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बनेकान्त
[वर्ष ११
"स्वामी समन्तभद्रके उक्त महत्वपूर्ण प्रयका हिंदी संक्षिप्त महत्वका निरूपण करते हुए वीर-जिनेन्द्रको आगम अनुबाद मुख्तार साहबने बहुत ही सुन्दर ढंगसे किया है। तया युक्तिसे परीक्षित शासनकी विजयमाला रूप प्रस्तावनामें समन्तभद्रके संबंध में एवं प्रकृत ग्रंयके संबंध उपहारसे उसकी स्तोत्ररूपता भी युक्त है। वीर जिनेन्द्रको खूब विस्तृत परिचय दिया गया है। ...पुस्तक पठनीय, किसी विशिष्ट माता-पिताकी प्रसूति रहते हुये भी स्वयंभू अवश्य संग्रहणीय है।"
पद प्रयोगकी उपपत्तिके लिये जो उसपदकी व्याख्या की है, ग्रन्थ नम्बर ४, ५पर युगपत् विचार वह अत्यन्त मनोरंजक है। जैनसमाजके द्वारा आपकी स्वयं१. पं. अमृतलाल जैन, दर्शनाचार्य, काशी
आविर्भूत, साहित्यसेवोपयुक्त असाधारण विद्वत्ताका जो "आपकी दोनों पुस्तकें-युक्त्यनुशासन और स्वयंभू परिचय मिला है, तदनुसार आप भी स्वयंभू इस उपाधिस्तोत्र-पाकर बडी प्रसन्नता हुई । आपका अनुवाद उतना के योग्य हैं। मै एकमात्र अपने संस्कृत पद्यसे आपकी वीरसेवा ही प्रशंसनीय है जितना मल्लिनाथका । मल्लिनाथकी सजी- प्रवृत्तिको जागरूक रहनेकी कामना करता हुआ सक्षिप्त वनी टीकासे कालिदासकी भारती जीवित हो गई और समालोचनासे उपरत हो रहा हूं:आपकी टीकासे समन्तभद्रकी । भगवान से प्रार्थना है कि स्वत एवाद्भुतवीरो युगलकिशोरो विभाति युगवीरः । आप १०० वर्ष और जीवित रहें। आपके बाद ऐसे काम तेनास्तु वीरसेवा सन्ततमेवाधुनेवासी ॥ कौन करेगा? आप तो वृद्ध युवक है । अब तो युवक वृद्ध
५. श्री जमनालाल जैन, सम्पादक, "जैनजगत" वर्धाहोने लगे हैं।"
"दोनों आचार्य समन्तभद्रकी अनुपम कृतिया है । २. डा. ए. एन. उपाध्याय, एम. ए., डी. लिट्, कोल्हापुर- आचार्य समन्तभद्र जैन दार्शनिक परम्पराके वह अखड
"-These two books have come out ज्योतिर्मान दीपक है, जो अपनी उज्ज्वलता, प्रखरता, और in an excellent form, and your authori- महानताके लिये सुप्रसिद्ध है। शब्दोंके मूल्य और महत्वको tative Hindi rendering has not only
समझके लिये इनकी कृतियोका अध्ययन आवश्यक है । enriched the Hindi language but has also given a wider circulation to these
गत दो हजार वर्षोंमे अनेक विद्वान् आचार्योने उनकी ज्ञान
सपा works of Samantabhadra which you गरिमासे प्रकाश प्राप्त किया है । शान-के इस अथाह सागरhave made subject of your life-long study में गोता लगानेवाले अनेक पुरुषार्थी भ्रम-भवरसे पार हो and meditation. I have to learn more
चुके है । इस युगके आचार्यवरके अनन्यभक्त प जुगलकिशोरfrom these books than to suggest anything to you when you have spent so
जी मुम्तारने इन दोनों रचनाओका सम्पादन किया है। much time and energy on them." जिन कृतियोका सम्पादन वर्षोंके गहन अध्ययन और मयनके
३. प्रो हीरालाल जैन, एम. ए., डी. लिट्, नागपुर- बाद हुआ हो उनके विषयमें क्या कहा जाय? .......
"-मुख्तारजीने इन अतिदुर्गम ग्रंथोंको अपनी टीका- ये स्तुतियां तर्क और सिद्धातके आधारपर रची गई है। द्वारा बहुत ही सुबोध बना दिया है । इसके लिये उनका हृदयसे इन स्तुतियोमे व्यक्तिगत गुण-दोषोंको स्थान न देकर आचार्यअभिनन्दन करता हूं।"
श्रीने जैनवर्मकी नीति, सिद्धात और दार्शनिकताके एक-एक ४. श्री भूपनारायण झा, ग. सं कालिज, बनारस- अंगको स्पष्ट कर दिया है। युक्त्यनुशासनमे ही, सबसे पहले
"श्रीमान् जुगलकिशोरजी मुख्तार 'युगवीर' ने स्वामी आचार्यश्रोने वीरके धर्मको सर्वोदय-तीर्थ बताया है। सम्पासमन्तभद्रके स्वयम्भूस्तोत्र और युक्त्यनुशासनका जो अनु- दक महोदयने ऐतिहासिक विवेचनामे आचार्यके समय, उनबाद लिखा है, वह सारायंगभित, तथा प्रतिपद विशद रहने की शैली, भाषा और अंयगत विषयको भलीभांति समझाया के कारण आपकी प्रौढ़ प्रतिभाका आदर्श है । स्वयंभूस्तोत्रकी है। छपाई-सफाई अत्युत्तम है।" प्रस्तावनामें भक्तियोग, ज्ञानयोग, कर्मयोग, इन तीनो ६. श्री मा. ज. भोसीकर, एम. ए , न्यायतीर्थ, सम्पादक प्रवाहमागौसे उसे भगवती त्रिपथा गंगा अथवा त्रिवेणीका 'सन्मति'रूपक, तथा उसमें सर्वश्रेष्ठ भक्तियोगकी मुख्यता सत्यता- "अशा या महान् कृतीचे महा-मूल्यमान या छोटयाशा पूर्ण प्रतीत हुई है। युक्त्यनुशासनको प्रस्तावनामें उसके लेखांत मी कुठवर करणार? तें स्वामी समन्तभद्र-मारतीचे