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किरण ४-५]
कविवर बानतराय
उनके शरीरको काटना शुरू कर दिया, जिससे विष चढ़कर 'चानत सुत था लालजी, चिठे ल्यायो तास । उनकी मृत्यु होगई । प्रातःकाल जब उनकी बैठक नही खुली, सो ले सासूको दिये, आलमगज सुवास ॥१३॥ तब पुत्रोने उसे प्रयत्न करके खुलवाया और पिताको मृत्युकी तासै पुन ते सकल ही, चिठे लिये मंगाय । गोदमे पाया; तब उनके निर्जीव शरीरका दाहसंस्कार मोतीकटले मेल है जगतराय सुख पाय ॥१४॥ किया गया। उनकी इस आकस्मिक मृत्युसे साधर्मीजन तथा 'तब मन मांहि विचार, पोथी कीनी एकठी। कुटुम्बीजन सभी शोकसागरमे डूब गए। इस घटनामें क्या जोरि पढ़ नरनारि, धर्मध्यानमें थिर रहे ।।१५' कुछ तथ्य हैं; इसका मुझे कोई प्रामाणिक उल्लेख तो अभी ___ 'सवत् सतरह से चौरासी,माघ सुदी चतुरदसी भाषी। तक प्राप्त नही हुआ, पर उनकी मृत्युके उस समय होनेमे तब यह लिखत समापत कीनी. मैनपुरीके माहि नवीनी॥' कोई सन्देह नही है । जैसा कि उक्त ग्रथके निम्न पद्यसे आगमविलासमें १५२ सर्वया है, जिनमें सैद्धान्तिक प्रकट है :
विषयोका वर्णन किया गया है। इसे शतक लिखा गया है शेष संवत विक्रम नृपतके, गुण वसु शैल सितंश ।।
५५ छोटी २ रचनाएं और है, जिनमें प्रतिमा बहतरी स० कातिक सुकल चतुरदशी, द्यानत सुर गतूश ॥
१७८१ में दिल्लीमें बनाकर समाप्तकी है। विद्युतचोरकथा
४० पद्योमे भवानीदासके लिए बनाई गई है और सनतकुमार आगमविलासके सकलित करने की भी एक रोचक कहानी चक्रवर्तीकी कथा कथाकोषके अनुसार ४७ पद्योमे दी हुई है । है। कविवरकी मृत्युके पश्चात् उनकी रचनाओका चिट्ठा, जो पचास दोहे भी सुन्दर है। इनके अतिरिक्त, ऊंकारादिक द्यानतविलाससे अतिरिक्त था इनके पुत्र लालजीने उन्हे लेकर ५२ और ६४ वर्ण, द्वादशाग, ज्ञान पच्चीसी, जिन पूजनाष्टक, आलमगंजवासी किसी झाझू न.मक व्यक्ति को दे दिया था। गणधर आरती, कालाष्टक, ४६ गुण जमाला, सघपच्चीसी, मालूम होने पर प० जगतरायनं उससे छीनकर मोतीकटले- सहजसिद्ध अष्टक, अकृत्रिम चैत्यालय जयमाला, अष्टोत्तरमें रखा । और इस बातका विचार कर कि फिर भविष्यमे सौ गुनमाला, देवशास्त्रगुरूकी आरती, आदि फुटकर ये रचनाएं नष्ट न हो जाय, इसलिए उनका एकत्र सग्रह- रचनाए दी हुई है। आगमविलासकी दो प्रतिया मेरे देखनेकर उसे सवत् १७८४ मे माघसुदी १४ को मैनपुरीमे मे आई है-एक जयपुरमे बाबा दुलीचदजीके भडारमें समाप्त किया है, जैसा कि उसके निम्न पद्योसे प्रकट है और दूसरी देहलीके शास्त्र भडारमं । इन दोनो ही प्रतियोके जिन्हे प जगतरायजीने उसमे दिया है । प जगतगयजी लेखकोंने लिपी करनेमें कुछ प्रमाद किया है, जिससे आगरामे रहते थे, वे भी अग्रवाल और अध्यात्म-शैलीके कितनी ही अशुद्धिया पाई जाती है। विद्वान् थे। और ताजगंजमें रायसे नागमे वे रहते थे:
वीरसेवा मन्दिर, सरमावा ता० ६-६-'५२