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अनेकान्त
[ वर्ष ११
वैदिक साहित्यमें अरिष्टनेमिका कथन
___ जैन अनुश्रुति' अनुसार भारतके प्रसिद्ध यदुवंश अथवा हरिवंशकी अन्धकवृष्णि शाखामें उत्पन्न अरिष्टनेमि भगवान कृष्णके चचेरे भाई थे, इनके पिता मथुराके पास शौर्यपुरके राजा थे, ये वर्णमे श्याम, स्वभावमें सौम्य, शरीरसे बलिष्ठ और संकल्पमें दृढ शक्तिवाले थे । उनका विवाह सम्बन्ध सुराष्ट्र देशस्थ जूनागढके भोजक वशकी राजकुमारी राजमतीसे होना निश्चित हुआ था। जब विविध राजाओंके साथ घोड़ों वाले रथमें सवार हो यह जूनागढके निकट पहुचे तो एक स्थान पर बहुतसे भूख-प्याससे पीडित पशुओको देखकर यह पूछने लगे कि 'इन्हे क्यो बन्दी किया गया है ?' जब उन्हें बताया गया कि यह बारात में आये हुए मांसाहारी राजाओके भोजनार्थ जमा किये गये है तो यह दया द्रवित हो गये, वैराग्यसे छा गये, संसारको दुःखका कारण समझ , पशुओंको मुक्त करा, रथ छोड़, रैवतक पर्वत पर जा चढे, वहा निर्ग्रन्थ मुद्राधार तपस्या करने लगे और संसारके कारणीभूत समस्त कर्मशत्रुसेनाको जीतये 'जिन' अथवा 'अरिहन्त' बन गये और फिर शिक्षा-दीक्षा द्वारा अनेक भव्य जीवोंको कल्याणमार्ग पर लगाने, उन्हें संसार सागरसे पार उतारने के कारण यह 'तीर्थड्र' संज्ञासे विभूषित हुए।
जैन अनुश्रुति अनुसार यही भगवान कृष्ण, बलराम, पंच पाण्डव, नारद, प्रभृति महाभारत कालीन प्रमुख पुरुषोंके आध्यात्मिक गुरु थे। इनके द्वारा दीक्षित होकर ही पाच पाण्डवोंने सन्यास धारण किया था। इन्हीकी तपस्या-भूमि होनेके कारण 'रैवतक' अर्थात् गिरनार पर्वत उस समयसे लेकर आज तक तीर्थभूमि बना हुआ है।
अरिष्टनेमि अपने समयके कैसे प्रभावक और युगप्रवर्तक महापुरुष थे -इसी बातसे प्रमाणित है कि वैदिक साहित्यमे जगह-जगह मंगल भावनामे प्रेरित हो वैदिक ऋषियोने अमरकी तरह गुण गान कर इनका आह्वान किया है
(अ) ओम् भां कर्णेभिः श्रगयाम देवा, भवं पश्येमाक्षिनिर्यजत्राः स्थिर रङ्ग स्तुष्टुवास्तभिः, म्यशेम देवहितं यदायु ॥ स्वस्ति नः इन्द्रो वृद्धश्रवा. । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्तिनस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो वृहस्पति दधातु ओं शतिः शान्तिः शान्तिः ।
-प्र.न. उप. (आ) त्यपूर्ण वाजिनं देवजू सहारात तक्ता रथानाम्
अरिष्टनेमि पुतनाबमाशु स्वस्तये ताक्ष्य महा हुम ॥१। -ऋग्वेद १०, १७८ १२॥ अर्थ-बलवान देवोसे पूजनीय, प्राणियोको पार उतारने वाले, (अर्थात् तीर्थङ्कर) सेनाओंके विजेता (कर्म रूपी शत्रुसेनाओके विजेता जिन), ताय पुत्र (सूर्य पुत्र) अरिष्ट नेमिको हम आत्म-कल्याणके लिये आह्वान करते है।
(1) तब रथं वरमा हुन स्तोमरश्विना सुवित्ताय नस्यम् ।
अरिष्टोम धामियानि विद्या मेषं वजनं जीरदानुम् ॥ --ऋ. १. १८०. १० अर्थ जिसमें बडे-बड़े घोड़े जुड़े है ऐसे रयमें बैठे हुए सूर्यके समान आकाशमै चलनेवाले विद्या रूपी रथमें बैठे हुए अरिष्टनेमिका हम आह्वान करते है।
(ई) हिन्दुओके पौराणिक साहित्य, विशेषतया स्कन्धपुराण, प्रभास खण्डमे नेमिनाथ भगवानका बड़ा गुणगान किया गया है उसके कुछ अंश यहां उद्धृत किए जाते है--
भाग्य पश्चिमें भागे वामनेन तप: : 'तम् । तेनैव तपसाकृrzः शिवः प्रत्यक्षतां गतः। पासनसमानीनः श्यामति-दिगम्बरः । नेमिनाथ शिवेत्येवं नाम चक्रेऽन्य वामन: । कलिकाले महाघोरे सर्वप-प्रणाशकः । वर्शनात्स्पर्शनादेवकोटियज्ञफलप्रवः ।
-स्कन्धपुराण-प्रभास काण्ड १. (अ) हरिवंश पुराण-आचार्य जिनसेन कृत-ईसाकी ८वी सदी
(आ) उत्तरा-ययनमूत्र-२२वां अध्याय (1) Indian Antiquary vol IX P 551 Mazumdar
„ P 163 Jacobi २. तस्तारं रथानान् -तार पितारम् रथानायं रहित गाम् भूतानां -दुर्गाचार्यनिरुक्त टीका पृ ७४७ ३. अरिष्ट नेमिनाम ताक्ष्यं पुत्र : ताय देवता
-वेदार्थ दीपिका दशम मण्डल १७८