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महाकवि रइधू
(पं० परमानन्दजैन शास्त्री)
[ अनेकांत व १. किरण १० से आमे ] समकालीन विद्वान भट्टारक
येनैतत्समकालमेव रुचिरं भव्यं च काव्य तया, ___ कवि रहधूने ग्वालियरका परिचय कराते हुए कुछ
साधु श्री कुशराजकेन सुषिया कीतिश्चिरस्थापकम् भट्टारकोंका आदर-पूर्वक समुल्लेख किया है और 'सम्मइजिनचरिउ' नामक ग्रथको प्रशस्तिमें देवसेन, विमलसेन, धर्मसेन,
उपदेशेन ग्रन्थोऽयं गुणकीर्तिमहामुनेः। भावसेन, सहस्त्रकीति, गणकीति, गुरुभ्राता एवं शिष्य
कायस्थपद्मनाभेन रचितः पूर्वसूत्रतः ॥ यश.कीति, मलयकीति, और गुणभद्र आदिका नामोल्लेख
वीरमदेव का समय वि० सं० १४६२ (ई. सन् १४०५) पूर्वक परिचय भी दिया है। उनमें से भटारकमसति है, क्योकि उस समय मल्लू इकबालखाने ग्वालियरपर के बादके विद्वान् भट्टारकोंका उपलब्ध संक्षिप्त परिचय
चढ़ाई की थी और उसे निराश होकर दिल्ली लौटना पड़ा यहां दिया जाता है जो प्रायः कविवरके समकालीन एवं उससे
था। अतः यही समय भट्टारक गुणकीर्ति का है, वे विक्रम
था। अतः यहा समय भट्टारक गुणका कुछ समय पूर्व हुए थे.
की १५ वी शतीके अन्तिम चरण तक जीवित रहे है।
संवत् १४६० में वैशाख सुदि १३ के दिन खंडेलवाल भट्टारक गुणकीति-यह भट्टारक सहलकीतिके
वंशी पं० गणपतिके पुत्र पं० खेमलने पुष्पदन्तके उत्तर शिष्य थे और उन्हीके बाद भट्टारक पदपर आस हुए थे। इन्हें बड़े तपस्वी और जैन सिद्धांतके मर्मज्ञ विद्वान् बतलाया है।
पुराणकी एक प्रति भट्टारक पचनन्दिके बादेशसे गुणकीतिइनका शरीर तपश्चरणसे अत्यन्त क्षीण हो गया था। इनके
को प्रदान की है। इससे भी भ० गुणकीर्तिका समय उपर्युक्त
ही निश्चित होता है। लघुभ्राता और शिष्य थे यशःकीति । गणकीतिने कोई
म. पशःकोति-यह भट्टारक गुणकीतिके शिष्य साहित्यिक रचना की अथवा नहीं, इसका स्पष्ट उल्लेख
एवं लघुभ्राता थे, उनके बाद पट्टधर हुए थे। और अपने समयदेखनेमे नही आया। परन्तु इतना जरूर मालूम होता है कि
के अच्छे विद्वान् थे। इन्होने संवत् १४८६ में विबुध श्रीधरका इनकी प्रेरणा एव उपदेशसे और धर्मात्मा सेठ कुशराज जैन
सस्कृत भविष्यदत्तचरित और अपयश भाषाका सुकुमाल के आर्थिक सहयोगमे, जो ग्वालियरके राजा वीरमदेवके
चरितमें दोनों अथ अपने ज्ञानबरणी कर्मके यार्थ लिखवाए विश्वसनीय मंत्री थे, और जिन्होने स्वर्गसे स्पर्धा करने वाला
थे। महाकवि रहने 'सम्मइजिनचरिउ' की प्रशस्तिमें एक अति उत्तुग एवं विशाल चैत्यालय श्रीचन्द्रप्रभभगवान
यशः कीर्तिका निम्न शब्दों में उल्लेख किया हैका बनवाया था। प० पद्मनाभ नामके एक कायस्थ विद्वान् ने संस्कृत भाषा
१.हिन्दी टाउराजस्थान मोझा जी द्वारा सम्पादित म 'यशोधरचरित' अथवा 'दयासुन्दर' नामके एक महा
पृ०२५१। कापकी रचना की थी, जैसा कि उक्त ग्रन्थकी प्रशस्तिके
१. देखो, सं०१३९१ की लिखित उत्तर पुराणकी मामेर निम्न पद्योसे प्रकट है:
भंडारकी प्रति । ज्ञाता श्री कुशराज एव सकलक्ष्मापालचूड़ामणिः २. “सम्बत् १४८६ वर्षे अश्वणिवदि १३ सोमदिने श्रीमत्तोमर वीरमस्य विदितो विश्वासपात्रं महान् । गोपाचलदुर्गे राजा गरेन्द्रसिहदेवविजयराज्यप्रवर्तमाने मत्रीमत्रविचक्षणः क्षणमयः क्षीणारिपक्षः क्षणात् श्री काष्ठासंघे माथुरान्वये पुष्करगण आचार्यश्रीभावसेन क्षोण्यामीमणरक्षणक्षममतिजैनेन्द्रपूबारतः ॥
देवास्तत्प? श्रीसहस्त्रकीतिदेवास्तत्पट्टे श्री गुणकीतिस्वर्गस्पद्धि समृद्धि कोऽतिविमलन्त्यालयः कारितो, देवास्तत्शिष्येन श्रीयशःकीर्तिदेवेन निजज्ञानावरणीकर्मक्षयार्थ लोकानां हृदयंगमो बहुधनैश्चन्द्रप्रभस्य प्रभोः।। इद सुकुमालचरितं लिखापितं कायस्थ याजन पुत्र थल