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________________ किरण] भारतमें आत्मवियाको बटूट धारा २१७ उत्तर नहीं जानता वह किस भांति अपनेको सुशिक्षित कह वार्ताका समय लगभग १४०० ई. पूर्व होना चाहिए। सकता है? इस प्रकार प्रवाहण राजासे परास्त हो वह कैकेयअश्वपतिकी कथा श्वेतकेतु अपने पिताके स्थानपर गया और कहने लगाकि आपने मुझे बिना शिक्षा दिये हुए ही यह कैसे कह दिया कैकेय देशका राजा अश्वपति परीक्षित और जन्मेजयकि मुझे शिक्षा दे दी गयी है।" का समकालीन था। कैकेय देश (आधुनिक शाहपुर जेहलम राजन्यबन्धुने मुझसे पांच प्रश्न पूछे, परन्तु मै उनमें- गुजरात नमें गुजरात जिला) गांधारसे ठीक पूर्वमें सटा हुमा है। कैकेय से एकका भी उत्तर देने में समर्थ न हो सका । बह अरुणी र अश्वपतिकी कीर्ति उसकी सुन्दर राज्य व्यवस्था बीर . बोला-मभी इन प्रश्नोंका उत्तर नही जानता। यदि मै उसके ज्ञानके कारण सब ओर फैली हुई है। इनका उत्तर जानता हुआ होता तो कैसे मै तुम्हें इन्हे एक बारका कथन है कि उपमन्युका पुत्र प्राचीनशाल, न बताता। पुलुषिका पुत्र सत्ययज्ञ, मालविका पुत्र इंद्रधुमन, उसके बाद वह अरुणि गौतम उन प्रश्नोंका ज्ञान शर्कराक्षका पुत्र जन और अश्वतराश्विका पुत्र बुडिल जो करनेके लिये राजा प्रवाहणके पास गया। राजाने उसे बड़ी-बड़ी शालाओंके अध्यक्ष थे और महाज्ञानी थे आपसमें आसन दे पानी मंगवाया और उसका अर्घ्य किया। तत्- मिल कर विचारने लगे "हमारा आत्मा कौन है ? ब्रह्म क्या पश्चात् राजाने कहा-हे पूज्य गौतम ! मनुष्य योग्य धन- वस्तु है।" उन्होंने निश्चय किया कि इन प्रश्नोंका उत्तर का वर मागो। यह सुनकर गौतमने कहा-हे राजन् ! अरुणवशीय उद्दालक ऋषि ही दे सकता है, वह ही इस समय मनुष्य धन तेरा ही धन है । वह मुझे नही चाहिए । मुझे तो आत्माके ज्ञान को जानता है, चलो उसके पास चलें। वह वार्ता बता दे, जो तूने मेरे पुत्रसे कही थी। उन आगन्तुकोंको देख उद्दालक ऋषिने विचार किया गौतमको यह प्रार्थना सुन राजा सोचमें पड़ गया। कि ये सभी ऋषि महाशाला वाले है और महा श्रोत्रिय सोच-विचार करने पर उसने ऋषिसे कहा-यदि यही है, उनको उत्तर देनेके लिये मै समर्थ नहीं हूं। उसने कहा वर चाहिए तो चिरकाल तक व्रत धारण करके मेरे पास रहो। कि इस समय कैकेय अश्वपति ही आत्माका सब नियत साधना करने पर राजाने उसे कहा-हे गौतम ! जिस विद्याको तू लेना चाहता है, उसे मै अब देने को तैयार प्रकारका ज्ञाता है। आओ उसके पास चलें। वहां पहुंचने पर अश्वपतिने उनका सत्कार किया और कहा 'मेरे देशमें हूं, परन्तु यह विद्या पूर्वकालमें तुझसे पहले ब्राह्मणोंको न कोई चोर है न कृपण, न शराबी, न अग्निहोत्र रहित, प्राप्त न होती थी इसलिये सारे देशोंमें क्षत्रियोंका ही न कोई अपढ़ है और न व्यभिचारी, व्यभिचारिणी तो होगी इस पर अधिकार था । क्षत्रिय क्षत्रियोंको ही सिखाते थे। कहा से?" आप इस पुण्य देशमें ठहरें,मैं यज्ञ करनेयह कहकर राजाने पंच प्रश्नोंका रहस्य गौतमको बतलाना वाला हूं, आप उसमें ऋत्विज बनिये, मैं आपको बहुत शुरू कर दिया। पं. जयचन्दके कथनानुसार पांचालनरेश प्रवाहण ही दक्षिणा दूगा। उन्होंने कहा, कि हम आपसे दक्षिणा लेने नही आये है, हम तो आपसे आत्मज्ञान लेनेके लिये जैबलि-जन्मेजयके पौत्र अश्वमेधदत्त अर्थात् पाडव पुत्र ' आये है । अश्वपतिने उन्हें अगले दिन सवेरे उपदेश देनेअर्जुनकी पांचवी पीढ़ीके समकालीन था।' इस तरह उक्त का वादा किया। अगले दिन प्रातःकाल वे समिधाएं १ "सह कृष्छी बभूव । त ह चिरं बसेत्तथाज्ञापयां हाथोंमें लिये उसके पास पहुंचे और अश्वपतिने उन्हें चकार । तं हो वाच-यथा मां त्वं गौतमावदो आत्मज्ञान दिया । ययं न प्राक् त्वत्तः पुरा विद्या ब्राह्मणान् गच्छति। तस्मात् सर्वेषु लोकेषु क्षत्रस्यैव प्रशासनमभूदिति। ३. छां. उप. ५-११,१२; महाभारत-शान्तिपर्व अध्याय -छां. उप. ५-३-७ । २. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा, जिल्द प्रथम, ४. भारतीय इतिहासकी रूपरेखा-जिल्द प्रथम, पृष्ठ २८६ । पृष्ठ २८६ ।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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