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________________ २३८ अनेकान्त [ वर्ष ११ व्याख्या कुदेवादिकोंको प्रणामादिक करनेसे अपने विनयादिकका निषेष किया गया है जो कुछ धर्मका झंडा निर्मल सम्यग्दर्शनमें मलिनता पाती है और दूसरों के सम्मर- उठाए हुए है उनके उपासक जनसाधारणका-जैसे मातादर्शनमें मीठेस पहुंचती है तथा जो धर्मसे चलायमान हों उनका पिता,राजादिकका-जोकि न देव हैं और न लिंगी, यहां स्थितिकरण भी नही हो पाता। ऐसा करनेवालोंका अमूढ- ग्रहण नहीं है । और इसलिए लौकिक व लोक व्यवहारकी दृष्टि तथा निर्मल होना उनकी ऐसी प्रवृत्तिको समुचित दृष्टिसे उनको प्रणाम-विनयादिक करने में दर्शनको म्लानतासिब करनेके लिये कोई गारण्टी (प्रमाणपत्र ) नही हो का कोई सम्बन्ध नहीं है । इसी प्रकार भयादिककी दृष्टिन सकता। इन्हीं सब बातोंको लक्ष्यमें रखकर तथा सम्या- रखकर लोकानुवतिविनय अथवा शिष्टाचारपालनके अनुदर्शनमें लगे हुए चल-मल और अगाढ़ दोषोंको दूर करनेकी रूप जो विनयादिक क्रिया की जाती है उससे भी उसका दृष्टिसे यहाँ उन देवों, आगमों तथा साधुओंके प्रणाम कोई सबन्ध नहीं है। 'युगवीर' गरीबका धर्म (बा० अनन्त प्रसाद B. Sc. Eng. 'लोकपाल') हमारे इस संसारमें गरीब भी है अमीर भी है। शील दुनियाँमें जहाँ हर जगह हर बातमें होड़ाहोड़ी लगी अधिक संख्या गरीबोंकी ही है। देशोंमें भी धनी देश हुई है हमें पग-पगपरकठिनाइयाँ वाषा उपस्थित कर आगे और गरीब देश है और व्यक्तियोंमें तो है ही। भारत- बढ़ने नहीं देती । सबसे बड़ी कठिनाई हमारी पार्मिक की गिनती भी और दूसरे एशियाई एवं अफ्रीकी देशोंके सकुचितता और वर्ण-व्यवस्थामे उत्पन्न जाति-पांतिके समान ही एक गरीब देशमें की जाती है । गरीब वह कहा भेद-भावों एवं कटुताओंके कारण ही पैदा होती रहती है। जाता है जिसे भरपेट पूरा भोजन समयानुकूल न मिल धर्मका शुद्ध स्वरूप क्या है, धर्म किसे कहते हैं और सके, पहननेको साफ-सुथरे जरूरतमुताविक कपड़े न हो, कर्तव्यमे और धर्ममे क्या भेद है हमने भुला दिया है । वस्तुरहने के लिए एक स्वस्थ मकानका अभाव हो और ज्ञानो- का स्वभाव ही धर्म है । जबतक कोई वस्तु या व्यक्ति पार्जनकी सुविधा न हो। भारतमे तो गरीब लोग है अपने स्वभाव एवं निर्माणकी मर्यादाके अंदर आचरण या ही, अमेरिका और इंगलैंडमें भी गरीब है। हां, भारतकी व्यवहार करता है तो वह धर्ममय कहा जा सकता है बाकी गरीबीका मापदण्ड इनसे भिन्न है। भारतमें तो जिस कुटुम्ब- अधार्मिक । अब प्रश्न यह उठता है कि किसका स्वभाव के पास दोनों समय भर पेट भोजनकी सुविधा सामान हो, क्या है एवं निर्माणात्मक मर्यादा क्या है ? यही नही जानने पहननेके लिए या तन ढकनेलायक इतने कपड़े वह खरीदकर ही से वे सारी गलतियाँ होती है जिन्हें हम जान-बूझकर बनवा सके जो बराबर साफ रखे जा सकें एवं एक छप्पर- करते है-अनजानमें जो होती है वह तो है ही। पर वार साधारण मकान हो तो ऐसा कुटुम्ब मध्यम वर्गीय जानकारी सभीको तो होती नहीं। बेजान वस्तुएं भी कहा जाता है। पर अमेरिकामें जिस फैमिलीमें कम-से-कम ससारमें है ,जानदार पशु पक्षी भी है और मनुष्य भी। इनमें एक मोटरकार न हो उसे गरीब कहते है । हमारे यहाँ तो हम पाते हैं कि बेजान वस्तुएं और अधिकतर पशु पक्षी एवं अच्छे-अच्छे धनी भी कंजूसीके मारे मोटरकार नहीं रखते कृमि कीट सभी सर्वदा स्वभावानुकूल ही आचरण करते हैं। तो अमीरोंके लिए तो असंभव है ही। केवल एक मनुष्य ही ऐसा है जिसके लिए कोई सीमा नही ___ उन पश्चिमीय देशोंकी तुलनामें जो आज उन्नति- दीखती। ऐसा क्यों? केवल इसीलिए कि मानवमें मनशील कहे जाते है भारत पिछड़ा देश समझा जाता है। युक्त विकसित बुद्धिका आवास है ? पर यह तो ठीक शानमें, विज्ञानमें, सरोसामानमें सभीमें पिछड़ा । हमारे उलटी बात है । यही विडम्बना है इसीलिए न जाने किस जीवन-स्तरका औसत इतना नीचा है कि आजकी प्रगति- प्राचीन कालसे शानी महापुरुष तरह-तरहकी व्यवस्थाएं
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
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