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________________ धर्मका अध्ययन करने में जो समय व्यय होगा वह सायंक जायेंगे जिससे इनकी व्याख्या करनेका सुअवसर उन्हें प्राप्त ही होगा क्योंकि प्राप्त भग्नावशेषोंके एक-एक टुकड़े उस हो; क्योंकि अभी तक इन चित्रोंका प्रामाणिक वर्णन कोई अतीतके इतिहास और अपने पूर्वजोंकी अवस्था और उनके भी नहीं कर सका है। हां एक-दो चित्रोंकी व्याख्या हुई है। गुणोंका ज्ञान आपको मंत्रमुग्ध ही न कर देगा पर आनन्द- अनेकान्तकी किरणोंमें रानीगुफा तथा अन्य गुफाओंके दायक और प्रेरक भी होगा। सम्पूर्ण चित्र श्रीवीरशासनसंघ कलकत्ताके सौजन्यसे ___ अतः इस विषयको आकर्षक और सरस बनानेके लिए प्राप्तकर, पाठकोंके मनन तथा मनोरंजनके लिए प्रगट पाठकोंके समक्ष यहांके चित्र बहुलतामे उपस्थित किये किये जायेंगे। कलकत्ता, ता. २-५-१९५२ आकस्मिक दुर्घटना ता. १५ अप्रैल रविवारकी शामको ७॥ बजेके वे उठने-बैठने तथा थोड़ा चलने-फिरने भी लगे। ता. ७ करीब चावड़ीमें सड़क पार करते हुए पं. जुगलकिशोर मईको उनके भतीजे डा. श्रीचन्द जी 'संगल' उन्हें कार जी मुख्तारको तांगा दुर्घटनासे सख्त चोट आगई थी- में एटा ले गए है जहां पर उनकी चिकित्सा हो रही है एक्सरेसे मालूम हुआ कि उनकी तीन पसलियोंकी हड्डियां जिससे उनकी रही-सही कमजोरी और अवशिष्ट चोटका टूट गई थीं, चोट लगनेका कारण उनकी लाठी द्राम्बे की दर्द भी दूर हो जायगा और वे पूर्णतः स्वस्थ्य होकर लाइनमें आगई थी वे उसे निकाल रहे थे कि सहसा तांगा समाज-सेवामें अग्रसर हो सकेंगे। देहली जैन समाज आ गया और उससे उन्हें चोट लग गई, वे बेहोश होकर और डा० ए० सी० किशोर तथा बा. जिनेन्द्रकिशोर जी सड़कपर गिर पड़े। मालूम होते ही ला बुगलकिशोरजी ने मुख्तार साहबके प्रति जो सहानुभूति प्रदर्शित की है कागजी उन्हें इरविन अस्पताल ले गए और प्रयत्न द्वारा व अपने कर्तव्यका पालन किया है उसके लिये वे धन्यभर्ती कराकर इन्जेक्शन लगवाया और दवाई भी खानेको वादके पात्र हैं। साथ ही, ला० जुगलकिशोर जी और बा. दी गई जिससे उन्हें नीद आगई और वे ११॥ बजे बोले, पन्नालाल जी अप्रवाल धन्यवादके पात्र है, जो सदा ला. जुगलकिशोर जी कहां है। मैने कहा वे ९|| बजे उनके पास आते रहे हैं। वीरसेवामन्दिरके प्राण और चावड़ी चले गए हैं। जब चोट लगनेका समाचार देहली मुख्तार साहबके अनन्यभक्त बा. छोटेलाल जी कलकत्ता, के प्रतिष्ठित सज्जनो और उनके हितैषी मित्रोको मालूम बा० कपूरचन्द जी जैन रईश कानपुर, पं.कैलाशचन्द जी हुआ, तो वे सब मुख्तार सा० को देखने अस्पतालमें पहुंचे। गास्त्री, पं. महेन्द्रकुमार जी न्यायाचार्य, पं० फूलचन्दजी और उनके इस आकस्मिक दुःखमें सभीने सम्वेदना व्यक्त सिद्धान्त शास्त्री बनारस, तथा पूज्य श्री १०५ की, न्यायाचार्य पं. दरबारीलाल जी पं. विजय कुमारजी क्षुल्लक गणेशप्रसादजी वर्णी सागर, और श्री सेठ आदि विद्वान भी आए और सम्वेदना व्यक्त की। उनके हुकमचन्द जी साहब इन्दौर आदि अनेक धीमान, श्रीमानोंने भतीजे बा० प्रद्युम्नकुमार जी भी उनकी सेवामें रहे । अपने सम्वेदना-सूचक पत्रों द्वारा आरोग्य कामना की है डा. एस. सी. किशोरने मुख्तार सा० को अस्पतालसे उसीका फल है कि मुख्तार साहब इतनी जल्दी आरोग्य छुट्टी दिलाकर अपने आरोग्य सदनमें ले आए और उन्हे लाभ करने में समर्थ हो सके हैं। इसके लिये मै, और वीरबड़े प्रेमसे रक्खा और दवाई तथा सिकाई पलम्तर आदि- सेवामन्दिर उनका आभारी है। वीर प्रभु से प्रार्थना है कि के द्वारा उनकी चिकित्मा की, और डा. साहबके ज्येष्ठ मुख्तार साहब चिरजीवी हों और वे अपने आत्मकल्याणके भ्राता बा०जिनेन्द्रकिशोर जी जौहरी और उनकी धर्म- साथ-साथ दि० जैन संस्कृतिकी सेवा करने में अग्रसर हो। पत्नी श्रीमती जयमालादेवीने उनका पूर्ण आतिथ्य किया। माथ ही जैन समाज व उनके इष्ट मित्रोंका कर्तव्य है कि वे वीरमेवा मन्दिरको स्थायित्व प्रदान करते हुए ममतार स मुस्तार साहबका स्वास्थ्य सुघरा बार चाटका दद साहबके भारको कम करनका प्रयत्न करें। भी कम हुमा, टूटी हुई पसलियोंकी हड्डियां भी जुड़ गई और निवेदक-परमानन्द जैन
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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