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किरण ७८]
'वचः समन्तभद्रस्य वीरस्येव विजृम्भते' इस वाक्यकी योजना कर यह घोषित किया है कि समन्तभद्रका युक्त्यनुशासन ग्रन्थ पीरभगवानके वचन ( आगम ) के समान प्रकाशमान् एवं प्रभावादिकले युक्त है।' और इसमे साफ जाना जाता है कि यह प्रन्थ बहुत प्रामाणिक है, आगमको कोटिमें स्थित है और इसका निर्माण बीजपदो मम्मी और बहुये सूबों द्वारा हुआ है। महमुद इस प्रत्यकी कारिकाएँ प्रायः अनेक गद्य सूत्रोंने ममिल हुई जान पड़ती हैं, जो बहुत ही गाम्भीर्य तथा गौरवको लिए हुए है। उदाहरण के लिये य कारिका को कीजिये इसमें निम्न चार सूर्योका समावेश है
१ मे भेदात्मकमतत्वम् ।
बुन्देलखण्ड के कविवर देवीदास
२ स्वतन्त्राऽम्यतरस्वपुष्पम् ।
३ श्रवृत्तिमस्वात्ममवायवृत्त े : ( संमर्गहानिः ) ।
देश- परिचय
इस भारत-भु पर बुन्देलखपढ एक सुन्दर सुहावनामा प्रदेश । वहाँकी श्राव-हवा शुष्क होते हुए भी स्वास्थ्यप्रद और जल मिष्ट, स्वादिष्ट तथा शीतख है । इसकी इस भूमि पर अनेक भारतीय प्रसिद्ध वंशोंके वीर पत्रियोंने-कलचुरि चन्देल, गाँव, ठाकुर और बुन्देला राजद के वीर परामी रामा ने-राज्य शासन किया है। वहाँके लोग सीधे-साधे और अपनी बात धनी होते थे । यद्यपि इन्देलखण्ड एक निर्धन प्रदेश है, क्योंकि वहाँ आज भी व्यापारके विशेष साधन नहीं है। इस दशामें पहले से कुछ सुधार हुआ भी वो भी उसमें विशेष मग खाने की आवश्यकता है। यहाँ प्राकृतिक संग अनेक फलोंमे परिपूर्व होते हैं उनसे गरीब जनता अपनी उदर पूर्तिका प्रयत्न करती रहती है। आजकल ये प्राकृतिक जंगल भी राज्यशासनकी श्रायके साधन बन रहे हैं। यह हरा-भरा कृषि है, हाँ पैदा होते
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४-दामिः ।
इसी तरह दूसरी कारिकामका भी हाल है। मैं चाहता या कि कारिकापरसे फलित होने वाले गद्यसूत्रोंकी एक सूची अगले दो बाली, परन्तु उसके तैयार करने योग्य मुझे स्वयं अवकाश नहीं मिल सका और दूसरे एक विद्वान् जो उसके लिए निवेदन किया गया हो उनसे उसका कोई उत्तर प्राप्त नहीं हो सका। और इसलिए वह सूची फिर किसी दूसरे संस्करण के अवसरपर ही ही जा सकेगी।
बुन्देलखण्ड के कविवर देवीदास
अशा ग्रन्थके इस संक्षिप्त परिचय और १२ पेशी विषयसूची पर पाठक प्रत्यके गौरव और उसकी उपा देयता को समझ कर सविशेषरूप से उसके अध्ययन और मनममें प्रवृत्त होंगे।
जुगलकिशोर मुस्तार
बुन्देलखन्ड, बेतवा, नर्मदा और बसा आदि नेक छोटी-बड़ी नदियाँ बहती है, यहाँकी जमीन पहाड़ी होनेके कारण प्रायः नहरोंका अभाव है । अव यहाँका समस्त कृषि वर्षाके ऊपर निर्भर है।
इस देश में अहाँ अनेक राजा-महाराजा पेठ-साहूकार त्याग-तपस्वी और साधुजन हुए हैं। साथ ही, वहाँ अनेक मन्दिर और सुन्दर प्रशाम्त मूर्तिमां भी उस देश की समृद्धि पूर्व महत्ताके निशंक है। वहाँ अनेक कवि भी हुए हैं जो अपनी कक्षा चातुरीसे अपने हृदय-गत भावको व्यक्त करते थे । वे अपनी कलासे केवल जनताका मनोरंजन ही नहीं करते थे, प्रत्युत उस वस्तुस्थितिका वह भी उपस्थित करते थे जिसे यदि जनता अपने हृदय पर अंकित कर लेती थी तो वह उन सांसरिक महाविपत्तियोंमे छुटकारा पाने के लिए उद्यत हो बाली भी ग्रामहितका प्रधान समय है।
इसके
यु-देवलगढकी अधिकांश जनता भाज भी चारित्र