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________________ सर्वोदय था निजोदय किरण १ वादके प्रचारक हैं वे धर्मतीर्थ कहे जानेके सर्वथा अयोग्य हैं। किंतु जो धर्म सब दृष्टिकोणोंकी अपेक्षासे यथार्थं वस्तुस्वरूपको पहचान कर उसीका प्रतिपादन करता है वही धर्मतीर्थ कहे जानेके योग्य हैं क्योंकि उसे सबका उदयउत्कर्ष इष्ट है। अतः सर्वोदय तीर्थ ही धर्मतीर्थ है, जैसा कि . स्वामी समन्तभद्रने कहा है:सर्वान्तव तद्गुणमुख्यकल्पं सर्वान्तशून्यं च मियोऽनपेक्षम् । सर्वापदामन्तकरं निरन्तं सर्वोदयं तीर्षमिदं तवैव ॥ बनारस, २९-११-५१ . सर्वोदय या निजोदय (प्रो० देवेन्द्रकुमार जैन, एम० ए० ) गत महायुद्धकी प्रतिक्रिया सबसे अधिक विचार कातिके रूपमें प्रकट हुई, और इस क्रांतिके मुख्य कारण दो है - एक तो यूरोपके सत्ता लोलुप राष्ट्रोंका विघटन और और दूसरे एशियाके देशोका अभ्युदय । यह सभी जानते हैं कि पिछले विश्वयुद्धके प्रधान सूत्रधार यूरोपके ही प्रमुख राष्ट्र थे, जिन्होने उपनिवेशीकरण आर्थिकशोषण और सत्ता पाने हेतु यह अग्निकुड चेताया था; पर उसमें उन्हें बहुत कुछ अपनी गांठका होमना पड़ा। इस प्रत्याशित असफलतासे यूरोपके प्रमुख विचारक और राजनीतिश अब विश्वमानवता या विश्व संस्कृतिकी बात करने लगे है, एशियाई देशोंके प्रति उनकी सक्रिय सहानुभूति भी इसी विचारक्रांतिकी सूचक है। दूसरी ओर द्वितीय विश्वयुद्धके फल स्वरूप जो देश स्वतन्त्र हुए है वे भी नवीन राष्ट्र रचना और विश्व संस्कृतिकी आशासे ओत-प्रोत है । उनकी ग्रह नीति चाहे जो हो, पर वैदेशिक नीतिमें उनके राष्ट्रनेता इसी महान आदर्शसे प्रेरित हैं। उनकी यह नीति क्षणिक लाभकी दृष्टिसे नहीं है अपितु उसमें स्थायी विश्व समाज-रचनाकी भावना निहित है। उनका यह दृढ़ विश्वास है कि निरस्त्रीकरण, सैन्य विघटन बोर संतुलित समाजव्यवस्थासे ही यह लक्ष्य सिद्ध नहीं होगा उसके लिये मानव-मनका संयम भी आवश्यक है। संभवत: इसीलिये कुछ राष्ट्रनेता या भारतीय धर्म प्रचारक समाज परिवर्तन की अपेक्षा हृदय परिवर्तनपर अधिक जोर देते हैं, उनका विश्वास है कि मनकी गांठ खुलनेपर व्यक्ति स्वयं सुसंस्कृत १९ और सर्वअभ्युदय सम्पन्न हो जायगा और इसीसे सर्वोदयकी समस्या भी सुलझ जायगी। ठीक इसके विपरीत यूरोपके प्रमुख विचारक समाज परिवर्तनको ही सर्वोदयका आधार मानते है । उन सबका लक्ष्य एक है, पर साघनोंके विषयमें मतभेद है, इस दृष्टिसे यूरोपमें अमेरिका और रूसका जो महत्व है वही एशियामें चीन और भारतका है। इसमें संदेह नही कि चीन और भारतमें रूस और अमेरिकाकी तरह उग्र मतभेद नही है, और बहुत समयसे चीन संस्कृतिके विषयमें भारतका ऋणी रहा है, तथा उसे स्वतन्त्रता भी अपेक्षाकृत देरसे मिली है, तो भी, वह बहुत सी बातों में, भारतकी तरह आवश्यकतासे अधिक सिद्धांत-वादी न होनेसे भौतिक और आर्थिक दृष्टिसे कही अधिक उन्नत हो गया हैसर्वोदयके लक्ष्यकी उसे काल्पनिक अनुभूति चाहे अभी तक न हुई हो पर उसकी भूमिका उसने प्रस्तुत कर ली है, जबकि हमारा यह महादेश अभी पुरानी रूढ़ियोंका उन्मूलन भी नही कर सका । कुछ समय पहले गांधीजीने 'सर्वोदय' का नया आन्दोलन चलाया था, इसके मूलमें प्राचीन और नवीन तथा पूर्व और पश्चिमके आदर्शोंके समन्वयकी भावना निहित थी । प्राचीन धर्मवादियोंसे गांधीजीका मतभेद इस बात में था कि सर्वोदयकी उनकी कल्पना लौकिक थी, अलौकिक नही। सर्वोदयके लिये लोक व्यवस्थामें परिवर्तन उन्हें अभीष्ट तो था -- पर अहिंसात्मक रंगसे। और यहीं पर वर्ण संघर्षवादियोंसे उनका मतभेद था। पश्चिमी राष्ट्र
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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