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________________ मनेकान्त [वर्ष १० किया है । सिद्धसेन-विषयक उनका विस्तृत निबन्ध उनकी Literature and Philosophy. So I reगवेषणापूर्ण बुद्धि और श्रमका साक्षात प्रतीक है।xxx commend the Puratana:Jainvakya Suchi and..... 'to the scholars and अधिक न लिखकर हमारा ज्ञान-प्रेमियोंसे इतना ही libraries of India and to the Indological निवेदन है कि इस पुस्तकको खरीदकर अपने-अपने भडारोंमें Departments of big foreign Universities, रक्खे और बडे-बड़े इतिहास अजैन विद्वानों तथा बड़े-बड़े interested in Indian religion and phiपुस्तकालयोको अर्पण करे, वे ही इस पुस्तकका यथेष्ट उप- losphy." योग और समादर कर सकते है । हम स्वय तो सस्कृत पद्या २. आप्त-परीक्षा नुकमणीकी प्रतीक्षामें हैं।" १ श्री जमनालाल जैन, सम्पादक “जैनजगत" ४. सैकेटरी, जैन रिसर्च इन्स्टिटयूट, यवतमाल वर्धा"-The book is the most valuable "इस (आप्तपरीक्षा) अयमें कुल १२४ कारिकाएं and important addition to our collection है और उन्हीकी विस्तृत टीका भी । आप्त अर्थात् 'ईश्वर' and very useful for the use while work की परीक्षा इस प्रयका मूल उद्देश्य है । 'ईश्वर' यों तो एक ing in the field of research regarding our religion, its history and literature छोटा-सा ओर जाना-बूझा शब्द है, परन्तु अर्थ और alike." व्याख्याकी दृष्टिसे कठिन भी उतना ही है । इस एक शब्द ५. श्री जमनालाल जैन, सम्पादक "जैनजगत"-- ने बडे-बड़े प्रकाड विद्वानोको हजारो वर्षांसे उलझा रखा है। "-उन (पं. जुगलकिशोर मुख्तार) की आकाक्षा विभिन्न दर्शोंमें ईश्वरसबबी भिन्न-भिन्न मान्यताए है और थी कि इतिहासके विद्यार्थियो और अध्ययनशील अन्वेषकांके सब एक दूसरेका खडन भी करते रहते है । आचार्य विद्याकार्य में, सुविधाकी दृष्टिसे अकारादिक्रमसे पद्यानुक्रमणिकाका नन्दने जैनदर्शनमें मान्य ईश्वरके सर्वज्ञता, वीतरागता, रहना अत्यन्त आवश्यक है। यह कार्य कठिन है । परन्तु और हितोपदेशिता आदि गुणोकी अन्य दर्शनोंकी मान्यताओंमुख्तारजी धुनके पक्के और लगनके सच्चे थे कि यह पर्वत-सा को आलोचनाके साथ परीक्षा और प्रतिष्ठा की है। प्रारभमे भारी कार्य भी सम्पन्न कर सके। भूमिका काफी विस्तृत, प कैलाशचन्दजीका प्राक्कथन है और सम्पादकको (प सूक्ष्म अध्ययनसे परिपूर्ण और इतिहासके क्षेत्रमे अनुपम दरबारीलाल न्यायाचार्य) की विद्वत्ता तथा खोजपूर्ण लम्बी मानी जायेगी। इसमें प्राकृत-भाषाके ग्रयो, अथकारो आदिका प्रप्तावना है । प्रस्तावनामें दार्शनिक तथा ऐतिहासिक परिचय ऐतिहासिक तथा भाषा-शास्त्रको दृष्टिसे दिया दृष्टिसे ग्रंय, ग्रयकार आदिपर पर्याप्त प्रकाश डाला गया गया है । अन्य विद्वानोंके मतोंपर भी पर्याप्त विचार किया है। बादमें कुछ परिशिष्टोंमें सुविधाके लिए कारिका-अनुगया है। मुख्तारसाहबका यह कार्य उनकी कोतिको बनाए क्रमणिका, ग्रथकारोकी सूची, समय आदिका निर्देश उपयोगी रखनेके लिए दोपस्तम्भके समान समझा जायगा । साहित्य हुआ है । हिंदी अनुवाद उत्तम हुआ है। ऐसे महान् दार्शऔर इतिहासके क्षेत्र में इस आदर्श और मल्यवान सेवाके निक प्रयको प्रकाशमे लानेके लिये सम्पादक और प्रकाशक लिए मुख्तारजी न केवल अभिनन्दन बल्कि श्रद्धाके पात्र है। धन्यवादाह है।" प्रस्तुत ग्रंय बड़ी-बड़ी लाइब्रेरियो, विश्वविद्यालयों और २. पं वर्षमान पार्श्वनाथ शास्त्री, सम्पादक 'जैनबोधक' भडारों में रहना ही चाहिए।" शोलापुर६. डा. कालीदास नाग एम ए, डी लिट्, कलकता "श्री महर्षि विद्यानंदकृत इस (आप्तपरीक्षा) महत्वपूर्ण “The Puratana-Jainvakya-Suchi, प्रयका संपादन व हिंदी अनुवाद प दरबारीलालजी न्यायाचार्य based on 64 standard works of the Di- कोठियाने किया है।......."न्याय प्रयकी हिी टीका करना gambar Jains in Prakrit and Apabh- बडा ही कठिन कार्य है तथापि सम्पादकजीने बहुत श्रमसे ransh, is now presented to the public, the Hindi Introduction of which is full यह कार्य किया है । कही-कही पाठ-भेद भी दिये गये है । of his (Pt. Jugal Kishore Mukhtiar's) निक्षप्त पाठोंका भी सकेत दिया गया हैं। ........वीर सेवाvaluable researches in Jain History, मन्दिर द्वारा ऐसे ग्रंयोंका प्रकाशन होता है जिससे साहित्य
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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