________________
२५०
अनेकान्त
[
१
पातसहजी हमजानुं जोधपुर फोजदार राखीयो। पछ सा. ३०८ से ३१० में इस घटनाका विवरण प्रकाशित है गादहीय तेज सहसावत हमजान मारनं गढ जोधपुर लीयो। व पं. विश्वेश्वरनाथजी रेउके मारवाड़ राज्यके इतिहास रावधी मालदेजी नुं सू पीयो। बडो स्वामिधर्मी हुवो। रावजी
भा. १के र. १२८ में उसका विशेष वर्णन पाया जाता है। इयो नुमय करिने दाण जगात छूट कीषा। तिणरा पटा
वंशावलिमें उल्लिखित सूर पतिसाह सुप्रसिद्ध शेरशाह था। छ । वलं तिण समेरो गीत छ
राठोड़ वीरम और भीम ही उसे प्रोत्साहित कर स. १६०० सूर पातिसाह ने मालवे सांकलो
में जोधपुर पर चढ़ा लाये थे। राठोड़ोंकी वीरतासे उसने ठाकुरे बडवडे छांडीया डाल
विजयको आशा छोड़ वापिस चले जानेका कई बार विचार गिरंद झूझारीये तेष कण गादह्यो
किया था पर वीरमने उसे रोके रखा और अंतमें एक कपटप्रतपीयो तेजलो गढ रखपाल ॥१॥
की चाल चलकर राव मालदेवको अपने सामन्तोंसे अविश्वास साम र काम परधान सहसा सुतनविरद पतिसाह सूहुवो बाथ
पंदा करा दिया, फलतः शेरशाहको विजय प्राप्त होगई। राव जोधपुर महाभारष कियो जोरवर
मालदेव पहाड़ियोंमे जा छिपा । वीरमको मेड़ताका शासन हमजो मार लियो जस हाथ ॥२॥
प्राप्त हो गया।भारमल हरे मेछांण दल भांजिया
जोधपुर आधीन कर शेरशाहने वहांका प्रबन्ध राव रै काम अखियात राखी
खवासखांको सौंप दिया । पर वशावलि और गीतके कोटनव अचल राठोड़ साको कियो
अनुसार उसका नाम हमजा था। रेउजीके इतिहासमें लिखा सूर नै सोम संसार राखी (! साखी) ॥३॥ हारिया असुरइम जस हुवो
है कि १-१॥ वर्ष तक जोधपुर मुसलमानोके अधीन रहनेके वाणिय इसो करि दाख वारो
अनंतर स. १६०२ में शेरशाहके मारे जाने पर मालदेवने थापियो मालवे तोन तेजा सुधिर
पहाड़ोसे आकर शेरशाहके नियुक्त मुसलमान अधिकारी थयो खटसुर खंडे नांमथारो ॥४॥
व सैनिकोको मारकर राज्य पुनः प्राप्त कर लिया। सेवकोंराठोड़ वीर जैता कुपाने इस युद्ध में बड़ी वीरता के काम मालिको नाममे प्रसित टोले या और स्वामिभक्ति दिखाई । दुर्भाग्यवश सैनिक कम होने वास्तवमें जोधपुरको वापिस प्राप्त करनेका श्रेय तेजोको व दिशा भ्रम हो जानेसे जैता कूपा काम आये । जैसा कि ही मिलना चाहिये। ओसवाल जातिके इतिहासमें इस वीरउपरोक्त उदरणमें लिखा गया है शेरशाहकी विजय तो की गौरव-स्मृति सदा बनी ही रहेगी। हुई पर वह बहुत महगी पड़ी। फलतः उसके मुहसे ये शब्द
श्वेताम्बर श्रावकोका पहले गुजरातके राज्यसचालन निकल पड़े-"खुदाका शुक्र है कि किसी तरह फतह
व श्रीवृद्धिमें बडा हाथ रहा है। पाटणके महाराजा सिद्धराज
जयसिंह व कुमारपालका समय स्वर्णयुग था । उस हम हासिल हुई वरना मैने एक मुट्ठी भर बाजरे के
समय जैनधर्म गुजरातमें चरम उर र्षको प्राप्त हुआ था। लिये हिंदुस्तानको बादशाहत ही खोई थी।"
वस्तुपाल तेजपालकी वीरता, व्यवहार कुशलता. नीतिउपर्युक्त उद्धरणसे स्पष्ट है कि सूर पातिसाहने निपुणता व धर्मप्रेम तो गुजरातके जन इतिहासमें चिर स्मरराव मालदेवजीपर चढ़ाई सं. १६०० में की थी, जैता इसमें णीय रहेगा । चौदहवी शतीमें ता. दानवीर जगडूशाह काम आये। जोषपुर पातसाहके कब्जे में जा चुका था। व धर्ममूर्ति पेथड़शाह व समरसिहकी कीर्तिगाथा प्रसारित पातसाहने हमजाको जोधपुरका फौजदार नियुक्त कर दिया होती है । १५-१६वो शतीमें मंत्रिमंडल एवं संग्रामसिंहथा। सा. तेजा गदहीयेने उस समय वहांके नियुक्त हमजा का मंडपदुर्ग-मालवेमें बडा प्रभाव प्रतीत होता है । इस समयफौजदारको मारकर राठोड़ोंके हाथसे निकले हुए जोषपुरको में राजस्थानमें जैन श्रावकोंका राज्य संचालनमें प्रधान प्राप्त किया और उसे उसके स्वामी रामालदेवजीको सौंप स्थान हो जाता है। इसी शतीके कर्मसाहका धर्म मर्म उल्लेख दिया। इससे वह कितना वीर, साहसी व सामधर्मी था- योग्य है। १७वों में मंत्रीश्वर कर्मचंद्र व राजा भारमल. सहज पता पड़ जाता है। विधर्मी व शत्रुके हाथमें गये हुए १८वों में भंडारी रतनचंद, मुहणोतनैणसी और १९वीं में राज्यको वापिस प्राप्त कर लेना कितना बड़ा काम है, यह संघवी इंद्रराज हिंदुमल वैद अमरचंद धुराणा आदिने किसीसे छिपा नहीं है। इस बसाधारण सेवाके उपलक्षमें जोधपुर व बीकानेर राज्यकी बड़ी सेवा व उन्नति की। इसी हो उसे वंश परम्परा तक दाण व जगात माफ की गई थी। प्रकार जयपुर में दि. जैन श्रावकोंका बहुत अच्छा प्रभाव जिससे परवानेको नकल पूर्व प्रकाशित की जा चुकी है। प्रतिष्ठा रही है। इन सबसे प्रत्येक जैनीको परिचित
स्व. बोझाजीके जोधपुर राज्यके इतिहासके पृ० होना चाहिये।