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________________ महाराज खारवेल एक महान निर्माता (श्री बाबू छोटेलाल जैन) (१) मौर्यसम्राट चन्द्रगुप्त और अशोक, कलिग प्राकरो (शहर पनाह), अट्टालिकाओं, उद्यानोंका जीणोंडार चक्रवर्ती महाराज खारवेल आदि शासकोने अपने जीवनको करवाया जो एक भयंकर तूफानसे क्षतिग्रस्त हो गये थे। प्रारम्भसे ही धर्माचरणमें लगाते हुए अन्तिम जीवनको जलाशयोके तथा प्रसिद्ध ऋषितालके बांध बंधवाये और तपश्चरण करते हुए व्यतीत किया था। अपनी सम्पत्तिको इन कार्यों में पैतीस लाख मुद्रा व्ययकर प्रजाका रंजन किया। भी वे प्रजाहित और धार्मिक कार्योंमें लगाते थे। यही कारण (२) ।। तथा चवथे वसे विजाधराहै कि कलाके प्राचीन उच्चतम निदर्शन धर्मायतनामें उपलब्ध धिवासं अहत-पूर्व कलिगपूवराज (निवेसितं) (२) प्राचीनकालम कला धर्मकी सहचरी रही है। . चतुथ (गज्य ) वर्षमें विद्याधराषिवासको जिसे उस समयके शिल्पियोंने यह अनुभव किया था कि उनकी न लिगके पूर्व राजाओंने बनवाया था। और जो पहिले कलाका आदर केवल तभी होगा जब वह मानवकी धार्मिक कभी क्षतिग्रस्त नहीं हुआ था (शिलालेखके अक्षर नष्ट या नैतिक रक्षामें सहायक हों। इसी कारण वे अपने प्रयासमें हा गय ह इसस यह नहा ज्ञात होता है कि खारवेलने उसका सफल हुए थे। क्या सुधार किया) सम्भवतः उसको उन्नत बनाया गया। महाराज खारवेल एक महान सम्राट और कलिगके (३) पंचमे च दानी वसे नन्दराज-तिशासक रूपसे तो अति प्रसिद्ध है, किन्तु उनकी अन्य सुकृतियोंमे वस-सत-ओघाटितं तन-सुलिय-वाटा पणाडि बहुत लोग अपरिचित है । उन्होंने प्रजाहितके अनेक कार्य नगरं पवेस [य] ति। किये थे। तथा प्रजाजनोंको सवा सुखी और सन्तुष्ट रखते पांचवे (राज्य) वर्षमें खारवेल नंदराजके १०३ वर्ष थे। पुरानी इमारतोंका जीर्णोद्धार करवाकर उनकी रक्षा (संवत्*) में खोदी गई एक नहरको तनसुलियबाट करना और नई तथा कलापूर्ण इमारतोंका निर्माण करना, (सड़क) से बढ़ा कर राजधानीमें लाये। . और शिल्पियोंको पुरस्कारादिसे प्रोत्साहन देना- यह उनकी (४) राज--संनिवासं महाविजयं एक विशेषता थी। यह बात उनके शिलालेख और उपलब्ध पासादं कारयति अठतिसाय सतसहसेहि पुरातत्त्वसे स्पष्ट होजाती है। नवमें (राज्य) वर्षमें खारवेलने महाविजय नामक एक अब हम पाठकोंके समक्ष शिलालेखके वे अंश उद्धृत नया राजप्रासाद बनवाया जिसमें अड़तीस लाख पण करते है जिनमें उनके निर्माण कार्योंका उल्लेख हुआ है: (रुपये) खर्च हुए। मौर्य सम्राट् चन्द्रगुप्तका सुगगि प्रासाद (१) अभिसितमतो च पधमे वसे । ई०पू० चतुर्थ शताब्दीमें अपनी भव्यता, विशालता, सौन्दर्य वात-विहत-गोपुर-पाकार-निवेसनं पटि- और समृद्धिके कारण लोकप्रसिद्ध था । अतः सम्राट् खारवेल संखारयति [ 1 ] कलिंगनगरि-[f] खबीर- भी चन्द्रगुप्तसे किसीभी प्रकार कम नहीं थे फिर वे क्यों न इसि-ताल-तड़ाग-पाडियो च बंधापयति [1] "महाविजय" प्रासाद बनवाते । सवुयाम-पटिसंठपनंच कारयति [॥ ] पनती . (५)......क.तु[ . जठर लिखिलसाहि सत सहसेहि पकतियो च रंजयति [1] . बरानि सिहरानि-नीवेसयति सत-वेसिकनं महाराज्य पदमें अभिषिक्त होते ही प्रथम महान कार्य . सारखेलमे यह किया कि राजधानीके उम गोपुर (पारों) * अर्थात् ६० पू. ३५५ वर्ष
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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