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________________ [वर्ष ११ विषद सली सी राखौकर गया, स्त्री पुनधि 'निरतिचाररूपसे पालन किये गये (सहसादि) को संस्थाले लोगों का चतुष्पदमें हाथी, घोड़ा, बैस, पाँच अणुव्रत निधिस्वरूप हैं और वे उस सुरलोकको साबदामाच, परी प्रादि चार बार फलते हैं-प्रदान करते हैं-वहाँ पर (स्वत: स्वमापसे) मानव प्रयासबमें सोने और बैठने के सब अवविज्ञान, बिमादि) माठ गुण और दिव्य शरीर पोका समावेशीब बार, पलंग, पटाई, प्राप्त होते है। गीत सिंहासन बारिक । बागमें गोली, व्याख्या-यहाँ 'अवधि:' पदद्वारा जिस प्रकिस , गाय, मौका, महाब, मोटरकार, और बाई बागका रखेस वा भवप्रत्यय अवधिज्ञान है, जो देव. सारिका प्प में सबकारके सूती, लोक भव-भारणबत् सम्म मेके साथ ही उत्पन होता बीवी माविसमन्वनिचितथा भाषा में था उस भपकी स्थिति-पर्यन्त वा और जिसके बोबा,चा, पीवबसी भाविधान-उपचातुओंके, मिट्टी- द्वारा देश-कासादिकी अवधि-विशेषके भीतर रूपी पदायों पथर-बाप और काळारिक बने हुए सभी प्रकार का एकदेश साकार (देशप्रस्था)ज्ञान होता है। यह परयौजारविचार या खिजीने संग्रहीत अधिज्ञान सर्वावधि तथा परमावधि होकर देशावधि है। इन सब परिग्रहोंका अपनी शक्ति परिस्थिति और था. कहलाता है और अपने विषय में निम्ति होता है। 'म.. प्रसाबहुसार परिमाणकरके उस प्रमायासे बाहर जो गुणाः' परदारा निजबाट गुणोंका उखेल किया गया इसरे पहबसे पाय परिवह उन्हें प्रायन करना ही नहीं है-अणिमा, महिमा, अषिमा, प्राप्ति, पकिन इसका जो स्वागही परिमित प्राकाम्य, शिस्त, बशिस्य, और कामरूपिस्व । परिग्रहकाबाबा और इसीसे उसका दूसरा नाम भागमानुसार 'पणिमा' गुण उस शक्तिका नाम है जिसमें 'पपरिमायसी क्या गया। बडेसे बदारीर भी प्रारूप में परिजन किया जा सके। बविवाहमाऽतिसंग्रह-विश्मय-शोभाऽतिभारवहनानि। 'महिमा' गुण उस शक्तिका नाम है जिससे बोटेसे छोरा परिमिपरिग्रहत्य विक्षेपाः पचनश्यन्ते ॥६२॥ प्रारूप पर भी मेरमाण जिवना अथवा उससे भी बड़ा परिमिवपरिग्रह (परिमापरिमाण) प्रतके भी किया जा सके।बधिमा गुण उस शक्तिका नाम निसले पंच विचार निदिष्ट किये जाते हैं और वे हैं१मति मे से भारी शरीरको भी वायुसे अधिक हबका अथवा पाहन-अषिकबाम उठानेकी रबिसे अधिक खाना-इवना हबका किया जा सके किबह मकड़ी-जालेके वन्तुओंभोतमारसमा करना अथवा काम वेगा-भतिसंग्रह- पर निर्वाध रूपसे गति कर सके। प्राप्ति गुण उस शकि. विविएनामकी पाशा अधिक काम-माम्बाधिक विशेषको कहते हैं जिससे दूरस्थ मेह-पर्वतादि शिखरों का -, अतिविस्मय-व्यापारादिकमें स्थापन्य सूबोंकि बिम्बोंको हाथकी अंगुखियोंसे एषामा इसरों किसाभको देखकर विचार करना अर्थात् सके। 'प्राकाम्ब' गुण वह शक्ति है जिससे जल में गमन पृथ्वी ब- -..प्रतिलोम-विशियामहोप पर गमनकी तरह और पृथ्वी पर गमन में गमनके श्रीमति चामको बाबमा खना- और समान सन्मज-निममन करता हुमा होसके। ईशिव' अतिभारवाहन-जोमय पिसी परसेवा गुबस शक्किा माम बिससे सर्वसंसारी खोबों मावि अधिकमारवादवा। तथा प्राम नगरादिकोंको भोगने - उपयोग में लाने की व्याख्या-परिमाश्मिाण मे समय का सामान बवासाकी प्रमुवा पटित हो सके। Mसावन पहायोंसे बाम उठाने के लिये क्रिको जिससे ग्राम संसारी मास (उपयोग) धादिकाको माला बीबोका बशीकरण किया जा सके। 'कामरूपित्य' गुण विकास या वाक्-मोनिका परवीति 'मन्दकापामा सडकका नामससाबाया-बारा भनक प्रकारक पंचायणनिय नितिक्रमणाः फलन्वि मुखोकम् । मिस पुनपर धारण किये बास और 'विम्यारीर' पत्राशी म्यन्ते ॥ ३३॥ पोसाक अहीरका अभियान को सफा पान
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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