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________________ सम्पादकीय १. तीन महीने बाद पूनः सेवामें-- हुई थी और धर्मके प्रतापमे सूलके रूपमे परिणत होकर ___ आज मै कोई तीन महीने बाद अपने पाठकोकी सेवामे चली गई तथा कितना ही पाठ पहा गई है। अब मै एक उपस्थित हो रहा हूँ। तीन महीनेकी इस अनुपस्थितिका प्रकारमे अपना नया जन्म हुआ हो समझता हू। अस्तु । कारण वह भयकर तांगा दुर्घटना थी जिसका १३ अप्रेलको मेरी इस अस्वस्थताके कारण अनेकान्तकी ४थी किरण देहलीके चावड़ी बाजारमें मुझे अचानक शिकार होना पड़ा था। समय पर नही निकल सकी, जिसका मुझे खेद है। मै तो समइस दुर्घटनासे दाहिनी और बाई दोनो तरफकी छह पसलियो झता था कि मुझसे तथा अनेकान्तसे प्रेम रखनेवाले समाजके की हड्डिया टूट गई थी, रीढकी एक हईडीमे तथा सिरमे कुछ विद्वज्जन इस कठिन अवसरपर अपना खास तौरसे भी कई जगह भारी चोटे आई थी और शरीरके दूसरे अग-- सहयोग प्रदान करगे और पत्रको लेट नही होने देंगे, परन्तु दोनों घुटने, हाथ, भुजाए, कधे-भी अनेक चोटोसे अभिभूत आफिससे प्रेरणतमक पत्रोंको पाकर भी वे अपनी परिस्थितियो हुए थे। इन सब चोटोके कारण मै घटनास्थलपर ही बेहोश के वश समय पर कोई लेख नही भेज सके । चौथी किरणका हो गया था और बेहोशीकी हालतमें ही इविन अस्पताल समय टलनेपर मैने चोथी और पाचवी किरणको संयुक्तरूपले जाया गया था, जहा कुछ घंटोंके बाद मुझे होश आया था। में निकालनेका विचार स्थिर किया और ता. ४ जुलाई गोरी तथा लापर्वाहीका कळ ऐसा वातावरण अनभव- को मैटरप्रेममे भेज दिया। आशा थी २० या २२ जुलाई तक मे आया जिसमे मुझे मजबूर होकर दो दिन बाद अन्यत्र स० कि० प्रकाशित हो जायगी परन्तु दुर्भाग्यसे प्रेमकी मशीनएक्स रे (X' Ray) कराते हुए, श्री सुखवीरकिशोरजीके के खराब हो जाने जादिके कारण १५ दिन तक मैटर अस्पतालमे जाना पडा, जहा घरका-सा आराम मिला और बिना कम्पोजके ही पड़ा रहा और इसमे यह संयुक्त प्रेमके साथ चिकित्सा की गई। देहलीसे बाहर ले जाए जाने किरण भी कुछ लेट हो गई । ऐगी हालत में पाठकोको योग्य होनेपर मेरे भतीजे डा० श्रीचन्द सगल मुझे कारद्वारा जो प्रतीक्षाजन्य कष्ट उठाना पड़ा है उसका मुझे खेद है। ता०६ मई को एटा ले गये और वहा अपने पास रखकर आशा है परिस्थितियोकी विशताकी ओर जब पाठक उन्होने बडी सावधानी एव तत्परताके माथ मेरी चिकित्सा देखेंगे तब अपने उम कष्टको भुला देंगे। की, जिसमें स्थानीय मिविल सर्जन श्री पी. सी. टण्डनजीका २ परस्कारोंकी योजना-- भी सहयोग प्राप्त रहा, उसीका यह शुभ परिणाम है जो में अपने स्वास्थ्य-लाभकी खुशी में मैने ५००) रु. की एक फिरमे अपने पाठकोकी सेवाके लिये प्रस्तुत हो रहा है । इस निजी रकम निकाली है, जिसे मै विद्वानोंको पुरकारके प्रसंग पर जिन सज्जनोने मेरी सेवाएं की है और जिन्होंने मेरे रूपमे देना चाहता है । पुरस्कागेकी एक योजना इमी पत्र प्रति संवेदना व्यक्त की है उन सबका मै हृदयसे आभारी हू। में अन्यत्र प्रकाशित है । आशा है विद्वज्जन उन्हें प्राप्त करने उक्त दुर्घटनाजन्य चोटोके कारण मुझे जिन कष्टो तथा का शीघ्र ही प्रयत्न करेंगे। इसमे विद्वानोको जहा अवकाशवेदनाओका सामना करना पड़ा है उनका यहा उल्लेख के ममयमें काम मिलेगा वहां उनकी प्रतिभाको चमकनेका करके मैं अपने पाठकोका चित्त दुखाना नहीं चाहता, सिर्फ अवसर भी प्राप्त होगा और वे ममाज तथा देश-हितके लिये इतना ही कहना चाहता हूँ कि मैने उन सब दुखोको बड़ी आवश्यक ठोम माहित्यका निर्माण कर लोकमे यशस्वी शांति और समताभावके माथ सहन किया है-अपने चित्तमे हो सकेंगे। ययाशक्ति संक्लेश-परिणामको आने नही दिया-यही मेरी वीग्सवामन्दिर-ट्रस्टके उद्देश्योमे 'योग्य विद्वानोको सबसे बड़ी विजय रही है और यही चित्तपरिणति मेरे शीघ्र उनकी साहित्यिक सेवाओ तथा इतिहामादि-विषयक आरोग्य होनेमें प्रधान सहायक बनी है; अन्यथा, ७५ वर्षकी विशिष्ट खोजोके लिये पुरस्कार या उपहार देन' का भी एक इस वृद्धावस्थामें इतनी भारी दुर्घटनाको झेल जाना आसान उद्देश्य है। इस उद्देश्यकी ओर ट्रस्ट कमेटी अपनी परिस्थिनही था। जान पड़ता है यह दुर्घटना एक सूलीके रूपमें उपस्थित तियोके अनुमार कब ध्यान देने में समर्थ होगी यह तो भविष्य
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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