्तियों की जननी है। सूर्यसे माने हनन-चक्षनका प्रभाव इसतरह पुद्गल वर्गवानों या वाले इन पुद्गलोको हम स्वतः महसूस करते है। पर धारामों और किरणों द्वारा पढ़ता ही रहता है। हम इसे सूर्यसे ही नहीं हर प्रहसे इसी तरह की पुद्गज वगंणाएं नहीं जानत इसी कारण संसारके वैज्ञानिक, विद्वान्, राज(Molecules of Matter) हर दूसरे ग्रह तक कम या नीतिज्ञ और दसरे लोग यह समझते रहते हैं कि एक वेश रफ्तार या तेजीसं जाती है और उसी अनुपातमें देश दूसरे देश भिम यामबग है अमेरिका समझता अपमा प्रभावभी एक दूसरेपर पैदा करती हैं। यह हमारी है कि उसके पास बेइन्तहा धन और सामान इसमे पृष्धी (Glole orearth) भी यही बात करती रहती वह बाकी संसारके दुखी रहते हुए भी अकेला सुखी है। है सूर्य इत्यादि सभी दूसरे ग्रहोंका भी असर इस पर गलैंड चाहता है कि बाकी सारा संसार दुःकी रहेका पड़ता है और दूसरोंपर यहभी अपना प्रभाव डालती है। मुखी उसके पास अधिकाधिक धन कहीं-कहींसे किसी पृथ्वीही नहीं इस पर रहने वाला हर प्राणी हर समय न किसी उपायसे भाग रहना चाहिए ताकि सम्पद बना ये पुद्गल वर्गणा (Moleculcs of Matter) रहे। हर व्यक्ति हर देशका यही स्वाहिश रखता है और अपने हर तरफ अपने इस पुद्गल कृत ( Matle of वैसा ही वर्तता भी है कि यह दिन पर दिन अधिकाधिक Matter) शरीर- विकीर्य करताही रहता है। दूसरे धन संपति बटोरता और बाता जाय कि दूसरोंसे शरीरों और वस्तुओंसे निकली वर्गणाए भी हर प्राणीके अधिक प्रभावशाली और खुश होता रहे। इसीके लिए शरीरपर असर करतीही रहती है। सारा वायु मंडल एक देश (या एक व्यक्ति) तरह-तरहके उपायोंसे एकपुद्गल परमाणुओं एवं वर्गणामोंसे भरा हुमा है। हर दूमरेको लूटता-खसोटता है और युद्ध हिंसा इत्यादि करते बरहकी किरण और धाराएं निकलती एवं प्रवाहित होती ही रहते हैं। बी प्रभावशाली देश (या व्यक्ति) शक्ति ही रहती हैं। ये हर व्यक्तिपर अपना असर रातो रक्षती सम्पन्न है वे दूसरे अशक्त देशों (या पक्षियों) को वषा हैं। हमारे भोजन पागका असर बो हमारे उपर पड़वाही शक्ति मागे पड़ने देना या उठने देना नहीं चाहते इसहै। हम जो कुछ करते, कहते और सोचते हैं उसकाभी बरसे कि कहीं उनकी प्रभुता कमन पर बाय बाट असर हमपर और हमारे चहुंओर पड़ता है। हमारे वस्तु न माय । इत्यादि पर ये लोग सभी प्रज्ञान और अंधकार शरीरके प्राथमिक या स्वाभाविक कम्पन प्रकम्पनके अलावे में हैं। कारण यह है कि संसारके सभी देशों में प्राय: जबभी हम शरीरको हिलाते-जाते हैं नई पुद्गल वर्ग- जो शिक्षा दी जाती हैं उनका भाचारही गलत और श्रमपाए धारा प्रवाह रूपसे शरीरसे निकलती है और श्रावृत- पूर्ण सिद्धान्तों पर कायम है। सारा संसार या सारा वातावरण में ग्वेलन पैदा करती हैं। जिससे दूसरोंपर- मानव समाज एक पृथ्वी पर रहने वाला एक कुटुम्बके भी असर होता है। स्वाभाविक गतियों एवं कम्पन प्रकंपन- व्यक्तियों की तरह ही एक-दूसरेसे सम्बन्धित और अपना का तो प्रभाव जो होता रहता बहतो सर्वदा होताही पारस्परिक प्रभाव वा अमर बने बाजारपेसाग
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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