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________________ २५६ अनेकान्त में धर्मश्रवण करते हुए तथा रोग-मृत्यु जनित कष्टोंको प्रतिष्ठित भाइयोसे आर्थिक सहायता ली थी। और स्वयं पुद्गलका परिणाम समझते हुए और अन्तिम स्वांसमें 'अहंत' भी प्रदान की थी। राजगिरिमें भी इसी प्रकार एक धर्मशाला के उच्चारण पूर्वक इस नश्वर शरीरका आपने त्याग किया। (बंगला) आपके तत्वावधानमें बना था । माप गत ६ माससे रक्त चापके कारण बहुत दुर्बल आप अपने छोटेभाई श्री छोटेलालजी जैनका परामर्श हो गए थे और शयारूद थे। तबसे नित्य दिन रात शास्त्र लिये बिना कोई भी कार्य नहीं करते थे । अभी जब छोटेश्रवण करते रहे। मृत्युके दो तीन दिन पूर्वसे आपने अनेक लालजी देहली गये हुए थे तब आपकी तबियत कुछ अधिक जैन भाइयोंसे क्षमा याचना की। गत ता० १६ मईको बिगड़ी अतः छोटेलालजी को तुरन्त बुलवाकर कहा कि अब बाप अपना अन्तिम दानपत्र भी लिख गये है और उसी समय निकट है मुझे सम्हालो, अधिक धर्मध्यानकी व्यवस्था समय पच्चीस हजारके सरकारी लोन 'श्री वीरबाला विश्राम करो और समाधिमरण अवश्य हो इसका पूरा खयाल रखो। बाराको भेज चुके हैं । दानपत्र अभी तक खुला नही है, तुरन्त ही आप त्याग और तपश्चरणमें संलग्न हो गये । श्री खुलने पर उसका विवरण मालूम हो सकेगा । भगतजी महाराज, श्रीमती ब. चमेलाबाईजी, श्री कैलाश६ मास पूर्व जब आपका रक्तचाप बहुत अधिक बढ़ चन्द्रजी जैन (जायसवाल), श्री डाक्टर साहब, श्री चिरंजीजानेके कारण बेहोशी हो गई थी उस समय कलकत्ता लालजी जैन माधोपुरवाले, श्री चिरंजीलालजी जैन बनारसदिगम्बर जैन समाजकी एक सार्वजसिक मीटिंग हुई थी, वाले और उनके लघुभ्राता श्री छोटेलालजी जैन बराबर जिसमें तन, मन और धनसे आप द्वारा की गई विविध उनकी सेवा शुश्रूषा और धर्माचरणमें सहायता देते रहे। सेवाओंके प्रति आभार मानते हुए आपके स्वास्थ्य लाभके आपके कोई सन्तान नहीं हुई। हम आपकी धर्मपत्नी लिये श्री वीर प्रभुसे प्रार्थना की गई थी। तथा अन्य कुटुम्बीजनो और विशेषकर भाई छोटेलालजी श्री वेलगछिया उपवन मन्दिरके सुधार और इमारती और नन्दलालजीके प्रति सम्वेदना और सहानुभूति प्रगट कार्योंके कराने और वहां नये वृक्षादि लगाने में प्रचुर समय करते हुए स्वर्गीय आत्माके लिये परलोकमें सब प्रकारसे सुख और शक्ति आपने लगाई थी तया इस कार्य में समाजके शान्तिकी प्राप्तिकी दृढ़ भावना करते हैं। -सम्पादक
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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