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________________ अनेकान्त गतिशील है। इन्ही बातोंका वैज्ञानिक दृष्टिकोणसे सूक्ष्म हैं। उदाहरणार्थ यदि किसी संघनक (एक यन्त्र Conअध्ययन कर आइन्सटाइनने अपना सापेक्षवाद सिद्धात denser) पर कोई विद्युत्भार (बिजली Electri(Theory of Relativity)प्रस्तुत किया है। वैज्ञानिक cal charge) हो तो वह संघनक (condenser) लोम पहिले प्रकाश-ऊर्जा (Lightenergy) को अणुरूप एवं विद्युत्प्रभार पृथ्वीकी अपेक्षासे तो स्थिर हैं लेकिन मानते थे किन्तु बादमें कुछ प्रयोगोंके फलस्वरूप दे इस दरिमा (आकाश Space) की अपेक्षा गतिशील है क्योंकि निष्कर्षपर पहुंचे कि प्रकाश तरंग-रूप (Wave-form) पृथ्वीकी गतिके कारण पृथ्वीपर स्थित सभी वस्तुएं परिमा है। बाधुनिकतम प्रयोगोंकी दृष्टिसे अब यह माना जाता (आकाश Space) की अपेक्षा गतिशील है। विज्ञानका है कि किन्हीं प्रयोगों और घटनाओं (Phenomena) सिद्धांत है कि यदि कोई विद्युत्प्रभार स्थिर होता है तो की दृष्टिसे प्रकाश तरंग रूप है और किन्ही घटनाओं व उमके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic field) प्रयोगोंकी दृष्टिसे अणुओंको धाराके रूप है । सापेक्ष- उत्पन्न नहीं होता लेकिन यदि वह विद्युत्भार गतिशील वादियोंका विचार है कि यदि दो संहतियाँ 'अ' और 'ब' होता है तो उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो (Two systems A and B) एक-दूसरेकी अपेक्षा जाता है। उपर्युक्त विद्युत्प्रभारयुक्त संघनक (electriगतिशील हों तो हम यह नहीं जान सकते कि कौन संहति cally charged condenser) पृथ्वीकी दृष्टिसे स्थिर (System) स्थिर है और कौन गतिशील । इसीलिए है इसलिए इस अपेक्षासे वह चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न नहीं सापेक्षवादके सिद्धांतके आविष्कारके पश्चात् वैज्ञानिक कर रहा लेकिन वही संघनक वरिमा (Space) की लोग पृथ्वी और सूर्यकी गतिसम्बन्धी सिद्धांतको भी दृष्टिमे गतिशील है और इस अपेक्षासे वह अपने चारों ओर सापेक्ष मानने लगे है । आइन्स्टाइनने एक स्थलपर इस चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न कर रहा है। इस प्रकार एक ही समय आशयके विचार प्रकट किये हैं कि सूर्यके चारों ओर में एकही संघनक (condenser) चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न पृथ्वीको गति अथवा पृथ्वीके चारों ओर सूर्य की गति यह भी कर रहा है और चुम्बकीय क्षेत्र नही भी उत्पन्न कर रहा दोनों सापेक्ष सत्य है । केवल गणितकी सरलताके दृष्टिकोण- है। इसीको अनेकातवादकी भाषामें कहा जा सकता है से हम पृथ्वीको सूर्यके चारों ओर घूमता हुआ मानते है। कि स्वद्राव्यक्षेत्रकालभावकी अपेक्षा वस्तुके विषयमें आधुनिक विज्ञानके क्षेत्र में सापेक्ष सत्यका एक बहुत 'स्यात् अस्ति' लक्षित होता है और परद्रव्यक्षेत्रकालसुन्दर उदाहरण जो अनेकांतवादके स्यातृ अस्ति और भावकी अपेक्षा वस्तुके विषयमें 'स्यात् नास्ति' लक्षित स्यात्नास्तिको स्पष्ट करता है श्री प्रो. जी. आर. जैनने होता है। अपनी पुस्तक CosmologyOld and New में दिया विज्ञानके क्षेत्रम सापेक्षवाद सिद्धात (Theory of है। कल्पना कीजिए कि दो संहतिया 'अ' और 'ब' Relativity) का आविर्भाव इसी प्रकारकी विचित्र (Two systems A and B) है। जिस प्रकार पूर्व- प्रतीत होनेवाली घटनाओं (Phenomena) से हुआ। लिलित रेलगाड़ीके उदाहरणमें एक संहति (System) मानलीजिए कि एक लम्बी रेलगाड़ी है जिसके एक दूसरे रेलगाड़ी (और उसके यात्री इत्यादि) है जो दूसरी संहति इम्बोंके बीच ऐसे दरवाजे हं कि वलती गाड़ीमें भी हम (System) भूमिवृक्ष आदिकी अपेक्षा गतिशील है। दोनों एक दूसरे डब्बेमे जाकने है। यदि रेलगाड़ी ३० मील संहतियों (Systems) में आपेक्षिक गति (Relative प्रति घंटाकी गतिसे जा रही है और रेलगाड़ीके सबसे Motion) है । यह हम ठीक प्रकारसे निश्चय नही पिछले डब्बेसे एक मनुष्य अगले डब्बेकी ओर २ मील प्रति कर सकते कि कौनसो संहति (System) स्थिर है घंटाकी गतिसे चल रहा है तो उस मनुष्यकी गति रेलकी और कौन गतिशील । इतना नहीं जानते हुए भी हम पटरीपर किनारेके वृक्षों इत्यादिकी अपेक्षा ३०+२= देखते है कि दोनों संहतियों (Systems) की आपेक्षिक ३२ मील प्रति घंटा होगी क्योंकि ३० मील प्रति घंटासे गति (Relative Motion) के कारण एक संहति- रेल आगे बढ़ रही है और २ मील प्रति घंटासे रेलमें की प्टिसे निर्धारित किये हुए हमारे निर्णय व उपधारणाएं चलनेवाला वह मनुष्य आगे बढ़ रहा है और इस प्रकार (Postulates) दूसरी संहतिको दृष्टिसे गलत सिद्ध होती दोनोंकी गति जोड़नेपर हमे किनारेके वृक्षोंकी अपेक्षा
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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