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________________ किरण ४-५ ] दुनियाकी नजरोंमें : पीरसेवामन्दिरके कुछ प्रकाशन जिसपर भारत कृषिप्रधान देश होनेके कारण खूब खुशिया बदि एकमको सुव्यवस्थित रूपसे अहिंसाकी प्रथम देशनादी हो मनाया करता था। और उसका नाम अहिंसासंवत् या वर्ष रखना चाहिए। ऐसी हालतमें स्वतन्त्र भारतका वर्ष भी श्रावण कृष्ण जिस अहिंसाके प्रतापसे वर्तमानमें गांधीजीने भारतदेशप्रतिपदा (सावनवदि१) से प्रारम्भ होना चाहिए, उसीको को स्वराज्यकी प्राप्ति कराई है उसके नाम पर संवत सर्वत्र राजकाजमें स्थान दिया जाना चाहिए और उसी दिन प्रचलित करना कृतज्ञताका एक बड़ा भारी सूचक होगा। नये वर्षकी छुट्टी रखनी चाहिए। इससे किसानोंको भी ऐसी सुव्यवस्थित अहिंसा-देशना को आज २५०८ वर्ष हो चुके विशेष सन्तोष मिलेगा, जिनकी संख्या सबसे अधिक है। है और गत श्रावणीय-प्रतिपदासे २५०९ वां वर्ष चाल है। सावनवदि एकमसे वर्षका प्रारम्भ करने पर भी उसके इसी अहिंसात्मक देशनावाले तीर्थकी उत्पत्तिका उल्लेख साथ साल सम्बत् जो चाहे जोडा जा सकता है, जैसाकि उक्त गाथा में है । ऐसे अहिंसा-सम्वत् या वर्षका अपने ऊपर प्रकट किया जा चुका है। यदि किसी व्यक्तिविशेष- यहां चालू करने में भारतका गौरव है, उसका यह नया के नामवाले सम्वतको न अपनाया जाय तो दूसरे आविष्कार होगा और अन्य प्रचलित सन्-सम्बतोंकी अपेक्षा स्वतन्त्र सम्वत् या वर्षकी एक योजना और हो सकती है और वह सख्यामें भी बढा चढा रहेगा । अतः इस विषयपर भारतवह तबसे होनी चाहिए जबसे किसी महान पुरूषने सावन सरकारको पूरी तौरसे ध्यान देना चाहिए। दुनियाकी नज़रोंमें वीरसेवामन्दिरके कुछ प्रकाशन १. पुरातन-जैनवाक्य-सूची prove a valuable instrument of research. Please accept my respectful greetings." १. डा. हीरालाल जैन एम ए, डी लिट्, नागपुर ३ पं कैलाशचन्द जैन शास्त्री, बनारस"पुरातन जैन वाक्यसूचीकी प्रति पाकर बडा ही हर्ष "इस ( पुगतनजैन-वाक्यमूची ) में प्राकृतभाषाके म । मत- बानी हा। .....आपने साहित्य अन्वेषकोके हाथ में एक बहुत गिना जायक पलोंकी ही उपयोगी बहुमुल्य साधन दे दिया है जिससे उनकी न जाने । दी गई है। प्रारंभमें लगभग दासी पृष्ठको प्रस्तावना है उसमें कितने समय और शक्तिकी बचत हो सकेगी व खोजका ग्रन्थ और अन्य कारोके विषयमें गवेष गापूर्ण प्रकाश डाला कार्य वेगसे गतिशील हो सकेगा ; आपकी प्रस्तावना तो ___ गया है । श्री जुगलकिशोरजी मुनारके नामसे और उनकी का अध्ययनकी वस्तु है जो समयसाध्य है । . .आपने जो सेवाओंसे जैनसमाज सुपरिचित है । मुख्तार सा. जैनसाहित्यपरिश्रम किया है उसका तो कोई पार ही नही । उसके द्वारा विषयक इतिहासके आचार्य है । इस विषयमें उनकी सूझआपने साहित्यिकोंको अपना चिरऋणी बना लिया है। बझ और गवेषणा निराली है । जैनाचार्योंके विषयमें उन्होंने xxxइस अत्यन्त महत्वपूर्ण रचनाके लिये मेरा विनीत जो खोजे की है, वे अनुपम हैं । इसी ग्रन्थकी प्रस्तावनामें अभिवादन स्वीकार करें।" आचार्य कुन्दकुन्द, यतिवृषभ, सिद्धसेन, नेमिचन्द्र आदिके २. डा.ए एन. उपाध्याय एम.ए, डी. लिट्, कोल्हापुर- विषयमे उन्होंने जो कुछ लिखा है वह जैन इतिहासके लिए Just on the Diwali day I received उनकी अनुपम देन है । आचार्य सिद्धसेनको एक पक्ष अभी the copy of the Puratan-Jainvakya. तक श्वेताम्बरपरम्पराका ही मानता आता है। किन्तु मुख्तार Suchi. It is a sumptuous volume with सा. ने बड़ी प्रांजल युक्तियों के आधारपर सन्मतिसूत्रके कर्ता a solid and learned Introduction. It will definitely give youa longer life and प्रसिद्ध सिद्धसेनको दिगम्बर आम्नायका विधान प्रसित
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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