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[वर्ष ११ मेंपिकमाकमाकर की सीमाको कावा हारा प्रतिपादित मुबानोंका व्यवहार भावियों
मानसी और विवेहीमा प्रतिबोको ही लिखे पर पुरविवान बसियों वाले याहिंसादिक गये ही दोनों में परस्पर मेद बस्तु सप्रकार owोदय (पूजा) पाना सर्वसाधारण मायकी पषिदोबा पर, बषि, महाबली, दिया विवादिकमबारे और बो हम गुक भारती भी भावकों या देशवासियों में असा एक देश(स्थूलसे) पाखन कान्हें परिणितेहै-सोमदेवने, बशस्तिसको, बम्हें साफ
मायालयतिमा मातोरसे शिवलिया-छो भीवास्तवमें उन्हें 'बामबब महामवियोंक ८ मुबगुषोंमें अहिंसादिक भाव अथवा देवावलि समझना चाहिये, जैसाकि kuwaiपणन किया गयादेशाविक मूलगुणों- पंचाध्यायोकेनिग पसे प्रकटीबो खाटीसंहिता की मेंmaiका विधान होना स्वामाविकही है और इस पाया जाता है और जिसमें यह भी पसाया गया है कि जो विसामो समसमान पंच मावोंको सिये हुए भावकों- गृहस्थ हम पाडौंका त्यागी नहीं पहनामका भी बावक
बाम एवोकाको प्रतिपादन कियावह घुक्तियुक्त नहीं है:होमीयोवापरतावमें ऐसा काम पाकि
मद्यमांसमधुत्यागी त्यक्तोदुम्बरपंचकः। पूर्वस्वोंको परस्परके इस व्यवहार कि 'मार श्रावक
नामतः भाषक: ख्यातो नान्यथापि तथा गृही। और 'पाप बाकी भारी असमंजसका
अब भापक वोहीहैलो पंचमानोंका प्रवीच इस प्रसमससाकोर करनेके लिए
पासमकाते हैं। और इस सब कपनकी पुष्टि शिकअपमा देशकाकी परिस्थितियोंकि अनुसार सभी नियों
हिमाचार्यकी 'रलमाखा' निम्न वापसे भी होती कोकाकीपभाडेवाभाविक चियेगा.
है, जिसमें पंच-मनोंक पासन सहित मध, मांस और पाचोको इसकी पर पड़ी कि मूखों में
मधुके त्यागको 'पप्रमुगुण' लिखा है और साथ ही पर-फार कि बाल और ऐसे गुण स्थिर किये
माबापा कि पंच-मदुम्बरवाले को अचमबाण पिजीवियों और पवियों दोगोंकि सिपे साधारण
है को-पासको, मो, बोरों अथवा कमजोरोंके बगुबमा मांस और मडके त्याग कप तीन
लिए है। और इससे उनका साफ था बाल सम्बन्ध हो सकते थे, परन्तु र पहवेसे गुणोंकी संख्या
मनासयोंसे भाग पडता हैपासपीसविस संख्याको पों-का-स्वोभायम व तीन मुबगुबोंमें पंचोदुम्बर कोंक
मद्य-मांस-मधु-त्याग-संयुताणुनवानि नुः। बारहमसर्वसाधा
अष्टौ मूलगुणाः पंचोदुम्बराश्चामेकेष्वपि ॥१६॥ पॉषिमान परती भूबाब
हम समन्वमा-प्रतिपादित मुबगुषोंमें श्रीनिमसेन अमियोंषियों रोषसि साधारण, इसका
और अमितमति से पापायोंने भी अपने-अपने सपीकर कविराम पंचायापी पया बाटीसंहिता
मविपायों भरोषा बोरा गुरु मेर उत्पा बकनिम्न पयले भने प्रकार वाता
किया, जिसका विशेष पर्यन और विश्व वागयों तत्र मूलगुणाराष्टौ गृहिणां प्रधारिणाम् ।
का शासन मेष' नामक बस बाबा जा सकता।. कषिरविनां परमात सर्वसाधारणा इमे।
-युगवीर पान्तमबागमें रखीभाविकपमय- समीचीवनमा अप्रकाशित भाग्यसे ।
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