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अजातशत्रुकी कथा'
उपरान्त सनत्कुमारने आत्मशिक्षा बैंकर नारदको संतुष्ट
कर दिया । काशीनरेश अजातशत्रु, विदेहकें राजा जमक उग्रसैम, तमा रुराज जन्मेजयके पुत्र शतानीकका समकालीन था। नचिकताको गाथा वह अपने समयका एक माना हुमा जात्मज्ञानी था । और कठ उपनिषदमें औद्दालिक अरुणि गौतमके पुत्र अत्यनज्ञानकी चर्चामें अभिरुचि रखनेवाले विद्वानोंका नचिकेता ऋषिकी एक कथा दी हुई है, कि एक बार नचिभक्त था। एक बार गर्ग गोत्री भी दृप्त बालाकि नामवाला केता, जो जन्मसे ही बड़ा उदार और विचारशील था, ब्राह्मण ऋषि वात्मचकि लिये उसके पास पहुंचा और अपने पिताके संकुचित व्यवहारसे रूठकर भाग गया । कहने लगा कि मैं तुझे ब्रह्मकी बात बताऊंगा। अजातशत्रु- वह शान्ति लाभके लिये वैवस्वत यमके घर पहुंचा। पर उस ने कहा, कि यदि तुम ब्रह्मकी व्याख्या कर पायोगे, तो मै समय वैवस्वत बाहर गया हुआ था। उसके बाहर जानेके तुम्हें एक हजार गायें दक्षिणामें दूंगा। गाय॑ने व्याख्या कारण नचिकेताको तीन रात भूखा रहना पड़ा। वापिस करनी चाही, परन्तु वह सफल न हुआ। अजातशत्रुने कहा- आनेपर घरमें भूखे अतिथिको देखकर यमको बड़ा खेद गाग्र्य! क्या इतना ही ब्रह्म विचार है ? गाग्यंने कहा- हुआ। अपने दोषको निवृत्तिके लिये यमने नचिकेताको ही इतना ही। तब अजातशत्रुने कहा, इतनेसे ब्रह्म नही कहा कि तीन रातके कष्टके बदले बह उससे तीन वर मांग जाना जा सकता। तब गायके शिष्यवृत्ति धारण करने पर ले। नचिकेताके मागे हुए पहले दो वर यमने उसे तुरन्त ही अजातशत्रुने उसको ब्रह्मका स्वरूप समझाया ।
दे दिये। फिर नचिकेताने तीसरा वर इस प्रकार मांगा। सनत्कुमारकी कथा'
"यह जो मरनेके बाद मनुष्यके विषयमें संदेह है,
कोई कहते हैं रहता है, कोई कहते है नहीं रहता, यह आप एक समय नारद महात्माने सनत्कुमारके पास
मुझे समझा दें कि असल बात क्या है। यही मेरा तीसरा बर है। जाकर कहा हे भगवन् ! मुझे ब्रह्म विद्या पढ़ाइये । सनत्कुमार
इस वरको सुनकर यम बोला-"इस विषयमें तो पुराने ने उसको कहा—जो कुछ तू जानता है, मेरे समीप
देवता भी संदेह करते रहे है । इसका जानना सुगम नही है, बैठ, वह मुझे सुना दे, उससे ऊपर तुझे बताऊंगा।
यह विषय बहुत सूक्ष्म है। नचिकेता, तुम कोई दूसरा वर नारदने कहा-भगवन् ! मै ऋग्वेदको जानता हूं,
मांगो, इसे छोड़ो, मुझे बहुत विवश न करो।" यजुर्वेदको, सामवेदको, चौथे अथर्ववेदको, पांचवें इतिहास पुराणको, वेदोंके वेद व्याकरणको, पितृ कर्मको, गणित
_इसपर नचिकेताने कहा-"निश्चयसे ही यदि देवोंशास्त्रको, भाग्यविज्ञानको, निधिज्ञानको, तर्कशास्त्रको,
ने भी इसमें संदेह किया है और आप स्वयं भी इसे सुगम नहीं नीति-शास्त्रको, देव-विद्याको, भक्तिशास्त्रको, भूत
कहते, तो तुम जैसा इसका वक्ता दूसरा कौन मिल सकता है विद्याको, धनुर्विद्याको, ज्योतिष सर्वविद्या, संगीत नृत्य- '
. इसके समान दूसरा वर भी क्या हो सकता है ? विद्याको जानता हूं। हे भगवन् ! इन समस्त विद्याओंसे ।
यमने यह जाननेके लिये कि नचिकेता आत्मज्ञानका सम्पन्न मै मंत्रवित् ही हूं, परन्तु आत्माका ज्ञाता नहीं हूं।
अधिकारी है या नही, उसे बहुतसे प्रलोभन दिये। हे नचिमैंने आप-जैसे महापुरुषोंसे सुना है कि जो आत्मवित्
केता! तू सौ-सौ वर्ष की आयुवाले पुत्र और पौत्र मांग। होता है, वह जन्ममरणके शोकको तर जाता है। परन्तु
बहुतसे पशु हाथी, सोना और घोड़े मांग, भूमिका बड़ा भारी भगवन् ! में अभी तक शोकमें डूबा हुआ हूं। मुझे शोकसे
भाग मांग। और जबतक तू जीना चाहे उतनी आयुका वर पार कर देवें। सनत्कुमारने नारदसे कहा-तुमने आज तक
‘मांग । तू इस विशाल भूमिका राजा बन जा। जो भी जो कुछ अध्ययन किया है वह नाममात्र ही है, इसके
कामनाएं तू इस लोकमें दुर्लभ समझ रहा है वे सभी
जी खोलंकर तू मुझसे मांग । रथों और बाजों सहित ये १. वह उपनिषद् २.१-कौषीतिकी ब्राह्मणोपनिषद्- अलभ्य रमनियां तेरी सेवाके लिये देता है। इन सभी 'बध्याये।
वस्तुओंको ले लो। परन्तु हे नचिकेता! 'मरनेकै अनन्तर२. . उप. ७ वा अध्याय ।
की बात मुझसे न पूछो।