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किरम २]
मोहनजोदड़ो - कालीन और आधुनिक जैनसंस्कृति
प्रवर्तक थे, जैनसाहित्यमे यह महापुरुष वृषभ नामधारी होनेसे ऋषभ, काश्यप गोत्री होनेसे कश्यप, इक्ष्वाकु कुलका होनेसे इक्ष्वाकु, आदि धर्मप्रवर्तक होनेसे आदि ब्रह्मा, ज्येष्ट ब्रह्मा, आदीश्वर, आदिजिन, आदिनाथ व स्वयम्भू, विधाता, विश्वकम्म आदि नामोसे प्रसिद्ध है ।
इस ऋषभ भगवानके सम्बन्धमें जैनागममें कहा गया है कि "जैसे नक्षत्रोमें चन्द्रमा श्रेष्ठ है वैसे ही धर्मप्रवर्तकों में कश्यप श्रेष्ठ है"* यजुर्वेद में भी तत्सम्बन्धी ऐसा ही बखान किया गया है "जैसे नक्षत्रोंमें चन्द्रमा इन्द्र है ( श्रेष्ठ है) वैसे ही धर्मप्रवर्तकोंमे वृषभ श्रेष्ठ है, अमृतदेव ( सिद्ध पुरुष) शुद्ध और हर्षित मनसे उसका आह्वान करते हुए उसका अभिनन्दन करते है" । इसके अतिरिक्त वैदिक वाङ्मयके अन्य ग्रन्थोमे भी इस वृषभ भगवानका उपर्युक्त नामोंमे विविध प्रकार गुण-गान किया गया है। मुण्डक उपनिषद में कहा है-ब्रह्मा देवानी प्रथम सम्बभूव विश्वस्य कर्ता भुवनस्य गोप्ता । स ब्रह्मविद्यां सर्वविध प्रतिष्ठामचंय ज्येष्ठपुत्राय प्राह ॥
- मु० उप० १. १.
अर्थ- सब देवोमे ब्रह्मा सबसे पहले पैदा हुआ, इसलिये वही विश्वका कर्त्ता है, वही विश्वकां रक्षक है, उसने समस्त विद्याओं में प्रधान विद्या ब्रह्मविद्याको अपने पुत्र ज्येष्ठ अथर्वको बतलाई थी ।
जैन वाइमयसे पता लगता है कि इस आदि ब्रह्माने अपने पुत्र वृषभसेनको ही सबसे पहले ब्रह्मविद्याका उपदेश किया था और उसीको अपने श्रमणसंघका ज्येष्ठ गणधर ( chief apostle ) बनाया था। मालूम होता है कि उपर्युक्त विवरणमें मण्डल उपनिषद्कारने हसी ज्येष्ठ गणधरको अपनी वैदिक परिभाषा अनुसार ज्येष्ठ अथर्वाके नामसे पुकारा है, क्योंकि वैदिक अनुश्रुति अनुसार अथर्वा ऋषिने सबसे पहले अग्निको मालूम किया था और वही याज्ञिक क्रिया व लोक कल्याणकारी मन्त्र, जन्त्र विद्याका सर्वप्रथम प्रकाशक था। और उसीके नाम पर चौथे वेदका नाम अथर्ववेद रक्खा गया था ' ।
१. ( अ ) समन्तभद्र - बृहत्स्वयम्भू स्तोत्र ।। ३५ ।। ईसाकी दूसरी तीसरी सदी
( आ ) जिनसेनाचाय्यंकृत आदि पुराण ।। १६.२६४-२६७ २५१००-२१७
(इ) जिनसेनाचार्य्यं कृत हरिवंश पुराण ॥ ८२१०
(ई) नेमिचन्द्र आचार्यकृन त्रिलोकसार ॥८०२ ईसाकी दसवी सदी
१२१
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ईसा की आठवी सदी
२ उत्तराध्ययन सूत्र ।। २५१६ ।।
३ स्लोकानामिन्दु प्रति शूर इन्द्रो वृषभायमाणो वृषभस्तुराषाट् भूतभूषा मनसा मोदमानाः स्वाहा देवा अमृता मादयन्ताम् ॥ - यजुर्वेद २० - ४६
४. ( अ ) श्वेताश्वर उप० ।। ६१८ ।।
(आ) डा० राधाकृष्णन का मत है कि जैनधर्म निस्सन्देह भारतमें वर्धमान और पार्श्वनाथ के पहलेसे प्रचलित
हैं, क्योंकि यजुर्वेद में ऋषभ अजितनाथ और अरिष्ट नेमि तीन प्राचीन तीर्थंकरोंका उल्लेख मिलता है ।
देखें Indian Philosophy Vol 1
Indian Ediction, 1940, p. 289
(इ) आचार्य विरूपाक्ष वडिया M A वेदतीर्थंका मत है कि ऋग्वेद १०- १६६,१ जैन तीर्थंकर ऋषभसे सम्बन्धित है।
५. तिलोत४-९-६४
६ ( अ ) सत्यव्रत सामश्रमी निरुक्तालोचन वि० स. १९५३ पृ. १५५
(B) A. C. Das-Rig Vedic culture pp. 113-115.
() Dr. Winternitz-History of Ind. list. Vol. 1 1927 p. 120.