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________________ २६ अनेकान्त वर्ष ११ और प्रत्यक्ष चेष्टाएं हमारे सामने प्रदीप्त रूपसे प्रदर्शित औरतोंको एक-एक बारमें कत्ल कर देते है वे विजयी और हो रही है । आजकी राजनीति या व्यवहारनीतिकी कुशलता बहादुर (Hero) कह कर सम्मानित किये जाते हैं। ही छलकपट, मायाचार और असत्यको सत्यके रूपमें क्यों ? परिवर्तित करके दिखलानेकी विशेषतामें ही समझी जाती है। आज भी कुछ देश बड़े जोरोंमें तीव्रतम रूपसे ये महाकिसीको किसी तरह ठग लेना ही चतुरता मानी जाती है। ध्वंसकारी एटमबम हजारों-हजारोंकी संख्या में तैयार कर रहे सभी महापुरुष और धर्म-प्रवर्तक बड़े जोरोके साथ कह गये है है और संसारके सिरके ऊपर बैठकर चिल्ला-चिल्लाकर हर और उनके अनुयाई आज भी जोर-जोरसे चिल्ला-चिल्लाकर आधनिक प्रचार यंत्रों द्वारा घोषित करते है कि जो लोग सप्रमाण घोषित करते जाते है कि 'ये सब प्रवृत्तियां विनाश- उनका विरोध करनेवाले है वे यदि विरोध नही छोड कारी और हानिकर है, पर लोगोंके ऊपर कुछ ऐसी 'मोहनी' तो उनपर और उनके बालबच्चोंपर वे एटमबमका प्रयोग छा गई है कि जैसे वे किसी तीव्र शराबके नशेमें हों और करके उन्हें संसारसे मिटा कर इस विरोधका बदला लेंगे उनपर किसी अच्छी सच्ची और साफ बात या तर्कका और फिर विजयी बनकर उन भूमियो पर राज्य करेंगे जो प्रभाव ही न पड़ता हो । मानों वे आंख मूंदे हुए से बेहोशीमें इस तरह खाली हो जायेंगी। इतना ही नहीं, यह सारी या विवशतामें विनाश पथकी ओर जबरदस्ती खिचते खनी हिंसात्मक घोषणा शान्ति या शन्तिकी रक्षाके जा रह हा आर उन्हें अपन-आपम अपन-आपको किन नाममें की जाती है। क्या यह बेह्यापन की हद नही है ? या रक्षा करनेकी क्षमता ही एक दम न हो। क्यो? फिर भी ये सुर्खरू और पाकसाफ बने हुए अपनेको संसारआज सारा संसार शान्ति-शान्ति (Peace) की का रक्षक और भलाई करनेवालोमें सर्वश्रेष्ठ होनेका रटन लगा रहा है; पर शान्तिके स्थानमें अशान्तिकी दावा करते हैं। यह है हमारे संसारकी दशा, जो हमें संभावना बढ़ती हुई दीखती है। एक दूसरेको निगल जाना किसी तरह विनाश अथवा महाप्रलयकी ओर हर घड़ी चाहता है, इसके लिये तरह-तरहके राजनीतिक चकमें, खीचती जा रही है । हिकमत, हथकंडे और बहाने व शक्ति सम्पन्न राष्ट्र (व्यक्ति इन शक्तिशाली राष्ट्रो या देशोंकी विशाल, सुव्यवस्थित भी) विचित्र उपायों द्वारा निकालते रहते है और काम और सभी आधुनिकतम युद्ध सामग्रियों एवं यंत्रोसे सुसज्जित में लाते रहते है, यहा तक कि उनके षड़यंत्रों, कुचक्रों या फौज और फौजी साजसज्जाके आगे या उसके डरके आगे कूटनीतिक चालबाजियोंको देख-देख कर कोई भी समझदार कमजोर राष्ट्र या देश ससारमें बहुत बड़ी जनसंख्या वाले दंग, आश्चर्य-चकित, भौंचक्का और किंकर्तव्य विमूढ होकर होकर भी निरीह हो गये है। उनकी कोई सुनवाई कही नही। रह जाता है। ये राजनीतिक दाव-मेंच इतने गहरे, भीषण और जिन छोटे-छोटे देशोने इन बड़ी शक्ति वाले देशोके साथ "बड़ी दूर से चल कर" लाये गये होते हैं कि बड़े-बड़ोंकी अपनी दुम बांध दी है उन्होने राष्ट्रसंघके नाममें बाकी कमजोर अक्ल बेकार हो जाती है। यह दल-दल इतना भयानक राष्ट्रोंपर एक डिक्टेटरशिप कायम कर रखी है। ये लोग जो और सर्व ग्रासी हो गया है कि जो इधरकी ओर पैर बढ़ाता चाहते है मनमानी करते हैं। जिसे चाहा "ऐग्रेसर" करार दे है उसकी मुक्ति या निस्तारकी फिर कोई आशा नही रह दिया और उसे फिर सम्मिलित सघ-शक्ति-द्वारा मटियामेट जाती है। राजनीतिज्ञ लोगोंने अपने-अपने देशोंकी लूटमई करते इन्हें जरा भी हिचकिचाहट नही होती। और जहां सत्ता दूसरों पर अधिकाधिक कड़ा कर या कर रखनेके अपना क्षुद्र स्वार्थ देखा वहां किसी सच्चे ऐग्रेसरको सजा देनेलिये ऐसे-ऐसे उपायोंका अवलम्बन कर रखा है या करते के बजाय और उसे अधिक संरक्षण दे देते है। कोरिया और जाते हैं कि जिन्हें यदि किसी छोटे रूपमें कोई व्यक्ति करनेकी काश्मीरके दो ज्वलन्त उदाहरण अभी भी हमारे सामने है। धृष्टता करे तो उसे "महापाप" और भयानक सजाका ऐसी स्थितिमें आज हम धर्म, समाज और व्यक्तिको अन्तर्देशीय भागी होना पड़े। पर जो लोग राज्यके नाममें “एटम बम" और अन्तर्राष्ट्रीय राजनीतिसे पृथक् नहीं कर सकते। हमारा गिरा-गिरा कर लाखों करोड़ों बे-गुनाह .बालक-बूढ़े मर्द- सारा सुख और हमारी सारी शान्ति एवं समृद्धि इन राज
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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