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वार्षिक मूल्य ५ )
वर्ष ११
किरण ३
तत्त्व-प्रकाशक
ॐ अन्
न का
नीतिविरोधी लोकव्यवहारवर्तकः सम्पर्क परमागमस्य बीजं भुवनेकगुरुर्जयत्पनेकान्त
सम्पादक - जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर'
वीरसेवामन्दिर सरसावा जि० सहारनपुर ज्येष्ठ कृष्णा, वीर-संवत् २४७८, विक्रम संवत् २००६
शिति जिनस्तोत्र
इस किरणका मूल्य 111 )
मई
१६५२
यह स्तोत्र जैनियोके चौबीस तीर्थकरोके स्तवन- स्वरूप रवा गया है। रचना सुन्दर एवं सरल और यमकालंकारको लिये हुए है । इस स्तोत्रकी एक सटिप्पण प्रति मुझे पंचायती दि० जैन मन्दिर खजूर मम्जिद देहलीसे प्राप्त हुई है । इसके रचयिता भट्टारक जिनचन्द्र है यद्यपि भ० जिनचन्द्र ने इस स्तोत्रमें अपने गुरुका कोई नामोल्लेख नही किया, किन्तु अन्यसूत्रोसे उनके गुरु पद्मानन्दी ज्ञात होते हूं । जो मूलसंघस्थित नन्दीसंघ, बलात्कारगण और सरस्वति गच्छ विद्वान भट्टारक पद्मनन्दिके प्रशिष्य और भट्टारक शुभचन्द्रके शिष्य जान पडते है । यह संभवतः हिसारकी गद्दीके भट्टारक थे; क्योकि हिसारकी पट्टपरम्परामें इनका नाम अकित है । इनके अनेक विद्वान शिष्य थे, उनमें पं० मेधावी प्रधान थे जिन्होंने 'धर्मसंग्रह श्रावकाचार' की रचनाको हिसार में प्रारंभ करके नागौर में संवत् १५४१ में कुतुबखानके राज्यकालमें बनाकर समाप्त किया है। इनके दो शिष्य और भी थे, ब्रह्मनरसिंह और ब्रह्म तिहुणा । ब्रह्म तिहुणाने जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति और पंचसग्रह नामके ग्रंथोंको उक्त पंडित मेधावीके उपदेशोंसे संवत् १५१८ में लिखकर उक्त पडितजीके लिये अपने ज्ञानावरणी कर्मक्षयार्थ प्रदान किया था। जिनचन्द्र नामके कई विद्वान हो गए हैं। परन्तु यह उन सबसे भिन्न प्रतीत होते हैं । इनका समय विक्रमकी १५वीं शताब्दीका उत्तरार्ध और १६वी शताब्दीका पूवार्ध है । इन्होंने अन्य किन-किन ग्रंथोंकी रचना की है, यह कुछ ज्ञात नही हो सका। पर यह अपने समय के सुयोग्य विद्वान भट्टारक थे। - परमानन्द शास्त्री