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________________ २५० - जनेशान्त जासकता है कि अमुक दृष्टकोणको ध्यानमें रखने हुए यह संभाव्य (probable) निष्कर्ष है और निश्चय सत्य (absolute truth) जाननेके लिए हमें इस प्रकारके विभिन्न दृष्टिकोणोंके संभाव्य निष्कर्षोका समन्वय करना होगा । वैज्ञानिकोंको अणुविज्ञान सम्बन्धी सिद्धान्तोंमें ऊर्जागामिकी ( एक विशेष प्रकारका सूक्ष्म गणित जिसे Quantum Mechanics कहते है) के प्रयोगकी अनिवार्यताका निम्न खोजीके कारण अनुभव हुआ । जैमा कि पहिले संकेत किया गया है कि प्रकाश सम्बन्धी कुछ प्रयोगोंको समझने के लिए तरंगवाद ( Wave Theory of light) का आश्रय लेना पड़ता है और किन्ही प्रयोगों की दृष्टि से प्रकाशके विषय में अणुवाद (Corpuscular Theory of Light) सिद्ध होता है; * उसी प्रकार प्रकृति (Matter) या पुदगलके सम्बन्ध में एक विशेष प्रकारके प्रयोग (Experiments) विद्युत - व्याभंगप्रयोगों (Electron Diffraction Experiments) के द्वारा यह सिद्ध होता है कि किन्ही परिस्थितियों में सूक्ष्म पुद्गल कण तरंगों जैसी क्रिया करते हैं। इन प्रयोगों को समझाने के लिए आवश्यक है कि हम पुदगल कणोंसे मंचलित ( associated) किन्ही तरंगों (Waves) को मानकर चले और तभी उन प्रयोगोंके परिणाम ( Experimental Results) को समझाने ( interprot) में हम सफल हो सकते है । यद्यपि, वस्तुतः पुद्गल कणोंके साथ कोई तरंगें संवलित नही है और केवल प्रयोगोंमे मही निष्कर्ष निकालनेकी क्रियामें ही हम यह मानकर चलते हैं कि उनके साथ कोई तरंगें संवलित है । इम प्रकारकी विचार प्रणाली और सूक्ष्म गणित जिमे ऊर्जाणुगामिकी या तरंग गामिकी (Quantum Mechanics) या (Wave Mechanics) कहते है, अनेकान्तबादके अवक्तव्य, अस्ति अवक्तव्य इत्यादि सूक्ष्म और गूढ़ भंगोंकी कोटिमे आ सकते है । और भी, यदि हम ऊर्जाणुगामिकी (Quantum Mechanics) के मूल आधारोंमेंसे एक अनिर्धारिण * प्रकाश तरंगवादके अनुसार यह मानते है कि प्रकाश तरंगोंके रूपमें चलता है और अणुवादके अनुसार प्रकाश ऊर्जाओं (प्रकाशके अणुओं) की धारा है ऐसा मानते हैं । [ वर्ष ११ सिद्धान्त ( Indeterminacy Principle या Uncertainty Principle) की और दृष्टिपात करें तो हमें आधुनिक विज्ञानके क्षेत्रमें अवक्तव्यका सुन्दर भाष्य मिल जाता है। मान लीजिए कि हम एक ऐसा अपूर्व और आदर्श (Ideal) प्रयोग (Experiment) करते हैं जिसमें कि हम एक अणु (atom) की ऊर्जा ( energy) और समय (time) को निश्चयतः ठीक-ठीक ( most precisely) मापनेका प्रयास करते है । अब अणु बहुत छोटा होता है और हमारे मापनेके यन्त्र व साधन उमपर प्रभाव डालते है जिसमे कि उसकी ऊर्जा ( energy) न्यूनाधिक हो जाती है और इसका यह फल होता है कि हम जिस राशि (Quantity) को माप रहे थे, हमारे प्रयोगके फलस्वरूप वही न्यूनाधिक हो जाती है और हमारी ऊर्जा ( energy) और समय (time) को निश्चयतः ठीक (precisely ) मापनेका प्रयोग अंशतः असफल हो जाता है । इस असफलताका कारण हमारे यन्त्रों एवं साधनोंकी अपरिपक्वता नही अपितु जिस पर हम प्रयोग (Experiment) कर रहे थे उस संहति (system) की सूक्ष्मता है । वह इतना सूक्ष्म है-उम संहति में कोई ऐसी आन्तरिक विशेषता ( something inherent ) है कि हम उसके विषय में निश्चिन, पूर्ण एव सही (Precise) ज्ञान प्राप्त नही कर सकते। यही हाइसेनबर्ग महोदय का अनिर्धारण सिद्धान्त (Heisenberg's Uncertainty Principle है जो कहता हैं कि वस्तुके विषयमें हम केवल अपूर्ण, एकांगी और उपसादित (approximate) ज्ञान प्राप्त कर सकते हे बिल्कुल ठीक ज्ञान (Precise Knowledge) प्राप्त नही कर सकते । उदाहरणार्थ यदि हम यह जानना चाहे कि एक सुनिश्चित समयमें एक अणुकी ऊर्जा ( energy) कितनी होगी तो केवल हम संभाव्य व उपसादित (approximate) रूपसे ही ऊर्जाकी मात्रा जान सकते है, निश्चित नही कह सकते। यही अनेकान्तवादका स्यात अवक्तव्य नामक भंग है जो कहता है कि वस्तु स्वरूपकी गहनता एवं सूक्ष्मताके कारण उसके विषयमें निश्चय सत्यका कथन सम्भव नही । एक अन्य दृष्टिकोणसे भी अनेकान्तवाद, सापेक्षवाद एवं ऊर्जाशुगामिकी (Quantum Mechanics) की तुलना सम्भव है । सामान्यतः सापेक्षवादका प्रयोग
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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