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________________ विश्व-शुद्धिका पर्व पर्यषण (श्री वी० बी० कोछल वकील ) मानव-शुद्धिपर विश्वकी शुद्धि होना निर्मर है। विरति-विधान कराना मनीषियोंने ठीक समझा। कितने दर्शन विशुद्धि वह प्रशस्त अमर प्रदीप है जिसमें विश्वके महान् दूरदर्शी ये वे, कितना भरा था समाज-प्रेम उनमें, वे चेतन और अचेतन द्रव्योंके समस्त रहस्य खुल जाते हैं। सुधारवादी नहीं थे कितने अधिक थे वे क्रान्तिकारी, परिवर्तनमानवता प्राणवती तभी होती है जब वह अपनेको विज्ञान कारी, कितने महान् विप्लववादी थे वे कि जिन्होंने मिथ्यात्व की प्रयोगशाला (Laboratory) मानकर, अपनी और अज्ञानको समाजसे हटानेके लिये धार्मिक जहादकी अशुद्धिका कारण ढूंढनेके प्रयासमें संलग्न होती है स्व- घोषणा इस पर्वमें कर दी। और प्रत्येक व्यक्तिको पर्वृषणी निरीक्षण और परीक्षण करनेके बाद परिणाम सिद्धि निकालती बना दिया । शारीरिक शुद्धि-मानसिक शुद्धि और आत्मशुद्धिहै । बन्धनको सयुक्ति ही उसे मुक्तिकी चाह पैदा करती की सामूहिक योजना बनाकर प्रवृत्तिमें निवृत्तिके अनुष्ठान है। इसमें व्यक्त और अव्यक्त तत्वोंकी संश्लिष्टि है, यही संयोजित कर दिये, और समाजमें नवीन उन्नतिकी होड़ कारण है कि वह अव्यक्त होना चाहती है । अचेतन शक्तियों- पैदा कर दी; सामयिक आदि षट् आवश्यककर्मोको के मोहमें वह व्यक्त होकर विपरीत दर्शन कर रही है और नियोजित कर दिया। और मानवको तीर्थ बनानेके लिये उन्हींके व्यापारमें रत होकर आबद्ध हो रही है। अविपरीत उपवास-उपाहारसे शरीर-शुद्धि, विरति भावसे रति शुद्धिदष्टि हो जानेपर वह अपनी स्वशुद्धिके निर्माणमें लग के अनुष्ठान यज्ञ प्रारम्भ कर दिये, जनमात्रको इस जहादजाती है-यही प्राथमिक दर्शनविशुद्धि हो जानेपर, उसके में निरत कर धर्म प्रभावनाके कार्यमें संलग्न कर दिया जीवनके समस्त व्यापार प्रतिशोधर्म संलग्न हो जाते हैं। और प्रामाणिक पुरुषोंने दर्शनविशुद्धि आदि षोडशकिरणोंदर्शन-विकारके कारण जो भावोंके निक्षेप और विकल्प की प्रशस्त ज्योति (Flash Light) छोड़ना प्रारम्भ उसमें पैदा हो रहे थे वे शनः २ निरपेक्ष और निर्विकल्प कर दिया और मानव हृदस्थित करण-लब्धियां जाग्रत कर हो जाते है। और साम्यदृष्टि हो जानेसे-पुद्गल वर्गणा तीयोंकी समष्टि करदी और घोषणा करदी कि प्रत्येक मानव और अनंत व्यापार निदर्शित हो जानेस-वह अनंतदी, तीर्थ है" और तीर्थकर हो सकता है-उसमें उत्तम शमादि तत्त्वजनित भावोंके विलय हो जानेसे अनंतशानी और दश धोको सत्तात्मक निधि मौजूद है कहीं बाहरसे किरायेउनकी स्वतंत्र क्रियाओंका अनुभव हो जानेपर अनंत- से उसे लाना नही पड़ता है। माथ ही 'अहिंसा भूतानां जगति चारित्रकी निधि "पूर्ण सिद्धि" को पा लेता है पर द्रव्योंके विदितं ब्रह्म परमम्' का झंडा फहराते हुए; आदेशना करदी (Control) हट जानेसे वह दिव्य दृष्टि अर्हन् बन जाता कि विश्वके समस्त तत्त्व मानव पर्यायमें निहित होकर है, और उसमें विश्वशुद्धि क्रिया अनवरत रूपसे चालू रहती आये हैं। विश्वनिर्माण ही स्वच्छ है, उसमें समस्त द्रव्योंके है। इसी विश्वशुद्धिके मार्गको चालू रखनेके लिये विज्ञा- नग्न और मुक्त व्यापार हो रहे है,वे सब दिगम्बरी है। मानवनियोंने भाद्रपदको संवत्सरी प्रतिक्रमणके लिये प्रशस्त को पूर्ण सिद्धि इसी दिगम्बरत्वमें है, यही अव्यक्त तत्त्व है समझ कर इसे सामाजिक शुद्धिका पर्व निश्चित किया। जिसकी प्राप्ति पर मानव धर्म-जैन धर्म-विश्व धर्म हो प्रतिवर्ष भाद्रपद आता है और साथ साथ विरति पर्व जाता है। हरएक मानवका कर्तव्य है कि वह विश्वको गंदा न लाता है। इस मासमें रति-क्रिया चक्र स्थितिको प्राप्त होती करे। जो गंदा करता है उसे जमीन पर जीना मरना पड़ता है; वर्षा कारण मानव बाह्म व्यापारकी गति संस्थानको है और दुःख उठाने पड़ते हैं और वह मुक्तिका व्यापारी प्राप्त होती है और अनुष्ठान वतादि स्वयं जागृत हो उठते नहीं बन सकता। शाश्वत लोककी यही संदृष्टि है और है। व्रत-पर्व भी वैज्ञानिक रहस्यसे खाली नहीं है-समाजमें यही अमर प्रकाश है, जिसमें पर्दूषणपर्वका माहात्म्य सामूहिक रति बढ़ जाती है तो उसे दूर करनेके लिये सामूहिक भरा है।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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