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किरण ७८
बुन्देलखर
भी हो जाते थे
देखकर कुछ समय से स्वभावका विचार करते हुए 'अलभ्यशकि भवितव्यता' का स्मरण कर अन्य विकल्पसे अपनेको विमल बनानेका प्रयत्न करते थे। उनकी इस सरवृष्टिको देखकर लोग उन्हें 'अ'मी' के नामसे पुकारते थे बड़े सभी लोग उन्हें भायजी कहा करते थे ।
आपकी भाजीविकाका साघन कपदेका व्यापार था आप कपड़ेका व्यापार करते हुए हानिके अवसरों पर कभी दिलगीर अथवा दुःखी और हर्षित नहीं होते थे। वे कपड़ा बेचने के लिये अपने ग्रामसे दूसरे गांवमें जाया करते थे और बेचकर वापिस आये और फिर नया माल जाकर पुनः बेचनेका प्रयत्न करते थे जीवन - घटनाएँ
कविवर देवीदास जी एक समय अपने लघु भ्रावा
के बलित
नव विवादी सामग्री लेनेके लिये उसके
साथ
पुरका रहे थे कि मार्ग बीच ही में घुमाता शेरके । में शिकार होनेसे थोड़ी देर बाद यकायक स्वर्गवासी हो गए। इस अमति परमासे कवि हृदयको बा परन्तु वस्तु स्थितिका विचारकर उसका क्रिया काण्ड किया, और यह विचार भी किया कि मिस निभिसके लिये मैं सामग्री खरीदने जा रहा था । वह बीचमें ही काल कयलित हो गया, अत: अब विवादको सामग्री खरीदने का निरर्थक है, यदि पह मंजूर होता तो वह सब कार्य सानन्द पूरा होता पर कर्मके उदयका बानक इसी तर बनना था ! अतः अब मैं सीधा खोटकर रावास पर पहुंचे उनकी मां ने गए,
इन्हें
देखकर
तुम वो आठ दिनमें आनेको कह गए थे आज वो ५ व ही दिन है। कविन कहा मां श्रा गया। मां ने कहा, सामान कहां है और का तेरा छोटा भाई है ? मावा इन प्रश्नोंको सुन्दर कविवर पहले तो असमंजसमें पये पर संभलकर बोले, मी कमकी गति बड़ी टेही है वह बचनों नहीं कही जा सकती, सोचा कुछ और ही था, और कार्य कुछ और ही बना है। छोटा भाई रास्ते में शेरसे घायल होकर बीच में ही चकबसा है !! रामचन्द्र प्रातः इस भू. के चक्रवर्ती राजा होने वाले थे; परन्तु उन्हें बारह के लिये बनवाना पड़ा. य ने यह विचार किया था कि इस युद्धको ओठकर में
कविवर देवीदास
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सीता रामचन्द्रको वापिस छोटा दूंगा परन्तु यह सब विचार यों ही क्या रहा, और राजयको मृत्युलोकमें
मा पड़ा। इन्हीं सब विचारोंसे परिपूर्ण कविवरके एक पड़के ये निम्न वाक्य खास चौरसे ध्यान देने योग्य है, पूरा पद प्राप्त नहीं हुआ ।
"बांकरी करम गति जाय न कही। मां बांकरी करम गांत जाय न कही चिन्तत और वनत कलु श्रीरदि होनहार सो होय सही"
यह जीव कर्मके परवश हुआ वृथा ही अभिमानके द्वारा अपनेको समर्थ और बलवान मानता है । परन्तु वस्तुस्थिति इससे विपरीत है, यह की अनीश्वर-म है, और अपनी अक्रिया के द्वारा अपने मिध्याध्यासे पीड़ित होता हुआ जन्म जरा चौर मायके अपार दुखमे सदा उनि रहता है। मिध्यावसमासे दूसरोंके सुख दुःखका कद बनता है, परन्तु वह कर्मको बड़ी नटिके रहस्यसे अपरिचित ही रहता है। यही उसकी अज्ञानता है ।
भारतके अहिंसक सन्त महामना पूज्य वर्गीजीने अपनी जीवन-गाथायें प्रस्तुतकविके सम्बन्धमें उ पटना के अतिरिक अन्य फोन परनाओंका उल्लेख किया है। जिन्हें कमसे नीचे दिया जाता है :
एक बार ये अपना पड़ा बेचने के लिए '' पर थे, वहाँ वे जिन साधन बाईके मकान उरते थे। उनके पाँच वर्षका एक छोटासा बाधक भी था। वह प्रायः भायजीके पास ही खेलनेके लिए भा जाया करता था । अन्य दिनोंकी तरह उस दिन भी जाया और साथ घण्टे बाद चला गया। उसकी माँने उसके बदनसे मंगुलिया वारी, तो उसके साथ ही उसके हाथका चाँदी का एक चूरा (कड़ा) भी अंगुलिया की माँहके साथ निकल गया और वह उसमें ही कहीं घट गया जब माँने लड़का हाथ गंगा देखा तो उसका भट यह विचार हो गया कि बूरा (कहा) भावजीने उचार बिया होगा, इसी विचार से वह फटपट उनके पास गई और बोली भाषी ] [] इस बच्चेका चूरा को नहीं गिर गया ? भायजी उसके मनसापापको समझ गए और बोले कि हम कपड़ा बेचकर देखेंगे। चूरा कहीं गिर गया होगा बड़केकी माँ वापिस चली गई। इन भाषकी
अटक