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किरण ७-८]
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हुए हैं जिनमें उत्तरपुराणादिकके कर्ता गणभद्र जो भगवज्जिन- १५२१ में राजा कीतिमिहके राज्यमें गुणभद्र मौजूद थे, सेनाचार्यके शिष्य थे, प्रसिद्ध ही हैं। शेष दूसरे गुणभद्र नाम- जब ज्ञानार्णवकी प्रति लिखी गई थी। इन्होने अपनी कथाओंके अन्य विद्वानोंका यहा परिचय न देकर मलयकीतिके शिष्य में रचनाकाल नही दिया है। इसीसे निश्चित समय मालूम गुणभद्रका ही परिचय दे रहा हूं। ये भ० गुणभद्र काष्ठा करनेमें बड़ी कठिनाई हो जाती है। संघी मथुरान्वयके भ. मलयकीतिके शिष्य थे और अपने इन विद्वान् भट्टारकोके अतिरिक्त क्षेमकीति, हेमगुरुके बाद उनके पदपर प्रतिष्ठित हुए थे। इनकी रची हुई कीर्ति, कुमारसेन कमलकीर्ति और शुभचन्द्र आदिके नाम निम्न १५ कथाएं है जो देहली पंचायती मंदिर खजूर मस्जिद- भी पाये जाते है। इनमेंसे क्षेमकीति, हेमकीर्ति और कुमारसेन, के शास्त्र भंडारके गुटका न० १३-१४ में दी हुई है, जो ये तीनों हिसारकी गद्दीके भट्टारक जान पड़ते है, संवत् १६०२ में श्रावण सुदी एकादशी सोमवारके दिन क्योंकि कविरइधूके पार्श्वपुराणकी सं० १५४९ की रोहतक नगरमें पातिशाह जलालुद्दीनके राज्यकालमें लिखा लेखक-पुष्पिकामें जो हिसारके चैत्यालयमें लिखी गई है गया है।'
उक्त तीनों भट्टारकोके अतिरिक्त भट्टारक नेमिचन्द्रउन कथाओंके नाम इस प्रकार हैं:
का नाम भी दिया हुआ है जो कुमारसेनके पट्टपर प्रतिष्ठित १ अणंतवय कहा, २ सवणवारसि-विहाण कहा, ३ हुए थे, उस समय वहा शाह सिकन्दरका राज्य था। पक्खवइ कहा, ४ णहपंचमी कहा, ६ चंदायणवयकहा, ७ कुछ ग्रन्थ प्रशस्तियोंके ऐतिहासिक उल्लेख चंदण छट्ठीकहा, ८ णरयउतारी दुद्धारसकहा, ९ मउडसत्तमी
महा कवि रइधूकी समस्त रचनाओमे यह विशेषता कहा, १० पुप्फजलिवय कहा, ११ रयणत्तयविहाण कहा पाई जाती है कि उनकी आद्यन्त प्रशस्तियोमें तत्कालीन १२ दहलक्खणवय कहा, १३ लद्धिवय विहाणकहा, १४ ऐतिहासिक घटनाओंका समल्लेख भी अंकित है, जोकि सोलहकारणवयविहि, १५ सुयधदसमी कहा । इनमसे नं. ऐतिसासिक दृष्टिसे बड़े ही महत्वका है और वह अनुसंधान१,१० और १२ वी ये तीनों कथाएं ग्वालियरके जैसवाल- प्रिय विद्वानोके लिये बहुत ही उपयोगी है। उन उल्लेखोंपर वशी चौधरी लक्ष्मणसिंहके पुत्र पडित भीमसेनके अनु- से ग्वालियर जोइणपुर (दिल्ली) हिसार तथा आसपासके रोषसे रची गई है। नं०२ तथा १३ ३ नम्बरकी कथाएं अन्य प्रदेशोंके निवासी जैनियोकी प्रवत्ति आचार-विचार ग्वालियरवासी सघपति साहु उद्धरणके जिन मंदिरमें निवास और धार्मिक मर्यादाका अच्छा चित्रण किया जा सकता है करते हुए साहू सारगदेवक पुत्र देवदासका प्ररणा पाकर बनाइ खास कर १५ वी शतीके उत्तर प्रातवासी जैनियोके तात्कालिक गई है। और न०७ की कथा गोपाचलवासी साहु वीषाके पुत्र
जीवनपर अच्छा प्रकाश डाला जा सकता है। उनमेंसे सहजपालके अनुरोधसे लिखी गई है। शेष नौ कथाआक बतौर उदाहरणके यहा कुछ महत्वपूर्ण घटनाओका उल्लेख सम्बन्धमें कथा निर्माणके निमित्त भूत श्रावकोका कोई किया जाता परिचय नही दिया है और इससे वे बिना किसीकी प्रेरणा
(१) हरिवंशपुराणकी आद्य प्रशस्तिमें उल्लिखित के स्वेच्छासे ही रची हुई हो सकती है।
भट्टारक कमलकीतिके पट्टका 'कनकाद्रि' 'सुवर्णगिरि भट्टारक गुणभद्रका समय भी विक्रमकी १५ वी शती का या वर्तमान मोजागिर अन्तिम और १६ वी शतीका प्रारम्भिक काल है, क्योंकि
भट्टारक शुभचन्द्रके पदारूढ होनेका ऐतिहासिक उल्लेख संवत् १५०६ को लिखी हुई धनपालकी पंचमी कथाकी अपूर्ण बड़े महत्वका है। उससे यह स्पष्ट मालूम होता है कि ग्वालियर लेखक पुष्पिकासे मालूम होता है। कि उस समय भट्रारकीय गद्दीका एक पट्ट सोनागिरिमें भी स्थापित हवा ग्वालियरके पट्रपर भ० हेमकीति विराजमान थे। और संवत् था.जैसाकि प्रशस्तिकी निम्न पंक्तियोसे प्रकट है:१. अथ संवत्सरेस्मिन् श्री नुपविक्रमादित्य राज्यात्
सं० १६०२ वर्षे धावण सुदि ११ सोमवासरे ३ ज्ञानार्णवकी लेखक-पुष्पिका जैनसिद्धांतभवन, रोहितासशुभस्थाने पातिशाह जलालदी
आरा प्रति। (जलालुद्दीन) राज्य प्रवर्तमाने। २. धनपाल पंचमी कगाकी अपूर्ण लेखक प्रशस्ति ४. पावपुराणकी लेखक-पुष्पिका, जो मेरी नोट्सबुकमें
कारंजा प्रति ।