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२६.
अनेकान्त
की।
यद्यपि लेखकी १३वी पंक्ति प्रारम्भमें खंडित हो गई पश्चात् भी जीवित थे। यह उनकी महारानीके शिलालेखसे है तो भी अवशिष्टांससे ज्ञात होता है कि बारहवें (राज्य) मिद्ध होता है। वर्ष में खारवेलने भीतरसे लिखे (खुदे) हुए सुन्दर शिखर इससे मालूम होता है कि रानीगुफा उनके राज्यके बनवाये और सौ स्थपतियो (कारीगगे) को जागीरें प्रदान १४वे वर्गके बाद निर्मित हुई है, इसीमे शिलालेखमें इसका
उल्लेख प्राप्त नहीं हुआ। या उल्लेख था तो वह अंश लेग्वमें (६) अरहत-निसीदिया समीपे पभारे खडित हो गया है। . वराकार-समुथपिताहि अनेक-योजनाहिताहि
रानीगुफाका भास्कर कार्य भारतके प्राचीनतम
निदर्शनामेंमें एक है। यह गुफा यहाकी सबसे बड़ी और प सि. ओ......सिलाहि सिंहपथ-रानी केवल दो मज़िलकी ही नहीं है पर बहुत विस्तृत है और सिंधुलाय निसयानि......पटाल को चतरे अनेक उत्तम कलापूर्ण और मूल्यवान शिलाचित्रोसे विभूषित च वेडरियगभे थंभे पतिठापयति, पान-तरोय है (चित्र न. १) सत सहसे हि ।
रानीगुफा अपने सम्मुखवर्ती उपयोगी विपाणक (पाव
स्थ गृह), अनेक आगार और विशाल प्रकोष्ठकके लिए लेखकी पद्रहवी पक्ति भी कई जगह खडित हो गई
प्रसिद्ध है। प्रकोष्ठकके तीन तरफ दो खड (मजिल) युक्त है अत. सुरक्षित लेखांसका अर्थ है कि तेरहवें (राज्य) वर्षमै खारवेलने अहंतकी निषीदीके समीप, पर्वतपर, श्रेष्ठ प्रस्तर
इमारत है और चतुर्थ या दक्षिण-पूर्वकी ओर खुला स्थान है। खानासे निकाले हुए और अनेक योजनोसे ले आये गये
ऊपरकी मज़िलका मुख्य बरांडा ६२ फीट लम्बा है और
नीचेकी मंज़िलका बरांडा ४४ फीट लम्बा है। नीचेका पत्थरोसे सिहप्रस्थ वाली गनी सिधुलाके लिए नि.श्रय बनवाये । लेखकी १६वी पक्तिका पूर्वाश खडित है अतः
दाहिनी पक्षका बरांडा १९ फीट लम्बा, ६॥ फीट चौड़ा
और ७ फीट ऊंचा है और इसके भीतर २०४७४७ बादके लेखका अर्थ है कि खारवेलने वडूर्य जड़ित चार स्तम्भ
फोटका एक कमरा है। बाई तरफका बरांडा २३४९।। स्थापित किये, पचहत्तरलाख पण (रुपये) व्यय करके ।
फीट है और उसके भीतर ३ कमरे है। उत्तरपक्षका बराडा डाक्टर वेणीमाधव वरुवाने इन पंक्तियोंको अन्य रूपमे
४४ फीट लम्बा है और उसमें भी ३ कमरे है । नीचेकी मंजिलपढ़ा है। उनका अभिमत है कि खारवेलने अपने राज्यके
की गुफाओकी ऊंचाई ३४ फीट और ऊपरकी मजिलकी १४वे वर्षमे पंचहत्तर लाख रुपये व्यय करके जो इमारत
गुफाकी ऊचाई ७ फीट है। पहिली मजिलके प्रधान या मध्य बनवाई थी वह धार्मिक अट्टालिका थी और उसमें एक
के पक्ष (Wing) में चार कमरे है और वाहिनी और बाम वैडूर्यके स्तम्भोका महा था जिसकी पत्थरकी दिवाली
प्रत्येक पक्षमें एक-एक कमरा है । बराडोके भारवाहक स्तम्भ पर ६८ खाने (Pancis) थे जिनमे प्रत्येकमे मुन्दर भास्कर
सबके सब गिर गये हैं और आबहवाने यहाके सुन्दर खुदाईकार्य द्वारा विविध चित्र अंकित थे।
के कार्यको बहुत क्षति पहुंचाई है। इसलिए अब बरांडोकी (७) "सब-वेवायतन-संखारकारको।" इस अन्तिम
रक्षाके लिए नये स्तम्भ लगा दिये गये है। रानीगुफाके पंक्ति (१७वी) में खारवेलको सर्व देवायतन (मंदिरो) सामनेका खला चौक प्रायः ४९ फीट लम्बा और ४३ फीट के संस्कार (जीर्णोद्धार) कारक कहा गया है।
चौड़ा है जो पहाड़को काटकर बनाया गया है। (चित्र नं.२) (८) इन पर्वतोंपर कई प्राचीन उल्लेखयोग्य गुफायें
इन विवरणोंसे यह स्पष्ट हो जाता है कि खारवेल कितने ऐसी हैं जिनमें कोई शिलालेख नहीं है । लेखवाली गुफाओंमें
महान् निर्माता थे। उनकी इस नीतिका प्रभाव उनके परिजनों कहीं भी खारवेलका नाम नहीं है इमसे मालूम होता है कि
और राजकर्मचारियों तथा प्रजापर भी पड़ा था। खारवेलबिना लेसवाली गुफायें वारवेल द्वारा निर्मित है । अस्तु
की प्रधान रानी, उनके उत्तराधिकारी और पौत्र तथा उदयगिरिकी रानी गुफा भी महाराज खारवेलने अपनी
न्यायाधीश और कई प्रजाजनों द्वारा निर्मित लेखसहित रानीके लिए बनवाई थी। हाथी गुफा शिलालेखमें खारवेलके ३८ वर्षके जीवनकाल तकका उल्लेख है और वे इसके अनेकान्त वर्ष ११ किरण १, शिला लेख चित्र नं. ६