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________________ २४४ भनेकान्त [ १ - - -- है, और दूसरी दृष्टियोंमे वस्तु इम रूप नही---उमका म्वरूग उमुख हआ जा मकता है। किमी वस्तु के विषयमें पदि दूसरा है। इस शैलीसे अनेकान्तमें सात प्रकारके वाक्य स्थिर यह कहा जाय कि यह कटस्थ नित्य है--प्रत्येक दृष्टिकोणकी होते है जिन्हें सात भंग (seven aspects) कहा जाता अपेक्षा अक्षय है तो यह कथन ठीक नहीं। क्योंकि द्रव्य की दृष्टिमे--अपन विशिष्ट गुणोंकी दृष्टिमे--वस्तु नित्य (१) स्यात् अस्ति--स्व (अपने) द्रव्यक्षेत्रकालभाव- है और परिवर्तनशील पर्यायों (various forms) की की अपेक्षा वस्तुका एक स्वरूप है। दृष्टिम वस्तु अनित्य है-परिवर्तनशील है। विज्ञानके क्षेत्र(२) स्यात् नास्ति-पर (दूसरे) द्रव्यक्षेत्रकालभाव- में भी प्रकृति (Matter) (जिमे जैनधर्ममें पुद्गल कहा की अपेक्षा वही स्वरूप नही है जो स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावकी जाता है) कई पर्यायों-कई पी forms) में परिवर्तित अपेक्षा लक्षित होता है। जैसे यदि एक स्थल उदाहरण ले हो सकती है । पुद्गलका एक कण प्रकृति (Matter) तो पेंसिल अपने आकार-प्रकार आदिकी अपेक्षा गमिल है. से ऊर्जा : Energy) के रुपमं भी बदल मकना है लेकिन लेकिन फाउन्टेनपेनकी अपेक्षा नहीं है। उसका अस्तित्व मदैव रहता है, वह निश्चय दृष्टिसे (३) स्यात् अस्ति नास्ति-किसी एक तीसरे दृष्टि- (absolutely) विनष्ट नहीं हो सकता। विज्ञानकी कोणकी अपेक्षा वस्तु है भी और नहीं भी है। यह उपरोक्त दृष्टिमें इस मात्राकी स्थिरताके सिद्धांत (Law of दोनों भंगोंका समन्वय है। जैसे उपरोक्त उदाहरणमे Conservation of Mass and Energy) की लिखनेकी उपेक्षा पेंसिल लेखिनी है और फाउन्टेनपेन भी अपेक्षामे वस्तु निन्य है-अक्षय (Indestructible) लेखनी है किन्तू दोनों एक तो नहीं है। है, किन्तु अन्य दृष्टियोसे---उसमें क्रिया, प्रतिक्रिया और (४) स्यात् अवक्तव्य-वस्तुके विषयमें सम्पूर्ण रूपसे परिवर्तन होनेकी दष्टिमे--वस्तु अनित्य है, परिवर्तननिश्चित नहीं कहा जासकता-उसका निश्चय (absolute) शील है। स्वरूप लक्षित नहीं किया जा सकता। विश्वदृष्टाके संपूर्ण मापेक्षवाद और अनेकान्तवादकी तुलना करनेके पूर्व जानकी सीमामें ही वस्तुका पूर्ण स्वरूप लक्षित होता है। नयवादपर भी एक दृष्टि डाल लेना वाछनीय है, क्योंकि इस दृष्टिसे वस्तु अवक्तव्य-अकथनीय है। म्यावाद ओर नय प्रणालीम कोई मैद्धान्तिक भंद नही(५) स्यात् अस्ति अवक्तव्य-किसी दृष्टिम वस्तु यह प्रणालियों एक-दूमरेकी पूरक है । म्यावाद जिम विषय'अस्ति' रूप है लेकिन अबक्तव्य भी है। का एक विस्तृत मामान्य दृष्टिकोण (general view) (६) स्यात् नास्ति अवक्तव्य-किमी दृष्टिमे वस्तु समक्ष रखता है, नयवाद उमका एक विशिष्ट विश्लेषणात्मक 'मास्ति' रूप है और अवक्तव्य भी है। म्वम्प उपस्थित करना है। इस प्रकार नयवाद म्याद्वादका (७) स्यात् अस्ति नास्ति अवक्तव्य-किसी दृष्टिमे ही विशिष्ट रूप है। ग्याद्वादके दाग हम बातुके मौलिक बस्तु 'अस्ति' गप भी है 'नास्ति' रूप भी है और अवक्तव्य गुणोके आधाग्मे विचार करते हैं जैसे कि द्रव्य (any rcal cntity of universe) का लक्षण सत् है-- इस तर्क शैलीमे हम देखते है कि एक ही वस्तुम भिन्न- 'अस्तित्वमय' होना ही द्रव्यकी परिभाषा है । जिमम भिन्न गुण विभिन्न दृष्दिकोणोंसे लक्षित होते है। विश्व, उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होते रहते है वही सत है-- प्रकृति, आत्मा इत्यादिके विषयमें इस शैलीमे ही पूर्ण अस्तिन्वमय है। इस प्रकार उत्पाद और व्यय (change विचार किया जा सकता है। in forms) अथवा परिवर्तनशीलनाकी दृष्टिमे वस्तु जिस प्रकार सापेक्षवादके सिद्धात (Theory of अनित्य है और ध्रौव्य (Indestructibility) की अपेक्षा Relativity) के आगमनपर कई बड़े-बड़े वैज्ञानिकोंने वस्तु नित्य है। यह स्याद्वादकी शैलीसे वस्तुका सामान्य भी सापेक्षवादको आइन्स्टाइनके मस्तिष्ककी भूल कहा था, निरूपण हुआ। इसी प्रकारकी भ्रामक बातोंका आविर्भाव स्यावादको न नयवाद वस्तुके एक-एक अंगको ग्रहणकर उसका समझनेके कारण हुना है किन्तु यह प्रवाद उचित नहीं है निरूपण करता है । सामान्यतः नयके दो भेद हैं। एक बोर न इससे वस्तुके वास्तविक स्वरूपके ज्ञानकी ओर ही निश्चन-नय और दूसरा व्यवहार-नय। निश्चय नयका अर्थ
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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