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________________ समन्तभद्र-वचनामृत व्या मड-मुबादिसे युद्ध बौदारिकम होकर वैझिाक एकहोबा रूपमें उपस्थित हो। इसके स्वाबमें बसहोता है और अदिवोष शोभासे सम्पस रहता है। हिंसाकी रबि निहित है। और मड, विसायाम मद्य-मांस-मधु त्यागी सहाऽणव्रत-पंचकम् । यहाँ विहित है, वह पदार्य है जिसे मधुमक्सियां पुष्पोंसे अष्टौ मूलगुणानाहुहिणां श्रमणोत्तमाः ॥६६॥ बार अपने पत्तोंमें पंचवमती है और मोबाइमें पाया 'श्रमणोत्तम-श्रीजिनेन्द्रब-मद्यत्माग, मांस. पत्तोको बोह-मरोबसमा मिचोरकर म साले त्याग और मधुत्यागके साथ पांच अणवतीको (स) लिये प्रस्तुत किया जाता है और जिसके इस प्रस्तुतीगृहस्थोंके आठ मूलगुणा बताते हैं। और इसमे अन्य करणमें मधुमक्खियोंको भारी बाधा पहुँचती है, उनका दिग्णवादिक को गुण हैं वे सब उत्तरगुण है, यह साफ तथा उसके अपडे-बच्चोंका रसादिक भी निचुटकर उसमें कवितहा । शामिल हो जाता है और इस तरह बोएकपणित पदार्थ व्याख्या-यहाँ 'गृहिणा' पद पयपि सामान्यरूपसे पन जाता है। 'चौद्र' संज्ञा भी उसे प्राया इस प्रकियाकी बिना किसी विशेषणके प्रयुक हुपा है फिर भी प्रकरणकी रटिसे ही प्राप्त है। इसके त्यागमें भी बस-दिसाके रबिसेबडन सद्गृहस्णका वाचक है जो प्रती-प्रावक परिवारकी रटि संनिहित है; जैसा कि अगली होते है-अबतो गृहस्थोंसे उसका प्रयोजन नहीं है। जन कारिकामें प्रयुकहुए 'सहति-परिहरणार्थ पिशित भौत धर्ममें जिस प्रकार महाप्रती मुनियों के लिये भूलगुषों और पवर्जनीयं इस वाक्यमे जामा जावा उत्तगुणोंका विधान किया गया है उसी प्रकार अणुव्रतो यहां पर एक पावसास बोरसेबाननेकी औरही भावकोंके लिये भी मूलीचरगुणोंका विधान है। मूख अष्टम्सागुणों में पशुखताका निर्देश पोंकिमस्वय, गुणोंसे अभिमाय उन बत-नियमादिकसे है जिनका अनु. पोमदेव और देवसेन जैसे कितने ही उत्तरवर्ती भाचार्यों ठाम सबसे पहले किया जाता है और जिमके अनुष्ठान पर सपा कविराममहादि जैसे विद्वानोंने अपने-अपने ग्रन्थों में ही उत्तर गुणोंका अथवा दूसरे व्रत नियमादिका अनुष्ठान पंचायतोंके स्थानपर पंच गुम्बरको निर्देश दिया भवलम्बित होता है। दूसरे शब्दों में यों कहना चाहिये कि है।जिममें बक, पीपल, पिजसन मादिके पक्ष कामिल है। जिस प्रकार मूखके होते ही बचके शाखा पत्र प्र सारित कहाँ पंचाणुगत और कहां पंच उदुम्बर का स्वाग! का उद्भव हो सकता है उसी प्रकार मूलगुणोंका माचरय दोनों में जमीन-पास्मान-कासा अन्तर बस्तुका विचार होते ही उत्तरगुणों का पाचरण यथेष बन सकता। किया जाये तो गुमरफलोंका त्याग मासके बागमें ही भावकों के मूखगुण पाठ है, जिनमें पांचो वे अणुव्रत । पा जाता है। क्योंकि इन कोंमें -फिरते मीचोंहैं जिनका स्वरूपादि इससे पहले निर्दिषहो चुका का समूह सामावभी दिखबाई देवान माणसे मांस और तीन गुण मच, मांस था मधुके त्याग रूपमें है। भाणा स्पष्ट दोष लगता है, इसीसे इनके मामका विशेष किया जाता है और इसखिये बोमांस-मासस्वागी मय, जिसके त्यागका यहां विधान है, पहनशीजीवस्तु मी मनुष्यकी बुद्धिको प्रष्ट करके उसे उन्मत्त अथवा भारी वे प्रायः कमी हनका सेवन नहीं करते। ऐसी हाजमेबसावधान बनाती है-चाहे वह पिष्ठोदक गुरु और मांस त्याग नामका एक सूखागुण होते हुए भीपावकी प्रादि पदार्थों को गवा-सपाकर रसरूपमें वस्पार भार फोंके स्वागको, जिनमें परस्पर ऐसा कोई विशेष की गई दो और बा भांग-पदादिकद्वारा खाने-पीने भेद भी नहीं है, पर अवग पग मूवगुपकरार देना किसी भी रूपमें प्रस्तुत हो क्योंकि मयत्यागमें प्रग्यकारकी और साथ ही पंचाहनोंको मूल गुखोंसे विवाद देना एक रष्टि प्रमाद-परिवरणकी है, जैसाकिसी अन्धकी अगली पड़ी ही विवाणवा मासूम होती।इस प्रकारका एक कारिकामें प्रयुक हुए 'प्रमादपरिहतये मद्य'च परिवर्तन कोई साधारण परिवर्तन नहीं होता । यह परि पा वर्जनीय'इस वाक्यसे जाना जाता है मांस उस विकत बन बन कुछ विशेष अर्थ रखता है। इसके बारा मूबगुणोंपदार्थका नाम नहीन्द्रिबादि सजीवोंक रस-रकादि का विषय बहुत ही हमका किया गया है और इस बरा का मिति कलेवरसे निपम होता है और जिसमें निरन्तर प्रस- देखो, पुरुषार्थ सिध्युपाय, पाविसक, भावसंग जीवोंका उत्पाद बना रहा है-चापापा मारा (मा.) और पंचाध्यायी था बाढी संहिता ।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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