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विषय-सूची
१ ममन्तभद्रभारतीस्तोत्र-कवि नागराज १६९ ९ क्या मेवा साधनामे वाधक है । २. समन्तभद्र-वचनामृत-'यगवीर'
-श्री रिषभदास गका २०२ . ३ समन्तभद्र-प्रतिपादित कर्मयोग--जुगलकिशोर १० कविवर भगवतीदाम और उनकी रचनाएँमुख्तार १७५ .
प० परमानन्द शास्त्री २०५ ४ गाधोजीका अनासक्तिकर्मयोग
११ अश्रमण-प्रायोग्य-परिग्रह -क्षल्लक सिद्धसागर २०९ प्रो० देवेन्द्रकुमार एम ए १८३ १२ अपभ्रश भाषाका पामचारिउ और कविवर ५ गौतमस्वामिर्गचत मूत्रकी प्राचीनता--
देवचन्द-प० परमानन्द जैन शास्त्री २११ क्षुल्लक सिद्धसागर १८४ १३ ५००) रु० के पाँच पुरस्कार--जुगलकिशोर ६. भारतको अहिसा-मस्कृति--बाबू जयभगवान
मुख्तार २१३ एडवोकेट १८५ | १४ मम्पादकीय ७ कविवर द्याननराय-५० परमानद जैन शास्त्री १९३ | १५ दुनियाकी नजगंमे वीरमवान्दिग्के कुछ प्रकाशन १७ ८ क्या जैनमनानुसार अहिमाकी माधना अव्यव- । १६ सरक्षको और सहायको में प्राप्य महायता २२३
हार्य है ? -श्री दौलतगम 'मित्र' २०० | १७. माहित्य परिचय और ममालोचन--परमानन्द २२४
अनेकान्तकी सहायताके सात मार्ग (१) अनेकान्तके 'संरक्षक' तथा 'सहायक' बनना और बनाना। (२) स्वयं अनेकान्तके ग्राहक बनना तथा दूसरोंको बनाना । (३) विवाह-शादी आदि दानके अवसरोंपर अनेकान्तको अच्छी महायता भेजना
तथा भिजवाना। (४) अपनी ओरमे दूसरोको अनेकान्त भेंट-स्वरूप अथवा फ्री भिजवाना; जैसे विद्या
संस्थाओ, लायब्रेरियों, सभा-सोसाइटियों और जैन-अजैन विद्वानोंको । (५) विद्यार्थियों आदिको अनेकान्त अर्ध मूल्यमें देनेके लिये २५),५०)आदिकी महायता
भेजना । २५) की सहायतामें १०को अनेकान्त अर्धमूल्यमे भेजा जा सकेगा। (६) अनेकान्तके ग्राहकोंको अच्छे ग्रन्थ उपहारमें देना तथा दिलाना। (७) लोकहितकी साधनामें महायक अच्छे सुन्दर लेख लिखकर भेजना तथा चित्रादिसामग्रीको प्रकाशनार्थ जुटाना ।
महायतादि भेजने तथा पत्रव्यवहारका पतामोट--दस ग्राहक बनानेवाले सहायकोको
मैनेजर 'अनेकान्त' 'अनेकान्त' एक वर्ष नक भेटस्वरूप भेजा जायगा ।
| वीरसेवामंदिर, सरसावा जि. सहारनपुर ।