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________________ २६८ "कमलकित्ति उत्तम खमबारउ, भव्बहिंमब-बंबोणिहि तारस । तर पट्टकमय परिट्टिङ, 'सिरिसुहचन्द्रसु-तब उनकंठिट" । (२) कविके 'सम्मइजिनचरित' नामक ग्रंथकी प्रशास्ति में जैनियोंके आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रेम भगवानकी एक विशाल मूर्तिके निर्माण करानेका उल्लेख निम्न प्रकारसे दिया हुआ है और उसमें बतलाया है कि अग्रवाल कुलावतंस संसारशरीरभोगोंसे उदासीन, धर्मध्यानसे संतृप्त, शास्त्रोंक अर्थरूपी रत्नसमूहसे भूषित तथा एकादश प्रतिमाओं के संपालक, खेल्हा नामके ब्रह्मचारी उस श्रावकने मुनिसे यश:कीर्तिकी बन्दना की, और कहा कि आपके प्रसादसे मैंने संसार-दुःखका अन्त करनेवाले चन्द्रप्रभ भगवानकी एक विशाल मूर्तिका निर्माण ग्वालियरमें कराया है। इस आशयको व्यक्त करनेवाली मूलग्रंथकी पंक्तियां इस प्रकार हैं:"ता सम्मि खणिवंजवय-भार-भारेण सिरि अवर-वाक वंसम्मि सारेण । वरषम्मझाणामएणेव तिचेण । संसारतणु-भोय- णिविणि चित्तण खेल्छाहिह्वाणेण णमिऊण गुस्तेण जसकित्ति विणयत्तु मंडियगुणो । भो मयण-दावग्गि उल्हवण वणदाण संसार - जमरात्रि उत्तर-वर जाण । तुम्हहं पसाएण भव-दुह कयंतस्स ससिपहजिर्णेदस्स पडिमा विद्युतस्स । काराविया मई जि गोवायले तुग उड़चावि णामेण तित्थम्मि सुहसंग ।" पुण्यासव कथाकोशकी अन्तिम प्रशस्तियें बतलाया है कि जोइणिपुर ( योगिनीपुर-दिल्ली) के निवासी साहूतासउके प्रथम पुत्र नेमिवासने, जिसे चन्द्रवाद, के चौहानवंशी प्रतापरुद्र नामके राजाने सन्मानित किया या बहुत प्रकारकी धातु, स्फटिक और विद्रुममयी (मूंगाकी) [ वर्ष ११ अनमित प्रतिमाएं बनवायी थीं, और उनकी प्रतिष्ठाभी दर्द भी, तथा चन्द्रप्रभ भगवानका उत्तुंग शिखरों वाला एक चैालय भी बनवाया था । (४) 'सम्मतगुणनिधान' नामके ग्रंथकी प्रथम संधिके १७ में कडषकसे स्पष्ट है कि साहू खेमसिंहके पुत्र कमलसिंहने भगवान आदिनाथकी एक विशाल मूर्तिका निर्माण कराया था, जी ग्यारह हाथ ऊंची थी और दुर्गतिकी विनाशक मिध्यात्वरूपी गिरीन्द्रके लिये वज्ज्र समान, भब्यकि लिये शुभगति प्रदान करनेवाली तथा दुख-रोग-शोककी नाशक थी । ऐसी महत्वपूर्ण मूर्तिकी प्रतिष्ठा करके उसने महान् पुण्यका संचय किया था और चतुर्विध संघकी विनय भी की थी । (५) 'सम्मइजिनचरिउ में फिरोजशाहके द्वारा हिसार नगरके बसायेजाने और उसका परिचय कराते हुए वहां सिद्धसेन और उनके शिष्य कनककीर्तिका नामोल्लेख किया गया है। इन सबकी पुष्टि 'पुण्यासव' सम्मत्त गुणनिधान', तथा जसहरचरिउ' की प्रशस्तियों से भी होती है। (६) हिसार नगरके वासी सहजपालके पुत्र सहदेव द्वारा जिनबिम्बकी प्रतिष्ठा कराने और उस समय अभिलषित बहुत दान देनेका उल्लेख भी' सम्मइजिनचरिउ' की अन्तिम प्रशस्तिमें दिया हुआ है । साथ ही सहजपाल के द्वितीयादि पुत्रों द्वारा गिरनारकी यात्राके लिये चतुविधसंघ चलाने तथा उसका कुल आर्थिक भार वहन करनेका भी समुल्लेख पाया जाता है। जैसा कि उसकी अन्तिम मसस्तिके ३१ वें ३२ वे कडवकसे ज्ञात होता है । (७) मघोषरचरितकी प्रशस्तिसे भी प्रकट है कि लाहण या लाहडपुरके निवासी साहूकमलसिंह ने गिरनारकी यात्रा ससंघ अपने समस्त परिजनोंके साथकी थी और यशोवरचरित नामके ग्रंथका निर्माण भी कराया था। ( अमली किरण में समाप्त )
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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