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अनेकान्तके सर्वोदयतीर्थीक पर लोकमत
अनेकान्तके सर्वोदयती को देखकर जिन सज्जनोंने उसपर अपने विचार प्रकट किये है उनमें से कुछ के विचार इस प्रकार है
(१) प्रो० महेन्द्रकुमारजी जैन, न्यायाचार्य, बनारम- सर्वोदयतीर्थका परिचय कगनेवाला अतीव जानने व
"अनकान्त पार्श्वनाथ जैनाश्रममे देखनेको मिला, मग्रह करने योग्य है। मुखत्यार माहबके सर्वस्व दानका देवकर बहुत प्रसन्नता हुई। जैनसमाजमे मास्कृतिक दृष्टिगे ट्रस्ट डीड तो पढने योग्य व अनुकरणीय है । ऐमा सर्वांगसुन्दर संपादित पत्रोका अभाव खटकता रहा, उमकी पूर्ति, अने- विशेषाक प्रकट करनेके लिए मुग्गत्यार माहबका परिश्रम कान्त-मे होगी। लेख मामग्री बहुत ठोस और स्थायी है।" अतीव धन्यवादका पात्र है ।" २७-३-५२
२०-३-५२ (६) सम्पादक "जैन प्रचारक" देहली-- (0) १० चैनमुखदासजी, प्रिमिपल जैन मम्कन ___ "इममे विशिष्ट विद्वानोके महत्वके १९ (१) कालेज, जयपुर--
लेग्व और कविताए है। . . मुखपृष्ठ व अन्दरके दोनों 'यह अक बडा शानदार और आकर्षक है ! इम वृद्धा- चित्र आकर्षक तथा वस्तुतत्व-बोधक है । यह अक पूग वस्थामे भी आपमें जो उमंग और उत्साह है वह युवकोमे ही पटनीय है ।' भी दुर्लभ है । इस सर्वोदयतीर्थाकके लिए आपको जितना (७) प. नाथुगमजी 'प्रेमी', बम्बईधन्यवाद दिया जाय थोडा है।
"सर्वोदय अक मिला है। कुछ पढ़ा भी है। इस उम्रमेभी (३) माहित्याचार्य पं० पन्नालालजी सागर-- आप इतना कार्य कर लेने है, यह देखकर आश्चर्य होता है,
" अनेकान्त'का सर्वोदय अक देखा। प्रथम और श्रद्धा भी होती है। केवल वर्चके ग्बयालमे आपने इमे द्वितीय चित्र बहुत भावपूर्ण दिये गये है। लेखोका चयन इतने ममय बन्द ग्वा, इमका दु ग्व है । आशा है आगे आप भी उनम है । आप लोग इम कार्यके लिए धन्यवादाह है।" । इमे चालू रखेगे ओर आपके श्रमका फल लोगोको मिलना ना २५-३-५२
रहेगा । प्रेमकी चिन्ता आप नाहक करत है। दनेवालाकी (6) ५० अजितकुमारजी, सम्पादक जैन 'गजट', कमी नहीं है ओर नहीं तो आपका ट्रस्ट ता है ही। इस अक में दहली--
गष्ट्रीयताके पोषक कई लेख है । इमे उत्तरोत्तर राष्ट्रीय " 'अनेकान्ल' का यह अक अपने अनूठे सौन्दर्यके माथ भावनाओका प्रचारक बनाइए, माम्प्रदायिकताका कम ।" प्रकाशित हुआ है। दोनो (रंगीन) चित्रोकी कल्पना प्रगसनीय (८) ५० फूलचन्दजी शास्त्री, बनारम--- है।. . कविताए और लेग्व चुने हुए सुन्दर इम अकके “'अनकान्त'का 'मर्वोदय' अक देखा, उमकी सजावट अनुरूप है। खण्डगिरि, उदयगिरि-परिचय शीर्षक और मामग्री मबका मन मोह लेती है । 'अनेकान्न' का सचित्र लेग्वमे खण्डगिरि उदयगिरिका अच्छा ऐतिहासिक जीवित रहना सर्वोपयोगी है।" परिचय दिया है । यह लेख अलग पुस्तक रूपमे प्रकाशित होना (५) प० के. भुजबली शास्त्री, मूडबिद्रीचाहिए। यह अक १६ पृष्ठका पठनीय लेखोंमे पूर्ण है। 'मर्वोदयतीर्थाक' मिला, धन्यवाद । अक बहुत सुन्दर ...प्रत्येक पुस्तकालय तथा वाचनालयम 'अनेकान्त' अवष्य निकला है। आचार्य समन्तभद्र का 'पाटलिपुत्र', मोहनजोदडोआना चाहिए ऐसी हमारी प्रेरणा है।" ता० २०-३-५२ कालीन और आधुनिक जैन-सस्कृति, और ग्वगडगिरि, उदय(५) सम्पादक 'जनमित्र' सूरत--
गिरि, परिचय आदि इमके कई लेख विशेष महत्त्वपूर्ण है। "मुख्य पृष्ठका चित्र बड़ा आकर्षक व भावमय चित्र 'अनकान्त' के पुनरुदयमे बड़ी प्रसन्नता हुई। है। . .यह सर्वोदय तीर्थीक सर्वाङ्ग सुन्दर व भ० महावीरके (१०) प० नाथूलालजी शास्त्री इन्दौर