________________
किरण १
सर्वोदय कैसे हो?
२५
(६) अनासक्तभाव-और इन सबसे अधिक महत्व- सीमाओंसे घिरा नही रहेगा, वह तो राष्ट्रके कण-कण पूर्ण चीज है अनासक्तभाव। हम जो भी करें उसमें तनिक भी में व्याप्त होगा। उससे कुटुम्ब, समाज, जाति और राष्ट्र आसक्ति नीचे गिरा देगी। हमारे सामने जो भी कर्तव्य हो ही नहीं, सारी मानवजातिका हित होगा। चारों ओर शान्ति उसे शक्ति और मर्यादाको न छुपाते हुए सहजभावसे, और सुख फैलकर मानवताका विकास होगा। बिना किसी फलाशाके करते चले जायें। इस तरह किये जो मार्ग हजारों वर्षसे महान् संत पुरुष बताते आये, जानेवाले कार्य भाररूप नही बनते और अगर हमें सफलता
भगवान महावीरने उस तीर्थ-मार्गको अपने अनुभव द्वारा नही मिलती है तो भी निराश या वेदना नही होती।
प्रसारित किया । इसी कारण वे तीर्थकर यानी मार्गद्रष्टा सर्वोदय-तीर्थकी ओर बढ़नेवालेके लिये ये प्रायः बने। यह तीर्थ प्राणी मात्रके लिये हितकर है ऐसी मूलगुण है। इनकी ओर पूर्णरूपसे ध्यान देनेसे ही सर्वोदय पथ व्याख्या आचार्य समन्तभद्रने दो हजार वर्ष पहले की। पर आगे बढना हो सकता है। इससे निजी भलाई तो होती ही उसी सबके भलाईके रास्ते की याद महत्मागान्धीजीने है, समाजका भी कल्याण होता है। ऐसा व्यक्ति चाहे जिस इस युगमें दिलाई, और उसको देशव्यापी बनानेके लिये स्थिति, अवस्थामे रहे वह सुखी ही होगा। राष्ट्रके लिये व्यक्तिगत जीवन में ही नही सामाजिक जीवनमें उतारनेके ऐसे लोग स्वर्ग उतारनेवाले कहे जा सकते है। ऐसे लोगों लिये संत विनोबा आज विचरण कर रहे हैं। द्वारा स्थापित सर्वोदय-तीर्थ किसी पहाड़, नदी, वनकी वर्वा, ३१-१२-५१
सर्वोदय कैसे हो ?
(बा० अनन्तप्रसाद जैन B. Sc. (Eng.) 'लोकपाल') संसारके सभी व्यक्तियों और सभी संस्थाओंका समुचित कुछ कहा ही ह। संसारके सारे धर्मग्रंथ इसी सर्वोदयउत्कर्ष ही सर्वोदयका अर्थ है। इस शब्दका व्यवहार तो बहुतों की भावनासे लिखे गये है। धर्म सिद्धांत और फिलोसोफी ने किया है और करते है पर इसका यथार्थ रूप, प्रयोगके भी इसी एक ध्येयको लेकर ही प्रतिपादित किये जाते रहे हैं। तरीके एवं इसे उपलब्ध करनेका ठीक सही मार्ग कितने अभी भी इस प्रकारके विचारों,सुझावों,उपदेशों और आदेशोंजानते है ? बहुत कम । वर्तमान युगमें महात्मा गांधीने की कमी नहीं । इनकी बहुलताके बावजूद "सर्वोन्नति" देश-काल-व्यवहारका ध्यान रखते हुए आधुनिक आवश्यक- “सर्व हिताय" और "सर्व सुखाय"के स्थान पर दुःखों और ताओंके अनुरूप एक व्यावहारिक मार्ग (Practical way) कष्टोकी ही वृद्धि होती गई है। आज तो सारा संसार मानों संसारके सामने उपस्थित अवश्य किया, पर उस पर भी दुःखोंसे और असत्य तथा हिसात्मक भावोंसे ही परिपूर्ण चलने वालोंकी या उसमें सच्चा विश्वास रखने वालोकी दीखता है। हिसा और असत्य ये ही सर्वोदयका समूल नाश संख्या भारतमें ही जब काफी नही तो बाहरी भौतिक जगतमें करनेवाले है। फिर भी लोग जानबूझकर इनसे चिपके हुए क्या हो सकती है यह आसानीसे अनुमान किया जा सकता है। है और अधिकाधिक चिपकते जाते दीखते है। राष्ट्रोंका ऐसा क्यो? पहले भी भगवान् बुद्धने अपने 'बोष' के अनुसार आपसी मनोमालिन्य,अविश्वास एक दूसरेको हर तरह छलनेकी एक मार्ग लोगोंको दिया और बहुतसे दूसरे महानुभावों- सच्ची भूठी प्रवृत्ति और एक दूसरेको हर प्रकारसे प्रभावित ने भी अपनी-अपनी सूझबूझ और समझके मुताबिक कुछ न एवं अपने वशमें कर लेने या कर रखनेकी ऊंच-नीच, प्रच्छन