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किरण ६ ]
गए हैं। उनके नाम इस प्रकार हैं:
१ प्रवचनसार २ समयसार ३ पंचास्तिकाय ४. नियमसार ५ वारस अणुवेक्खा (द्वदशानुप्रेक्षा ) ६ दंसणपाहुड ७ चारित्तपाहुड ८ सुत्तपाहुड ९ बोषपाहुड १० भावपाहुड ११ मोक्षपाहुड १२ लिंगपाहुड १३ और शीलपाहुड १४ सिद्धांतभक्ति १५ श्रुतभक्ति १६ चारित्रभक्ति १७ योगिभक्ति १८ आचार्यभक्ति १९ निर्वाणभक्ति २० पंचगुरुभक्ति २१ थोसामियुदि ( तीर्थंकरभक्ति ) २२
और रयणसार ।
स्व० श्री दीनानाथजी सरावगी, कलकत्ता
इनमें अन्तिम रचना 'रयणसार' अपने यथार्थ मूलरूपमें उपलब्ध नही है, उसमें कितनी ही गाथाएं प्रक्षिप्त रूपमें निहित है । अनेक प्रतियोंमे भी गाथा सख्या एक सी नहीं मिलती, अतः उसके सम्बन्ध में यथेष्ट अनुसंधान करने की आवश्यकता है । तभी पर्याप्त परिश्रमके द्वारा उसका असली
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स्व० श्रीदीनानाथजी
स्वर्गीय सेठ रामजीवनदासजी कलकत्ता दिगम्बर जैन समाजके ख्याति प्राप्त श्रीमान् और धर्मात्मा महानुभाव थे । आप जैन विद्वानोका बहुत आदर सत्कार किया करते थे। अपने जीवनकालमें उस समयकी स्थितिके अनुसार काफी दान करते थे । आपके आठ पुत्र हुए । जिनमें १ सबसे बड़े और १ सबसे छोटे तो युवावस्था में ही मृत्युको प्राप्त हुए । सेठजीका समाधिमरण कलकत्तामें अब तक आदर्श माना जाता है ।
कलकत्ता दिगम्बर जैन समाजके सभी धार्मिक और सामाजिक कार्यों में आपके पुत्रोंने तन, मन और धनसे योगदान किया है और कर रहे है । सब भाई शिक्षित और धर्मात्मा है । श्रीस्याद्वाद विद्यालय काशी, जैनबाला विश्राम आरा और श्रीवीरसेवामन्दिर सरसावाको आप लोगोंने काफी सहायता दी है ।
दो वर्ष हुए तब माताजीका समाधिमरण पूर्ण विधिसे सम्पन्न हुआ था । माताजीने भी अपने जीवन कालमें प्रचुर दान दिया था और केवल वीरसेवामन्दिरके लिये
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मूलरूप खोजा जा सकता है । उसी समय ही वह ग्रंथ सविशेष रूपसे प्रमाण कोटिमें रखा जा सकता है।
इन ग्रंथोंके अतिरिक्त 'मुलाचार' नामका जो ग्रंथ उपलब्ध है, जिसमें जैन श्रमणोंके आचारका विवेचन किया गया है और जिसे आचार्य वीरसेन स्वामीने अपनी 'धवला' टीकामें 'आचारांग' नामसे उल्लेखित किया है, उसमें कुन्दकुन्दके ग्रंथोंके कितने ही पद्म पाए जाते हैं। और मूलाचारकी कितनी ही प्रतियोकी पुष्पिकायोंमें उसे कुन्दकुन्दाचार्य प्रणीत लिखा भी मिलता है। डा० ए. एन. उपाध्याय एम. ए. डी. लिट् कोल्हापुरको ऐसी कितनी ही प्रतियां देखने में आई है जिनमें उसका कर्ता कुन्दकुन्दाचार्य सूचित किया गया है। अतः यह बहुत संभव है कि मूलाचारके कर्ता कुन्द कुन्द ही हों, क्योकि वट्टकेराचार्य नामके किसी भी मुनि या आचार्यका कोई उल्लेख नही मिलता और न गुरुपरम्पराका ही कोई उल्लेख उपलब्ध होता है ।
सरावगी, कलकत्ता
करीब पचास हजारका दान दे गई थीं और असहाय जैन महिलाओंको सदा गुप्त सहायता भी करती थीं ।
आपके द्वितीय पुत्र सेठ फूलचन्दजी मृत्युके पूर्व तीस हजार रुपये वीरबाला विश्राम, आराको दे गये थे । तृतीय पुत्र सेठ गुलजारीलालजी, जिन्होंके तत्वाधानमें कलकत्ताका दिगम्बर जैन भवन निर्मित हुआ था, मृत्युके पूर्व पच्चीस हजार श्री स्याद्वाद महाविद्यालय काशीको दे
गये थे ।
चतुर्थं पुत्र श्री दीनानाथजीका अभी गत भाद्रपद कृ० १४ ता० १९ अगस्तको पूर्ण सफलताके साथ समाधिमरण हुआ है। जैनसमाजके प्रसिद्ध त्यागी कलकत्ताके श्री भगतजी महाराज (ब्र० प्यारेलालजी) के पास आप गत ४० वर्षोंसे बराबर धर्मश्रवण किया करते थे, नाना प्रकारके त्याग और व्रत लिया करते थे और अन्तमें श्री भगतजीने ही समाधिमरण बड़ा उत्साह एवं साहस दिलाते हुए पूर्ण सावधानता पूर्वक सम्पन्न करवाया है । सर्व परिग्रहका त्याग कर नग्न हो, जल तकका त्याग कर पूर्ण सचेत अवस्था