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________________ 'विश्व एकता और शक्ति' देखक-अनन्त प्रसाद जैन, B.Sc. (Eng) 'लोकपाल' इस पनि विश्व में जो भी वस्तुएं है वे सभी कंपन- भाकाशमें हम कहांसे कहां चखते जा रहे है कोई नहीं प्रकम्पनसे पुकारे सूर्य, चन्च, वारे, प्रह, उपग्रह, पृथ्वी और जानता पर यह निश्चित ध्रुव है कि ये गतियां प्राध, इनमेंकी हर एकबस्तु भी प्रबग-बग कंपन प्रकम्पनसे निरन्तर और शाश्वत रूपसं होतीही रहती है। पृथ्वीके युक्त हैं। बड़ी-बड़ी वस्तुएं पर्वत वगैरह छोटी-छोटी जीव होनसे इसीके साथ हर तरह के "नाच नाच" हुए वस्तुएं घर मकान इत्यादि या बालूके कण अथवा परम इम, मानव ) भी इन गतियोंसे सतत युक्त हैं-भलेही सूक्ष्म "पुद्गल" परमाणुसकान कम्पन प्रकम्पनोंसे वंचित हम इसे जानें, न मानें, सममें या सममें, पर ये कम्पन, नहीं है। ये कम्पन प्रकम्पन शास्वत है-अनादि कालसे प्रकम्पन और दूसरी गतियां होतीही रहती है। हमारे हैं और अनन्त काल तक रहेंगे। ये बन्द नहीं हो सकते। शरीरका हर एक परमाणुभी अलग-अलग इन गतियों और इनमें कमी वेशी किन्हीं कारखोंसे भलेही होती रहे, पर ये कम्पन प्रकम्पनादिसे युक्त हैं और ये कभीभी एक पणके हक नहीं सकते । यह सोचना भी कि यदि ये पण भरको लियेभी, बंद नहीं होते | यही बात हर वस्तु, हर जीवभी बन्द हो जाय तो क्या होगा-मूर्खताकी बात होगी- जन्तु, हर पेड़ पौधे, एवं हर अणु परमाणु के साथ लागू क्योंकि यह होगाही असम्भव है। यही विश्वका नियम है है। हमारा जन्म विकास, परिवर्तन, मृत्यु इत्यादिइन्हीं इसमें व्यविक्रम पा व्यवधान नहीं हो सकता। इसी द्वारा उत्पन्न नियन्त्रित एवं सतत परिचालित होते कम्पन प्रकम्पनके कारणही विश्व में सदा सर्वदा सूजन, रहते हैं। उत्पादन और विनाशका क्रम चलता ही रहता है। पुरानी- ये क्यों होती है ? संक्षेपमें हम इतमा जान कि का परिवर्तन और गएका जन्म, गएका पुराना होना और कोईभी परमाणु, वस्तु, व्यक्ति, जीव या ग्रह उपग्रह या पुराना बदलकर कुछ और नया धनमानका तार तम्य कुछभी जो इस विश्वन (या संसारमें ) अपनी अवस्थिति कभी नहीं टूटता । इसीको समयका प्रवाह या समय चक्र- रखता है अकेला नहीं है। हर एक इस महान विश्वका केंद्रभी कहते हैं। ग्यकि, समाज, देश और देशोंके गुहोंकी बिन्दु कहा जा सकता है और हर तरफ अनन्त तक हर परिस्थितयों में भी हर समय परिवर्तन होताही रहता है। एक तरह-तरह की इन चीजोंमे घिरा है जो हर ओरसे समय एकसा कभी नहीं रहता । समयगति शीख है इसकी अपना कम-श प्रभाव बाबतीही रहती है। श्राकर्षण गति कभी रुकती नहीं । समयकी गतिके सायही सब कुछ प्रत्याकर्षणक बारेमें तो हम बहुत कुछ सुन या पढ़ चुके हैं पखवाया है। एक-एक पण था एक एक पके और जानते है पर इनके अलावे चोरभी पाश्चर्य जनक शश, सहस्रोश पालशमें भी यह तब्दीखी, परिवर्तन प्राकृतिक क्रियाएँ (Natural Phenomena) ऐसी अथवा क्रमिक विकास या हास इत्यादि स्थगित नहीं होते। है जिनका असर हमेशा एक दूसरेपर क्रियाशीलता या स्थिरता कहीं नहीं है. गतिशीलताही जीवन है। स्थिरता- प्रभावकारी रूपसे पढ़ताही रहता है। इनमें समय-समय ही विनाश, बिच-भिनता पा भग्नता और सांसारिक पर कमी-बेशी भलेही हो पर बन्न नहीं हो सकते । र भाषामें मृत्यु है। वैज्ञानिकोंने यह सिद्ध कर दिया है कि ग्रह या उपग्रह चारों तरफके बाकी दूसरे ग्रहों उपग्रहोंका सभी ग्रह उपग्रह गतिशील हैं। ग्रह, उपग्रह सभी अपनो इकट्ठा प्रभाव इस तरहसे पड़ता है कि फलस्वरूप ये कल्पित मध्य पूरीपर घूमते हैं। साथही उपग्रह किसी ग्रह- गतियां अपने पापही होतीराती हैं। जब तक ग्रहों उप. को केन्द्रित करके उसको परिक्रमा करते हैं। जबकि ग्रहमी ग्रहोंकी अवस्थिति इस विश्वमें है-और सर्वदा रहेगी ही सूर्यको परिक्रमा करते ही रहते हैं इनकी विभिन्न गतियों- तब तक ये एक दूसरे पर अपना अधुरण प्रभाव डालतेही के काल-परिमाणभी विभिन्न है । सूर्यमें भी पवश्यही ये रहेंगे और इस कारण इनकी विभिन्न गतियां भी कमी बंद गतियां होंगी या हेही। अखिल विश्व, ब्रह्मायड या नहीं हो सकी। ज्योतिष या माधुनिक ऐन्ट्रो मौमी
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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