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________________ किरण ३-४ ] दुनियां की नजरों में बीरसेवामन्दिरके कुछ प्रकाशन - करोंकी स्तुति अत्यत भावपूर्ण है। इतना ही नहीं इन स्तुति- किया है । ग्रंय अतिगहन है इसीसे अभीतक हिंदी में इसका योंमें जैनागमका दार्शनिक अंश भी कूट-कूटकर भरा है। कोई अनुवाद नहीं हो पाया था। मुख्तार साहबने इसके हिंदी प्रकृत अयमें मुख्तारजीने उस स्वयंभूस्तोत्रका मलसहित अनुवादको प्रस्तुत करके तया वीरसेवामन्दिरने उसे प्रकाअनुवाद प्रकाशित किया है। अनुवाद अत्यत स्पष्ट व सरल शित करके एक बहुत बड़े अभावकी पूर्ति की है। अंकका होनेके कारण सर्वसाधारण जनताको समझने में सरलता प्राक्कथन न्यायाचार्य पंडित महेन्द्रकुमारजीने लिखा है । हो गई है। किसी भी स्तोत्रके अर्थको समझकर पाठ करनेमे उन्होंने मुख्तार सा. के अनुवादको सुन्दरतम, प्रामाणिक और ही उसका यथार्थ फल मिलता है । ग्रंयमें स्तोत्र और स्तोत्र- सरल बताया है। वास्तवमें दर्शन-शास्त्रको गुत्थियोंसे बोतकार समन्तभद्र स्वामीके परिचय, इतिहास, आदिके सबमें प्रोत प्रयका हिंदी अनुवाद करना सरल कार्य नही है । मुख्तार ऊहापोहात्मक विस्तृत प्रस्तावना १०६ पृष्ठोंमें है। इस सा ने अपने अनुवादमें प्रत्येक पथके रहस्यको अच्छी तरह दृष्टिसे प्रयकी उपादेयता और भी बढ़ गई है। अंतमें स्वयभू स्पष्ट करनेका प्रयत्न किया है । प्रयके आरंभमें मुख्तारस्तोत्रगत स्तवन-छदसूची और श्लोकानुक्रमणिका भी दी सा की छतीस पृष्ठकी प्रस्तावना भी है जिसमे ग्रंय तथा गई है । पुस्तक संग्रह करने एव पढ़ने योग्य है।" प्रथकारके विषयमें रोचक प्रकाश डाला गया है। प्रय समास ५. ब्र गुलाबचन्द जैन, स्वाध्याय मन्दिर, सोनगढ़-- है, प्रत्येक स्वाध्याय प्रेमीको इसका स्वाध्याय अवश्य करना "आपका त्रियोगविषयक स्वयभूस्तोत्र पढकर अत्या- चाहिये ।" नन्द हुआ । प्रस्तावना लिखने में आपने सर्वया योग्य (श्रम) ३. चैनसुखदास, न्यायतीर्थ, सम्पादक 'वीरवाणी', किया है । यह प्रस्तावना सचमुच सर्वोनम है।" जयपुर५. युक्त्यनुशासन ___"--भगवान् महावीरको स्तुतिस्वरूप यह (युक्त्य१ प्रो. महेन्द्रकुमार, न्यायाचार्य, हिंदू विश्वविद्यालय नुशासन)प्रय जैनागम के दार्शनिक सिद्धातोंका गभीर हृदयाकाशी कर्षक एक विश्लेषणात्मक विवेचन करने वाला है। ..... "युक्त्यनुशासन-जैसे जटिल और सारगर्भ महान् हम इस स्तोत्रको स्तोत्रोंका सम्राट् कह सकते है। समूचे सस्कृत प्रयका सुन्दरतम अनुवाद समन्तभद्र स्वामीके अनन्यनिष्ठ वाङमयमें यदि इसकी सानीका दूसरा कोई स्तोत्र हो सकता भक्त, साहित्य-तपस्वी प. जुगलकिशोरजी मुख्तारने जिस है तो वह इमी कविकी दूसरी रचना स्वयभू स्तोत्र ही हो अकल्पनीय सरलतासे प्रस्तुत किया है, वह न्याय-विद्याके सकता है । ऐसे महिमामय स्तोत्रका हिंदी अनुवाद करके अभ्यासियोंके लिये आलोक देगा । सामान्य-विशेष युत- आदरणीय मुख्तार माहबने हिदी पाठकोका बड़ा उपकार सिद्धि-अयुतसिद्धि, क्षणभगवाद, सन्तान आदि पारिभाषिक किया है । अबके प्रारभ २४ (१२) पृष्ठोंकी प्रस्तावना दर्शनशब्दोका प्रामाणिकतासे भावार्थ दिया है। आचार्य और २४ पृष्ठोका समन्तभद्रका संक्षिप्त परिचय देकर जुगलकिशोरजी मुख्तारको यह एकान्त साहित्य-साधना इसे और भी उपयोगी बना दिया है।" आजके मोल-तोलवाले युगमें भी महगी नही मालूम होगी, ४. श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय, सम्पादक, 'ज्ञानोदय', जब वह थोड़ा-सा भी अतर्मुख होकर इस तपस्वीकी निष्ठा- काशीका अनुवादकी पंक्ति-पंक्ति पर दर्शन करेगा । वीरसेवा- "कहनेको इस अयमें स्वामी समन्तभद्राचार्यने वीर मन्दिरकी ठोस साहित्य-सेवाएं आज सीमित साधन होनेसे प्रभुका स्तवन किया है । लेकिन वे किस धर्मके प्रवर्तक थे? विज्ञापित नही हो रही है पर वे घ वताराए है,जो कभी अस्त कल्याणकारी मार्ग क्या है, आत्महितैषी कौन है, वास्तविक नही होते और देश और कालकी परिधियां जिन्हे धूमिल सुख क्या है? आदि विषयोंपर बहुत गहरेमें डूबकर चिंतन नहीं कर सकती।" किया है। मुख्तार साहबने इस अनुपम ग्रंथका अनुवाद बड़ी २. प. कैशलाशचन्द्र जैन, शास्त्री, बनारस तन्मयतासे प्रस्तुत किया है और सर्वसाधारणके समझने "युक्त्यनुशासन स्वामी समन्तभद्रकी महनीय कृति है। योग्य बना दिया है।" इसमें ग्रयकारने ६४ पद्योंके द्वारा अबाधित वस्तुतत्त्वका ५. प. वर्षमान पार्श्वनाथ शास्त्री, सम्पादक, "जैन निरूपण करके वीर प्रभुके तीर्थको ही सर्वोदय तीर्थ सिद्ध बोषक" शोलापुर
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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