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________________ अनेकान्तवाद, सापेक्षवाद और ऊर्जाणुगामिकी २४५ है कि बस्तुके निश्चय (absolute) रूपका कथन नही (definition) से बिल्कुल मिलती है। किया जा सकता । निश्चयका अर्ष नकारात्मक कहा जा सात नयोंकी विस्तृत और सामान्यसे संकुचित और सकता है--अर्थात्, वस्तुके स्वरूपकी पूर्णता तक नहीं पहुंचा विशिष्टकी ओर उन्मुख होनेकी प्रणाली इस प्रकार है:जा सकता, यही निश्त्रय-नयका तात्पर्य है। सापेक्ष रूपसे- नैगम नय पूर्ववर्ती एवं उत्तरवर्ती पर्यायोका सामान्य दिग्दर्शन व्यावहारिक दृष्टियोंसे हम वस्तुके विषयमं आशिक ज्ञान है--मग्रहनय केवल वर्तमानकालीन पर्यायोंका दिग्दर्शन प्राप्त कर सकते है। यही नकारात्मक आधुनिक दार्शनिकोने है। मंग्रह सम्पूर्ण वर्तमानवी पर्यायोंको विषय करता है मी स्वीकार की है । 'यही कूटस्थ सत्य है ऐसा कोई भी और व्यवहार उसके एक-गक अंगका पृथक्-पृथक् विश्लेषण आधुनिक दार्शनिक नही कहता। अतः हमारा जान सत्य करता है । जुमूत्र केवल वर्तमानवी किसी एक मुख्य कहा जा सकता है-यह व्यवहारनय है । व्यवहारनय सात अवस्थाको ही विषय करता है। शब्दनय समयके अनुसार है-गम, संग्रह, व्यवहार, शब्द, समभिरूड और एवभूत। बस्तुके निर्देशको विषय करता है। समभिरुदनय एकार्थवाची इन सात नयांमे उत्तरवर्ती नयका विषय-क्षेत्र पूर्ववर्ती नामोका विश्लेषण करता है। एवंभूतनयका विषयनयकी अपेक्षा मूक्ष्मतर है-कम विस्तृत है । दूसरा नय क्षेत्र और भी संकुचित है; वह वस्तुका वर्तमानवर्ती क्रियाप्रथम नयकी अपेक्षा सामान्यसे विशिष्टकी और एक सीढ़ी की दृष्टिसे केवल एकागी निरूपण करता है। इस नय आगे है-उतरोत्तर इन नयोका क्षेत्र अधिकाधिक सूक्ष्म प्रणालीसे स्पष्ट है कि वस्तुके सर्वांगीण अध्ययनके लिए है। वर्तमान तर्कशास्त्र (Modern logic)को विश्लेषण- विभिन्न दृष्टिकोणोंका आश्रय लेना अनिवार्य है। प्रणाली भी इस नय-प्रणालीसे मिलती-जुलती है । प्रो० व्यावहारिक जीवन में भी स्यावादको षटित किया जा हरिसत्य भट्टाचार्यने अपनी पुस्तक A Comparative माना है। यदि 'अ' 'ब' 'स' तीन वस्तुएँ एक पंक्तिम Study of the Indian Science of Thought रखी हो, तो यदि ‘स की दृष्टिमे 'ब' दाई ओर है तो from Jain Stand-point. 'अ' की दृष्टि से बाई ओर। यदि हम एक ही दृष्टिसे 'ब' "The study of the nature of thc की स्थिति करना चाहे तो यह ठीक नहीं क्योंकि 'अ' और Nayas gives the principle of modern स' दोनाको अपेक्षासे उसकी स्थिति एक-सी नही है । इस European logic that the intension ofa प्रकार सभी कथन मापेक्ष होने है--विभिन्न दृष्टिकोणोसे term increasing, its extension decreases सत्य होते है। एक ही व्यक्ति विभिन्न सबंधियोंकी दृष्टिसे and vice tersa. The Naigama Naya gives भिन्न-भिन्न है । भानजेकी अपेक्षा मामा, मामाकी अपेक्षा what is called Definition in European भानजा, पत्लीकी अपेक्षा पति और पुत्रकी अपेक्षा पिता logic,it supplies the genetic definition of है, इसलिए किमी मनुष्यको सकेत करनेके लिए हम कहते consciousness and is exactly the definition है कि उसका पुत्र है, उसका पिता है, उस गाँवका निवासी per genus at deferention". है, इत्यादि इत्यादि । यह एक साधारण-सी बात है कि एक साराश यह कि नयोका अध्ययन अर्वाचीन यूरोपीय ही वस्तु औषधि भी होती है और विप भी । इस प्रकार तर्कशास्त्रके सिद्धातका निरूपण करता है । परागीय सर्क- उसमें दो विपरीत गुण सापेक्ष रुपसे सिद्ध होते हैं। एक शास्त्रका सिद्धांत है कि जैसे-जैसे वस्तुका विश्लेषण किया गेगीकी अपेक्षा और मेवनविधिकी अपेक्षा वह औषधि है जाता है उसका स्वरूप संकुचित होता जाता है-वह और दूमरी अपेक्षाओसे विष । सामान्य (general) से विशिष्ट (particular) विज्ञानके क्षेत्रमे भी हमें इस प्रकारके उदाहरण मिलतं होती जाती है। हमारा विषयक्षेत्र विस्तृत और सामान्यसे है। यदि हम रेलगाड़ीमें चले जा रहे है तो किनारेके वृक्ष संकुचित और विशिष्ट होता जाता है। यही जनधर्मकी नय हम विपरीत दिशामें चलते दिखाई देते है यद्यपि भूमिकी सम्बन्धी विश्लेषण प्रणाली है। जैनधर्ममे कथित नंगमनय दृष्टिस वे स्थिर है । यदि दो रेलगाड़िया एक ही प्रवेगमे जो वस्तु के सामान्य संकम्प मात्रको विषय करता है उसकी समानान्तर दिशामें जा रही हो तो उनके यात्री एक-दूसरे यह परिभाषा वर्तमान तर्कशास्त्र ( logic) की को स्पिर दिखाई दंगे यद्यपि दोनोंके यात्री भूमिकी अपेक्षा
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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