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२८०] अनेकान्त
[वर्ष ११ थे, भार वस्तु स्वरूपको सरबतासे समझाने में कुशल थे। किया था जैसा कि उस प्रन्यके निम्न प्रशस्ति पथ कुण्डअापकी कविता बड़ीही रसीली, भावपूर्ण संक्षिप्त और सियासे स्पष्ट है:वस्तु तवकी निदर्शक है। करिने अनेक प्रन्योंकी चनाकी
संवत् अष्टादश धरौ जा ऊपर इक ईस । है, जिनमें से इस समय मुझे कुल दो रचनाएँही प्राप्त हुई
सावनसुदि परमा सु-रवि वासर धरा उगीसा हैं। चतुर्वित जिन पूजा और परमानन्द वलास । इनके
वासर धरा जगीम ग्राम नाम सुदुगौडौ । अतिरिक्त इनकी एक रचना और बतलाई जाती है जिसका
जैनी जन बस वास औड सो पुरवोडौ । नाम 'प्रवचनसार भाषा है जिसमें आर्य कुन्द-कुन्दके
मावंतसिंघ सुराज आज परजा सब थंवतु। प्रवचनसारका पद्यानुवाद है। यह प्रन्य अभी तक
जहँ निरीकरि रची देवपूजा धरि संवतु ॥ अपनेको उपलब्ध नहीं हुभा। वह सम्भवतः उनके निवासस्थान दुगौडा ग्राम या बुन्देलखण्डके अन्य किती शास्त्र
उस समय भोरछा स्टेटमें गजा सावंतसिंहका राज्य भंगरम होगा, जिसका अन्वेषण करना आवश्यक है। इन
था, जो राजा पृथ्वीसिंहका पुत्र था। पृथ्वीसिंहने बोरछेमें
सन् १७३९से सन् १७१२ तक अर्थान् वि० सं० १७६३से कृतियोंका संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है:
1८०६तक वर्ष राज्य किया है । इनके समय राज्यका -तुर्विशतिजिन पूजा-इम जैनियोंकि वर्तमान बहुत कुछ हास हो गया था, क्योंकि उस समय गजपूत बीमतीर्थक की चोवीस पूजाएँ दी हुई हैं, को विविध राजा और मुगल बादशाह दोनोंही मरहटोंके शिकार छन्दों रची गई है। रचना सुन्दर और भाव पूर्ण है। हो रहे थे । इस कारण मड-पानीपुर बहासागर और इसकी लिखित प्रनियाँ अनेक ग्रन्धभण्डारों में उपलब्ध मामी भादि जिले उम समय राज्यसे निकल गए थे। होतीकविने इस कृतिको चिपुरी ललितपुर प्रादि जिससे भोग्छ। स्टेटकी आमदनी बहुत कम हो गई थी। विभिख मानक उनसद्धबह सज्जमों की अनुमतिसे बना• पृथ्वीसिंहके पुत्र मामिह मन् १७५२ वि० सं०1०हमें कर सम किया था जैसा कि उस ग्रन्धक निम्न पद्यसे राज्याधिकारी हुए थे। इन्होंने सन् १७५२मे सन् २०१५
वि.सं. १८०३मे १८२तक ३वर्ष राज्य किया है। छिपुरी छगन ललितपुर लल्ले,
सन् १७५६में अहमदशाहने भारतपर आक्रमण किया कारीविर्षे कमल मनभाएँ।
था, उस समय राज्यके अन्य भागोंके साथ उक्त रियासतका टिहरी मैं मरजाद तथा पुनि,
'पाठगढी' नामक स्थानमी राज्यसे निकल गया । सन गंगाराम वसत विलगाएँ।
१७६में जब पानीपतकी तीसरी लडाई हुई, उसमें मरहठे देवीदास गुघाल दुगौडे,
कमजोर हो गए। और मन में बक्सरकी सपाई हुई. उदै कवित्त कलाके श्राएँ।
जिसमें अंग्रेज भारतमें सबसे अधिक विष्ठ माने जाने
बगे। रीवामे वापिस लौटते समय देहबीके बादशाह शाह भाषा करी जिनेश्वर पुजा,
पाखमका सावंतसिहने बड़ा भारी सन्मान किया। जिसके छहों श्रीरकी आज्ञा पाएँ ।
फलस्वरूप उसे 'महेन्द्रकी पदवी और शाही मंडा मिला। कपिने इस पूजाका रचनाकाल वि. मं. १८२१
सन् १.(वि.सं. २२) में सावंतसिहका स्वर्गवास बावन सुदी पामा (पतिपदा) रविवार दिया है और उसे
हो गया। पोरका स्टेटके दुगौडा नामक ग्राममें जहाँबहुतसे जैनी
सरी रचना परमानन्द विलास है जिसे देवी विलास बन बसते थे, राजा मानसिंह राज्यमें बनाकर ममाप्त
भी कहते है। इस संग्रह प्रथमें समय-समयपर रची गई पच गम्खिलित माम-संचित और अधूरे जान पड़ते अनेक छोटी बनी रचनाएँ दी हुई है जिनमेंसे कई रचनाएँ है। नाम बगगमनमा बमबाखमादिहोना चाहिये। सस्कृत प्राकृत भाषाके प्रन्योंके पचानुवाद रूपमें प्रस्तुत
xोरखा राज्यको नीव मलकामसिंह गढ़कुडार है। और शेष कविके अनुभवसे रखी गई है। विकासको राजाके मेक पुत्र रुद्रप्रतापने सन् १५. कीवडाबी रमानों में एक रचनाको पोषकर शेषमें रचनाकाल नहीं बी, विलसन् १५५ कम्य किया था।
दिया गया, जिससे यह निर्णय करना कठिन है कि वे का.