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________________ ive-1] गुफायें कहां हैं सब गुफायें तथा अन्य इमारतें इस सिद्धक्षेत्र पर होनेके कारण यह सहज ही अनुमान किया जा सकता है कि वे धर्मातन रूप है। इन गुफाओंकी बहुमूल्यता, विस्तृति और सौष्ठवके सम्बन्धमें तो कुछ लिखनेकी आवश्यकता ही नही है। इनमें उदयगिरीकी बड़ी गुफाओं में तिलकी तीन रानी गुफा, मंचपुरी और जयविजय तथा छोटीहाथी गुफा तो गृहाकार हैं । खंडगिरि - उदयगिरिपर वर्तमानमें उपलब्ध इमारतोमें एक भी ऐसी नहीं है जो पत्थरोंको जोड़कर या चिनकर बनाई हुई हो। जो है वे सभी पर्वतको खोदकर बनाई गई हैं । अब प्रश्न यह होता हैं कि जो इमारतें दूर देशमे लाये गये पत्थरोसे निर्माण की गई थी और जिनका उल्लेख हाथीगुफाके अभिलेखमें किया गया है और जिनके निर्माण में प्रचुर धनराशि व्यय की गई थी- कहां गई? वहां तो उनके भग्नावशेष भी देखने में नहीं आते हैं । इस प्रश्नका उत्तर यही है कि प्राचीनकालमें किसी समय टन पर्वनपर भयंकरना से बिजली गिरी है या भूकम्प आदि कोई अन्य प्राकृतिक दुर्घटना हुई थी जिससे वहाकी इमारते धराशायी हो गई और पर्वतभी अनेक स्थलोंपर खडित हो गया था। गिलालेख के अनुसार इस पर्वतका मौलिक नाम कुमारीगिरी था, जिसका परवर्त्ती नाम १०वी शताब्दीके जैन साहित्यमें कुमारगिरि उपलब्ध होता है | खंडगिरिकी ललाटेन्दु केशरीगुफामें जो ११ वी शताब्दीका लेख है उसमें भी पर्वतका नाम कुमारगिरि है। इससे मालूम होता है कि वह प्राकृतिक दुर्घटना ११वी शताब्दीके बाद हुई है और पर्वतके पडित हो जानेके कारण, खंडगिरि नाम प्रचलित हो गया। पर्वतकी दो पोटियां है इससे यह भी संभव है कि एक चोटी विशेष खडित हो जानेके कारण उसका नाम खडगिरि पड गया । फिर यह स्वाभाविक या कि दूसरी चोटीका भी कोई नाम रखा जाय। दूसरी चोटीसे सूर्योदय भली प्रकार दिखाई देता है इससे उसका नाम उदयगिरि रख दिया गया जान पड़ता है । महाराज [कारने एक महान निर्माता वर्तमानमें खंडगिरि और उदयगिरिके ठीक मध्य में एक सड़क है जो बहुत दूर तक चली गई है। पाठक जानते हैं कि सरकार ठेकेदारोंसे सड़कें बनवानी है और सड़को निर्माण में पत्थरोकी रोड़ियां बहुत लगती है । पुरातत्त्वकी रिपोर्टोंसे जाना जाता है कि इन ठेकेदारोंने अनेक प्राचीन मन्दिर, मठ, स्तूप, प्रासाद और अन्य उजड़ी हुई या जीर्णशीर्ण और व्यक्त इमारतोंके पत्थर और ईंट आदि उपादानोका २६१ सड़कें बांध और पुल बनवानेके कार्यों में निर्ममतासे उपयोग कर, इतिहास, कला और संस्कृतिके विलोप साधन में बहुत बड़ा भाग लिया है और अन्याय किया है । अतः यही कारण है कि महाराज खारवेल द्वारा निर्मित यहांकी उन अट्टालिकाओके वे प्रस्तर जो उन्होंने बहुत दूरने मंगवाये थे आज अनुप स है। संभव है कुछ पत्थर पहाड़में राशि (मलमा) के नीचे दबे हुए हों। सन् १९५० में पुरातत्व विभागकी ओरसे उदयगिरिपर सीढ़ियां बनाई गई थी और कुछ जंगल भी साफ करवाया गया था और राविश उठाते समय प्रस्तर वेदिकाके कई खंड और एक नारी मूर्तिका धड़ (गलेके नीचेका भाग स्तनों तक ) मिला था । ये सब भग्नावशेष हाथीगुफामें रख दिये गये है (चित्र नं. ३ ) । इनकी कलामै ये ई. पू द्वितीय शताब्दीके मालूम होते है और यही समय सारवेला है। वेदिका (Railing) के एक टुकड़े के रेखा चित्र नं. ३ को देखनेने उनके कलापूर्ण प्रकरणका भान सहज ही में हो जाता है। इसके उर्ध्वपट्टके उत्फुल्ल कम और अधिष्ठान गतिशील पशु विशेष दृष्टव्य है। इन भग्नावशेपोका पत्थर भी स्थानीय नही है । यह पत्थर कहांका हो सकता है इसकी परीक्षा में भूतज्ञ विशेषज्ञोंस करवा रहा हूं। यदि पर्वतपर खुदाई की जाय तो अब भी पूर्ण आशा है कि कुछ प्राचीन भग्नावशेष उपलब्ध हो जांय । स्थापत्यको अपने पार्श्वस्थ वस्तुओंसे पृथक नही किया जा सकता है। किसी भी देश या जातिके वास्तु (Architecture ) के आदर्श निरूपण करनेमें जिन प्रधान प्रभावोंकी आशा की जा सकती है उनमें (१) प्रदेशउससे सम्बन्धित भौगोलिक, भूतत्वविषयक और जलवायु सम्बन्धी अवस्था, (२) धर्म, (३) मामाजिक और राजनैतिक प्रभाव और (४) ऐतिहासिक प्रभाव है । यों तो ये चारों ही प्रधान है तो भी धर्म नि मन्देह सर्वोपरि बलिष्ठ है । सभी देशोमें और खासकर भारतवर्ग में प्रधान अट्टालिकाये, जातिकी धार्मिक श्रद्धाका फल है । जातिके गुणांकों जितनी स्पष्टतामे धर्म व्यक्त कर मकता है उतना अन्य कोई नही । और उसके स्थापत्यपर धर्म अधिक आन्तरिक प्रभाव अन्य वस्तुका नहीं होता है। रानीगुफा तथा अन्य गुफागृहों में प्रचुरतासे तक्षण (Sculp tured खोटे हुए) किये हुए आश्चर्यकारी प्रस्तर चित्रों-को समझने के लिए पहिले जैनधर्मके कथा साहित्य के अध्ययन करनेकी आवश्यकता है । अतीतकालीन स्थापत्य और
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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