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अनेकान्त
[बर्ष ११
poctical work in 116 verses in praise of एक ही ग्रंथ प्रयमानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और the twenty-tour linthankaras and em- द्रव्यानुयोगका स्वरस है । ऐसा ज्ञात होता है जैसे सरस्वती ploys throughout the citralankaras such as Murajabandha, Ardhabhrama and
स्वयं ही बोल रही । इसके हिंदी अनुवादक मुख्तार साहब the different varieties of Yamakas etc.
श्रीसमन्तभद्र-भारतीके गंभीर एवं तलस्पर्शी अध्येता है । The use of these devices in a religious आचार्यश्रीकी रचनाओं एवं उनके परिचयके विषयमें अभीpoem by such an early author helps to
तक मुख्तार साहबने जितना लिखा है संभवतः उतना किसीने explain their recurrence in Mahakavyas, and bears witness to the mastery of
भी नहीं लिखा । इसके लिये उन्हें जितना धन्यवाद दिया जाय the intricacies of the Sanskrit language
थोड़ा है । इस वृद्धावस्थामें भी माता सरस्वतीकी सेवाके expected of the poets..........Our लिए वे जो कुछ कर रहे है वह हर एकके लिये अनुकरणीय thanks are due to Pandit Jugal Kishore
है।...... स्तोत्रके प्रत्येक पद्यको पढते समय रचयिताकी Mukhtar well known for his researches in
लोकोतर-प्रतिभा जैसे आंखोंके सामने नाचने लगती हो । Jaina Sanskrit literature, for his learned introduction to the poem."
यह हिंदी अनुवाद भी मूलग्रयके अनुरूप ही हुआ है । "
प्रारंभमें ८२ पृष्ठकी प्रस्तावना और २४ पृष्ठका समन्तभद्रका ४. स्वयम्भूस्तोत्र
सक्षिप्त परिचय लगा देनेसे प्रयकी उपयोगिता बहुत बढ़ गई १. प. कैलाशचन्द्र जैन शास्त्री, बनारम
है । परिशिष्टमें स्वयभूस्तवनछद सूची और अर्हत्सबोधन"आ. समन्तभद्र-प्रणीत स्वयभूस्तोत्र एक ऐसा महत्व
पदावलि भी लगा दी गई है। पुस्तक प्रत्येक दृष्टिसे उपादेय पूर्ण स्तोत्र है जिसमें चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुतिके आधारसे
है। प्रत्येक मन्दिर और पुस्तकालयमें इसकी एक-एक प्रति अनेकान्तवादका, नयवाद, प्रमाणवादका, सप्तभंगीका,
अवश्य चाहिए।" तथा स्तुति और पूजनके महत्व, उद्देश्य आदिका गभीर
____३. श्री अयोध्याप्रसाद गोयलीय, सम्पादक 'ज्ञानोदय' विवेचन है। अनुवादकके शब्दोमें इसमें जैन शानयोग,
बनारसकर्मयोग और भक्तियोगको त्रिवेणी प्रवाहित है।..........
"इस स्तोत्रमें चौबीस तीर्थंकरोंकी स्तुति करते हुए ...."मुख्तार सा ने इसका अनुवाद बहुत ही नपे-तुले शब्दोंमें स्वामी समन्तभद्रने जैनागमका सार एव तत्त्वज्ञान गागरमें किया है। यों तो इसके विवेचनमें एक बृहत्काय ग्रंथ लिखा जा सागरकी तरह भर दिया है। और खबी यह है कि जहा श्रद्धालु सकता है इतना प्रमेय इस स्तोत्रमें भरा हुआ है । अनुवाद
आत्मा-स्तवन करते हुए भक्ति-विभोर हो उठता है, वहां सुन्दर है और ग्रंथको समझनेमे सहायक है। प्रारभमें सौ
तत्त्व-चिन्तन करते हुए आत्मलीन हो जाता है। इस ग्रंथ में पृष्ठकी प्रस्तावना है। यह बहुत ही महत्वपूर्ण है । इसमें भक्तियोग, ज्ञानयोग, और कर्मयोगको निर्मलधाराएं इस स्तोत्रका विवेचन और विश्लेषण अनेक दृष्टियोंसे किया गया
कलापूर्ण ढंगसे एकाकार हुई है, कि समन्तभद्राचार्यके बनाये है।.... ... इसके पढ़नेसे स्तोत्रके हृबकी पूर्णरूपरेखा पाठककी
इस संगममें जो एकबार डुबकी मार लेता है, कृतकृत्य । दृष्टिमें अंकित हो जाती है।......स तरह इसके सपादनमें
जाता है । .......स्तोत्रका अनुवाद भी मुख्तार साहबने काफी श्रम किया गया है।......." पुस्तक संग्राम है।"
आत्म-विभोर होकर किया है। एक-एक शब्दको सरल और २. पं. चैनसुखदास, न्यायतीर्ष, सम्पादक 'वीरवाणी'
सुन्दर ढंगसे व्यक्त किया है। अनुवादके अतिरिक्त १०६ जयपुर
पृष्ठोंमें ग्रंथकी महत्वपूर्ण प्रस्तावना और ग्रंय-कर्ताका परिचय "जैन वाङमयमें स्वामी समन्तभद्राचार्यकी रचनाओंका जिस खोज और अध्यवसायसे दिया है, वह ग्रंयके स्वाध्यायसे अत्यंत आदरणीय स्थान है । उनकी आश्चर्यकारिणी प्रतिभा- ही विदित हो सकता है।" के द्वारा प्रसूत यह स्वयंभूस्तोत्र निःसन्देह संस्कृत वाङ्मयका ४. प. वर्षमान पार्षनाथ शास्त्री, सम्पादक "जैनअनुपमेय मंच है। इसमें बादीश्वरसे महावीर चौबीस बोषक" शोलापुरतीबंकरोंका स्तवन है। पर ग्रंथकर्ताने इस स्तवनके रूपमें "जैन शासनके प्रभावक आचार्य स्वामी समन्तभद्रसमूचे जैन बाबमयका सार निचोड़कर रख दिया है। यह के द्वारा विरचित स्वयम्भूस्तोत्र प्रसिद्ध है जिसमें २४ तीर्थ