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________________ किरण अनेकान्तवाद, सापेक्षवाद और ऊर्जाणुगामिकी २५१ Cकिये बिना ही केवल ऊर्जाणुगामिकी (Quantum vity and Quantum Mechanics) और Mechanics) का प्रयोग किया जाता है, लेकिन किन्हीं अनेकान्तवादके तुलनात्मक अध्ययनसे यह भी संभावना है कि अणुविज्ञान सम्बन्धी समस्याओंको सुलझाने-समझनेके विज्ञानके क्षेत्रमें सापेक्षवाद (Relativity) और ऊर्जाणुलिए सापेक्षवादी ऊर्जागुगामिकी (Relativistic गामिकी (Quantum Mechanics) को जो अलग Quantum Mechanics) का प्रयोग किया जाता अलग मूलसिद्धांतों एवं उपधारणाओं (Fundamental है। इस तथ्यके प्रकाशमें यदि अनेकान्तवादके सात principles and postulates) के आधारपर प्रस्तुत भंगोंका गहन अनुशीलन एवं मनन किया जाय तो सम्भव हुई हैं, उन्हें एक ही सिद्धांतकी समान भूमिकापर स्थापित है कि हम साधारण ऊर्जा गुगामिकी (Quantum किया जासके जिस प्रकार कि स्याद्वादके सातों भंग एक ही Mechanics) को स्यात् अवक्तव्यका पर्यायवाची सिद्धांतकी पृष्ठभूमिका पर अंकित हैं। सिद्ध कर सकें और साथ ही जिस प्रकार पिछले पृष्ठोंमे सापेक्षवाद एवं ऊर्जाणुगामिकी (Quantum स्यात् अस्ति, स्यात् नास्ति एवं स्यात् अस्ति नास्तिका Mechanics) की उत्पत्ति (पुद्गल Matter and सापेक्षवादी दृष्टिकोण (Relativistic point of energy) के सूक्ष्म अध्ययनसे हुई है और अनेकान्तवाद view) से दिग्दर्शन करानेका प्रयास किया गया है. उसी आध्यात्मिक दृष्टिकोणसे उत्पन्न ज्ञानपिपासाका प्रतिफल है; प्रकार स्यात् अस्ति अवक्तव्य, स्यात् नास्ति अवक्तव्य और लेकिन, मूलतः दोनोका दार्शनिक आधार एक ही प्रतीत स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्यको सापेक्षवादी ऊर्जाणु- होता है । स्याद्वाद आध्यात्मिक पृष्ठभूमिकामें वस्तुका विश्लेगामिकी (Relativistic Quantum Mecha- षण करता है और मापेक्षवाद वैज्ञानिक दृष्टिकोगोंसे केवल nics) की दृष्टिसे दिग्दर्शित किया जा सके। पुद्गल (Matter and energy) के विषयमें वस्तु-सत्य___ अनेकान्तके स्यात् अस्ति अवक्तव्य आदि भंगोंको की सापेक्षता प्रदर्शित करता है । स्याद्वादका क्षेत्र प्रमुख सापेक्षवादी ऊर्जाणुगामिकी(Relativistic Quantum रूपसे आध्यात्म दर्शन है वह केवल उदाहरण देनेके लिए Mechanics) की भाषामें व्यक्त कर सकनेको संभावनाकी व्यवहारका आश्रय लेता है किन्तु सापेक्षवाद व्यवहारके ओर इस दृष्टिसे भी संकेत मिलता है कि सापेक्षवादी ऊर्जाणु- उदाहरणोंसे चलकर आगे वैज्ञानिकसत्य(Relative truth) गामिकोमें किन्हीं प्रयोग सिद्व घटनाओं (Experimental के घरातलपर दार्शनिकतासे वस्तु सत्य (absolute Phenomena) को समझाने (interpret) के लिए truth) की ओर बढ़नेका प्रयास करता है । स्यावाद इस यह उपधारणा (postulate) मानकर चलते है कि संपूर्ण प्रकार उच्च दार्शनिक पृष्ठभूमिकासे व्यवहारके धरातलको वरिमा (आकाश space) मे ऋणऊर्जायुक्त विद्युदगु देखता है और साक्षवाद व्यवहारकी नीवपर वैज्ञानिक सापेक्ष (negative energyelectrons) पूरी तरह भरे हुए सत्यकी आधारशिलासे वस्तु-सत्यके दर्शनकी ओर उन्मुख है और जैन धर्म भी मानता है कि लोक (space) का एक-एक है। इस प्रकार हम देखते है कि दोनों दो विभिन दष्टिप्रदेश (iota) पुद्गल परमाणुओसे भरा है। यद्यपि, लोक विन्दुओंसे चलकर एक ही दार्शनिक भूमिकापर मिलते है। किस प्रकारके पुद्गल परमागुओंसे भरा है ऐसा कोई नोट:-पारिभाषिक शब्दोंके लिए डा. रघुवीरके संकेत नही किया गया है जैसा कि सापेक्ष ऊर्जाणुगामिकी आङ्गल भारतीय कोषका उपयोग किया है । जैनधर्मके (Relativistic Quantum Mechanics) में मानते पुद्गल शब्दमें प्रकृति (Matter) और ऊर्जा (Energy) है कि वरिमा (आकाश space)में ऋण ऊर्जायुक्त विद्युदणु दोनों ही गभित मानकर चला गया है क्योंकि आधुनिक (Negative energyelectrons) भरे हुए है। विज्ञान (Matter) और (Energy) को एक ही द्रव्यकी इस प्रकारके सापेक्षवाद व ऊर्जागुगामिकी (Relati- दो पर्यायें मानता है । -
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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