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साहित्य परिचय और समालोचन
१.नजागरणके अग्रदूत-लेखक, बाबू अयोध्या- विचार नहीं किया गया है, जिसके करनेकी आवश्यकता थी। प्रसादजी गोयलीय । प्रकाशक, मंत्री, भारतीय ज्ञानपीठ इस ग्रन्थकी इस प्रस्तावनाके लेखक पं० दरबारीलालजी काशी। पृष्ठ संख्या, ६३६ । मूल्य सजिल्द प्रति का ५)रुपया। न्यायाचार्यने श्वेताम्बरोंकी इस मान्यताका निरसन किया है
प्रस्तुत पुस्तकमें ३७ विद्वानो, त्यागियो और श्रीमानों और बतलाया है कि इस स्तवनके कर्ता सिद्धसेन दिवाकर आदिके जीवन परिचय दिये गये है, जिन्हे त्याग और साधना- नही है किन्तु यह कुमुदचन्द्रचार्यकी कृति है। प्रसिद्ध के पावन-प्रदीप, तत्वज्ञानके आलोकस्तम्भ, नवचेतनाके ऐतिहासिक विद्वान् प० जुगलकिशोरजी मुख्तारने इससे भी प्रकाशवाह, श्रद्धा और समृद्धिके ज्योतिरल इन चार विभागो पूर्व पुगतनजनवाक्य-सूचीकी प्रस्तावनामें अनेक प्रमाणोके में बाटा गया है। कितने ही परिचय तो पत्र पत्रिकाओसे आधारमे इस स्तवनका कर्ता कुमुदचन्द्रको ही बतलाया है संकलित किये गये है और कुछ परिचय इनमे गोयलीयजी सिद्धसेन दिवाकरको नही। आदिके द्वारा नवीनभी लिखे गये है पर उन सबका संकलन इस स्तवनमे मूलस्तोत्र कर्ताने कही पर भी मंत्र-तत्र गोयलीयजीने ही करके उसे वर्तमान रूप दिया है। गोयलीय- आदिका विधान नही किया है, क्योंकि प्रस्तुत स्तवन निष्काम जो स्वयं सिद्धहस्त लेखक है उनके दिलमें उमंग है और हृदय भक्तिको उत्कट भावनाका प्रतीक है, उसका प्रत्येक पद उत्साहसे भरा हुआ है, उनकी लेखनीमे तेज है और वह भक्तिभावकी अपूर्वताको लिये हुए है, उसमे भक्तिकी अनेकोंको उत्तेजित भी करते रहने है । परिचयोमे यद्यपि महत्ताका उद्भावन करते हुए लिखा है कि भावशून्य क्रियायें कितने ही परिचय अतिरजित और कितनं ही अतिशयोक्ति- फलवती नही होती । परन्तु लेखक (अनुवादक) महाशयने योको लिये हुए है पर इसमे सदेह नहीं कि गोयलीयजीने इस संस्करणमें मूलस्तवनके साथ उनके अनेक ऋद्धिमंत्र उक्त पुस्तकका संकलन आदि कर एक आवश्यक कमीको दूर यत्र साधनविधि और उसके फल प्राप्त करनेवालोंकी करनेका प्रयत्न किया है । इसकेलिये गोयलीय जी धन्यवादके सक्षिप्त कथाए भी साथमें जोड दी, इससे जहां भक्तजन इस 'पात्र है। पुस्तककी छपाई सुन्दर और गेटअप चित्ताकर्षक है। स्तवनके द्वारा जिनेन्द्रगुणोको यथावत् अवधारण कर कर्म
२. कल्याणमन्दिरस्तोत्र-(ऋद्धि मंत्रयत्र और साधन- बंधनको ढीला करनेका प्रयत्न करता वहा उसे मंत्रयंत्र तंत्रविधि सहित) मूलकर्ता, आचार्य कुमुदचन्द्र । लेखक के झमेलेमे डालकर सांसारिक बन्धनोंकी ओर लगानेका (अनुवादक) प० कमलकुमार शास्त्री खुरई । प्रकाशक, प्रयत्न किया गया है और यह नहीं बतलाया कि ये ऋद्धिमत्र श्री कुन्थसागर स्वाध्याय सदन खुरई जि. सागर । पृष्ठ संख्या, यंत्रादि उक्त स्तवन परसे कैसे फलित होते है। और इसलिये १८० । मूल्य, अजिल्द प्रति का २) रुपया।
वे मूलस्तोत्रके साथ असम्बन्ध जान पड़ते तथा भ्रामक प्रतीत प्रस्तुत स्तवनका नाम कल्याण-मन्दिर है जो उसके होते है बिना किसी युक्ति प्रमाणके ऐसा करके लोगोको आद्यपद्यके प्रारम्भमें ही प्रयुक्त हुए 'कल्याणमन्दिरम्' पदके गुमराह करना उचित नहीं कहा जा सकता। यों ही इस प्रकारकारण भक्तामर आदि स्तोत्रोंकी तरह लोकमें विश्रुत हुआ की चीजोका इधर उधरसे संकलित करके रख देना मूल है। इसमें जैनियोंके तेइसवें तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथका स्तवनकी महत्ताको कम करना है। स्तवन अंकित है । जिसमें उनके साघुजीवनके समय उनके इसके सिवाय लेखकने इस स्तवनके कर्ता कुमुदचन्द्रपूर्वज लघुबन्धु कमठके द्वारा घटने वाली उस सोपसर्ग घटना- के साथ उज्जनीमे सिद्धसेन दिवाकरके साथ घटने वाली का सजीव चित्रण किया गया है जो श्वेताम्बर परम्पराद्वारा उस महाकालेश्वरकी घटनाका सम्बन्ध जोड़ दिया है जिसका अमान्य है। फिर भी इस स्तवनका समादर दिगम्बर और प्रस्तुत स्तवनकत्तकि इतिहासके साथ कोई सम्बन्ध नही श्वेताम्बर उभय सम्प्रदायोंमें पाया जाता है। इस स्तवनके इस प्रकार की असावधानी भविष्य में बड़ी दुखदायक हो जाती कर्ता आचार्य कुमुदचन्द्र है, पर कुमुदचन्द्र कब हुए है और है। प्रेसादिकी असावधानीसे छपनेमें कुछ त्रुटियां रह गई है। उनकी गुरुपरम्परा क्या है, इस सम्बन्धमें प्रस्तावनामें कोई, फिर भी छपाई सफाईकी दृष्टिसे यह संस्करण बुरा नही है।